नेपाल की चीन से पेट्रो पदार्थ आयात करने की तैयारी

नेपाल
यशोदा श्रीवास्तव, नेपाल मामलों के विशेषज्ञ

काठमांडू। नेपाल पेट्रोलियम पदार्थ को लेकर भारत से निर्भरता कम करने की सोच रहा है।

इसके लिए कुछ वर्ष पूर्व उसकी चीन से हुए करार का अध्ययन किया जा रहा है।

अभी इस पक्ष पर खासा ध्यान है कि पेट्रोलियम पदार्थ को लेकर चीन हुआ करार नेपाल के लिए मंहगा न साबित हो।

नेपाल और चीन के बीच करीब पांच साल पहले पेट्रो पदार्थ की आपूर्ति को लेकर हुए करार के क्रियान्वयन होने में भारी दुष्वारियों के बावजूद नेपाल आयल निगम ने उम्मीद नहीं छोड़ी है।

 नेपाल सरकार ने चीन की तेल कंपनी पेट्रो चाइना से दीर्घकालिक समझोता किया था।

इस समझौते के बाद चीन ने 1.3 मिलियन लीटर पेट्रोल नेपाल को सप्लाई किया था। इसे केरूंग के रास्ते काठमांडू तक लाया गया था।

पांच वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ” चीन के लिए नेपाल का दरवाजा खोलने” के प्रस्ताव के साथ चीन गए थे।

चीन से पेट्रोलियम उत्पादों के लिए नेपाल में एक गोदाम बनाने पर द्विपक्षीय सहमति बनी थी लेकिन इस दिशा में धरातल पर कोई काम आगे नहीं बढ़ा।

तेल की वह पहली खेप आने के बाद चीन से दुबारा न तेल आया, न ही इसकी ठोस तैयारी आगे बढ़ी।

अब इधर जाने क्या बात हुई कि नेपाल अपने इस पुराने प्रस्ताव को लेकर अचानक फिर सक्रिय हो रहा है।

 नेपाल तेल निगम के प्रवक्ता बिनीत मणि उपाध्याय ने कहा कि चीन से पेट्रोलियम उत्पादों के आयात के मुद्दे का अध्ययन करने के लिए उद्योग, वाणिज्य और आपूर्ति मंत्रालय में एक समिति बनाई गई है।

इस बीच, चीनी अधिकारियों की एक टीम भी नेपाल आई और नुवाकोट और अबुखैरेनी के पिप्पलार में एक तेल डिपो बनाने का फैसला किया।

नेपाल आयल निगम के प्रवक्ता उपाध्याय ने कहा कि  “कोरोनो वायरस संक्रमण के कारण तेल कैसे और किस मॉडल में लाया जा सकता है, इस पर आगे कोई चर्चा और अध्ययन अभी नहीं हुआ है।

जानकारों का कहना है कि भले ही सरकार का चीन से तेल लाने का फैसला हो लेकिन यह उतना आसान भी नहीं है।

चीन के साथ व्यापार नेपाल के दो बंदरगाहों रसुवागढ़ी और ततोपानी के माध्यम से किया जाता है।

चीन नेपाल के साथ व्यापार के लिए रसुवागढ़ी (केरुंग) बंदरगाह पर जोर दे रहा है।

केरूंग में तेल लाने का एकमात्र विकल्प तिब्बत का दूसरा सबसे बड़ा शहर सिगात्से है, जो केरूंग से 540 किलोमीटर दूर है।

चीन ने तिब्बत की राजधानी ल्हासा में एक पेट्रोलियम पाइपलाइन का निर्माण किया है।

चूंकि ट्रेन सेवा सिगात्से तक पहुंच चुकी है, इसलिए तेल को ट्रेन से ल्हासा तक और फिर टैंकर द्वारा केरुंग से लाया जा सकता है।

केरूंग से काठमांडू की दूरी 196 किमी है, लेकिन टैंकरों के लिए यह आसान नहीं है क्योंकि सड़कें अच्छी नहीं हैं।

कीमत के मामले में भी चीन से तेल आयात करना सस्ता नहीं है।

नेपाल आयल निगम भारत के इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन से प्रतिवर्ष 1.5 ट्रिलियन से अधिक पेट्रोलियम उत्पादों की खरीद कर रहा है।

व्यापारिक दृष्टि से भारत नहीं चाहेगा कि नेपाल तीसरे देश से पेट्रोलियम उत्पादों के आयात का विकल्प तलाशे।

लिहाजा इंडियन ऑयल ने भी नेपाल को तेल निर्यात करने के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण का प्रस्ताव दे रखा है।  

भारत द्वारा 2.75 बिलियन की लागत से मोतिहारी-अमलेखगंज पेट्रोलियम पाइपलाइन का निर्माण इसी प्रस्ताव का हिस्सा है।

भारत द्वारा नेपाल को और भी कई तरह की व्यावसायिक सहूलियतें देने का प्रस्ताव है।

बावजूद इसके पेट्रोलियम से जुड़े नेपाल और चीन के पुराने और अव्यवहारिक करार पर नेपाल का ध्यान जाना हैरत भरा है।

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