कपिल देव—जिसने क्रिकेट की दुनिया बदल दी
राजेश शर्मा
क्रिकेट आज दुनिया में अरबों और खरबों रुपये का कारोबार है और उसे इस मुकाम तक पहुंचाने में भारतीय क्रिकेट प्रेमियों का बहुत बड़ा योगदान है. क्रिकेट को लेकर जो उन्माद, जुनून और देशप्रेम भारत में पनपा और शुरू हुआ, उसने अन्य एशियाई देशों को भी अपनी गिरफ्त में ले लिया. यही वजह है कि टेस्ट मैचों से होते हुए एकदिवसीय मैच के बाद पिछले दो दशकों में सर्वाधिक लोकप्रिय फॉर्मेट अब 20 -20 क्रिकेट का है .
लेकिन स्थितियां और समय एक समय ऐसी नहीं थी और उसे इस उस मुकाम तक पहुंचाने में पिछले चार दशकों में कुछ महत्वपूर्ण खिलाड़ियों और उनकी उपलब्धियों ने खासा योगदान निभाया है.
भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता में बेशुमार इजाफा और हॉकी की घटती लोकप्रियता एक साथ होने वाली घटनाएं रहीं. क्रिकेट को इस मुकाम तक पहुंचाने में भारतीय क्रिकेट में कई हस्तियों ने योगदान दिया लेकिन इसकी शुरुआत जिस सबसे बड़ी घटना से हुई, वो थी 1983 में क्रिकेट विश्व कप में भारत की विजय और इस जीत का हीरो या आधारस्तंभ एक ऐसा खिलाड़ी रहा, जिससे तब तक किसी को ऐसे चमत्कार की उम्मीद नहीं थी.
दरअसल यह सारा किस्सा 1970 के दशक से शुरू होता है. इससे पहले भारत में हॉकी का जादू सिर चढ़कर बोलता था. भारत ओलंपिक में लगातार स्वर्ण पदक जीतता चला आया था लेकिन फिर क्रिकेट की दुनिया में सुनील गावस्कर का पदार्पण हुआ और उन्होंने भारत का परचम पूरे विश्व में लहराना शुरू कर दिया. 70 से 80 के दशक की टीम में गुंडप्पा विश्वनाथ, दिलीप वेंगसरकर, मोहिंदर अमरनाथ, श्रीकांत, , किरमानी समेत चंद्रशेखर, बिशन सिंह बेदी और प्रसन्ना का जादू स्पिन की तिकड़ी के रूप में विख्यात होने लगा था. इनके अलावा वेंकट राघवन भी एक प्रमुख स्पिन गेंदबाज के रूप में उभर रहे थे.
उस समय विश्व क्रिकेट में तेज गेंदबाजों का बोलबाला था और वेस्टइंडीज पूरी तरह से क्रिकेट जगत पर हावी था. उनके प्रतिद्वंदी के रूप में मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और इंग्लैंड को गिना जाता था. 50 ओवर एकदिवसीय मैचों के फॉर्मेट में 1975 और 1979 का विश्व कप जीतकर वेस्टइंडीज अपनी धाक जमा चुका था.
इन प्रतिकूल परिस्थितियों में चंडीगढ़ के एक तेज गेंदबाज कपिल देव अचानक सुर्खियों में आये. चार साल के भीतर वह भारतीय क्रिकेट में इतना स्थापित नाम हो चुके थे कि 1983 विश्व कप में भारतीय टीम की कप्तानी उन्हें सौंप दी गयी। ज्यादा उम्मीद किसी को भी नहीं थी. उन दिनों क्रिकेट का लाइव टेलीकास्ट इस स्तर पर नहीं होता था कि सभी मैच भारतीय दर्शकों को दिखाये जाएं बल्कि भारतीय टीम के कई मैचों की तो रिकॉर्डिंग भी नहीं होती थी.
भारतीय टीम विश्व कप से बाहर होने के कगार पर थी और जिंबाब्वे के खिलाफ 17 रन पर उसके 5 विकेट गिर चुके थे. टीम के कप्तान तेज गेंदबाज कपिल देव बल्लेबाजी करने के लिये मैदान पर उतरे. शाम होते-होते विश्व क्रिकेट में एक नया इतिहास रचा जा चुका था. कपिल देव ने 175 रन की शानदार पारी खेली और उसके बाद से भारतीय टीम मैच दर मैच इतिहास रचते हुए विश्व कप के फाइनल में पहुंच गयी . उसका सामना दो बार की चैंपियन वेस्टइंडीज से था. पहले बैटिंग करते हुए भारतीय टीम मात्र 183 रन पर सिमट गयी.
उसके बाद उस मैच में जो कुछ हुआ, उसकी एक-एक गेंद इतिहास के पन्नों पर दर्ज हुई. न केवल अपराजेय समझी जाने वाली वेस्टइंडीज की टीम 140 रन पर सिमट गयी बल्कि कपिल देव द्वारा कप्तानी के दौरान मैच में लगातार अपनाई जाने वाली नयी-नयी रणनीतियों और आश्चर्यजनक बदलावों ने ऐसी जीत का आधार रखा, जिसने भारतीय क्रिकेट की दिशा और दशा बदल दी.
इतिहास के इस पहलू का जिक्र करना इसलिए जरूरी है क्योंकि इसके पहले भारतीय क्रिकेट और खिलाड़ी न केवल सम्मान ,इज्जत और शोहरत की दृष्टि से बल्कि आर्थिक तौर पर भी समस्याओं का सामना करते थे. कपिल देव की विश्वकप सफलता उस लोकप्रियता की नींव और आधार बनी, जिसकी बदौलत भारत विश्व क्रिकेट की ऐसी महाशक्ति बनकर उभरा कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उसकी भूमिका सबसे अहम हो गयी है.
उल्लेखनीय बात यह है कि इस दौरान लगातार ऐसे खिलाड़ियों की पीढ़ी आयी जिसने भारत को हमेशा टॉप देशों में बनाये रखा. इनमें रवि शास्त्री, मोहम्मद अजहरूद्दीन और नवजोत सिंह सिद्धू जैसे खिलाड़ी शामिल थे. उसके बाद ही सुपर स्टार खिलाड़ियों के आने का एक अनवरत सिलसिला शुरू हुआ और एक से एक दिग्गज खिलाड़ियों ने दुनिया में भारत की धाक कायम की. सचिन तेंदुलकर से लेकर सौरव गांगुली, महेंद्र सिंह धोनी और विराट कोहली तक और उनके अलावा अनिल कुंबले, युवराज सिंह, श्रीनाथ से लेकर हरभजन सिंह तक.
यह सब 1983 की उस ऐतिहासिक उपलब्धि की बदौलत ही संभव हो पाया, जो एक छोटे से शहर से एकाएक विश्व क्षितिज पर उभरने वाले हरफनमौला खिलाड़ी कपिल देव ने तहलका मचाते हुए हासिल की थी. सच तो यह है कि ना केवल उनके बाद आये बाकी खिलाड़ियों बल्कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड, प्रशिक्षकों और पूरे क्रिकेट तंत्र को उनकी उनकी इस उपलब्धि ने ही फास्ट ट्रैक सुधार और लोकप्रियता समेत बेशुमार पैसों की राह पर डाला. यह सब आज तक उसी फसल को काट रहे हैं, जिसके बीज कपिल देव की विश्व विजयी टीम ने बोये थे.
इसके बाद ही भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड विश्व क्रिकेट और क्रिकेट की अर्थव्यवस्था में एक बड़ी शक्ति बनकर उभरा. क्रिकेट के प्रति यह दीवानगी अन्य एशियाई देशों के लिए भी नये रास्ते खोलने में सफल रही और पाकिस्तान, श्रीलंका तथा बांग्लादेश भी धीरे-धीरे विश्व क्रिकेट में अपनी छाप छोड़ने में सफल हुए. दर्शकों में भारी लोकप्रियता के कारण क्रिकेट भारत का मनपसंद खेल बन गया और उसके मैचों के लाइव टेलीकास्ट ने इसे विज्ञापनदाताओं की पहली पसंद बना दिया. इस हद तक कि दुनिया भर में फुटबॉल और टेनिस को शोहरत, लोकप्रियता और पैसों के हिसाब से जो रुतबा हासिल है, वही रुतबा भारत ने क्रिकेट को विश्व स्तर पर दिला दिया.
क्रिकेट की लोकप्रियता के चलते पहले 20-20 क्रिकेट का उदय हुआ और जब इसमें बेशुमार पैसा आ गया तो इंडियन प्रीमियर लीग की शुरुआत भी हो गई. एक समय में जो क्रिकेट खिलाड़ी मुफ्त में रणजी ट्रॉफी मैच खेलते थे या कुछ सौ रुपये कमाते थे और टेस्ट मैच में शायद कुछ हजार रुपये। वही आज सालाना कांट्रेक्ट करके सिर्फ क्रिकेट खेल कर ही करोड़ों रुपये कमाते हैं। विज्ञापन की दुनिया से आने वाला पैसा इससे अलग है.
इन सब का श्रेय जिस एक खिलाड़ी को सबसे ज्यादा दिया जाना चाहिये, उतना सम्मान कपिल देव को कभी नहीं मिला. जबकि 25 जून, 1983 के विश्वकप की ऐतिहासिक जीत न केवल भारतीय क्रिकेट बल्कि भारतीय खेल इतिहास का भी ऐसा मील का पत्थर रही, जिसने भारतीय खेलों के प्रति सरकार, संस्थाओं और दर्शकों का रवैया बदल दिया. इसके बाद अन्य खेलों में भी जमकर धन वर्षा हुई और उनकी स्थितियों में आमूलचूल परिवर्तन आया.
आज की पीढ़ी से भारत के प्रमुख क्रिकेट सितारों के नाम पूछे जायें तो लोगों की जुबान पर सचिन, धोनी, कोहली और सौरव समेत गावस्कर या कुंबले के नाम सबसे पहले उभरेंगे लेकिन यह सब इसलिये है क्योंकि क्रिकेट का जादू पिछले लगभग चार दशकों से भारतीय खेलप्रेमियों के सिर पर चढ़कर बोल रहा है और उसको उस मुकाम पर स्थापित करने में सबसे अहम योगदान अगर किसी खिलाड़ी का रहा है तो वह नाम है, कपिल देव! सिर्फ और सिर्फ कपिल देव!!
(लेखक साप्ताहिक संडे मेल के खेल संपादक रहे हैं)