भारत नेपाल. उच्चस्तरीय बैठक में नहीं उठे तनाव के असल मुद्दे
समस्याओं के समाधान के लिए उच्च राजनीतिक बैठक की जरूरत
यशोदा श्रीवास्तव
काठमांडू। सोमवार को भारत और नेपाल के बीच तमाम विवादित मुद्दों पर बात हुई।बात चीत कितना सार्थक रहा यह कहना जल्दबाजी होगी लेकिन हां बात चीत की शुरुआत तो हुई। इसे आने वाले दिनों में दोनों देशों के लिए सुखद संदेश की दृष्टि से देखा जाना चाहिए।
बता दें कि हाल के वर्षों में भारत और नेपाल के बीच संबंध मधुर नहीं रहे। स्वतंत्रता दिवस के अवसर नेपाल के पीएम ओली ने भारतीय प्रधानमंत्री मोदी से शुभकामना के बहाने बातचीत की। बातचीत के क्रम में दोनों देशों के बीच तनाव पर भी चर्चा हुई और आननफानन में ऐसे तमाम मुद्दों पर बातचीत की बात भी तय हुई और सोमवार को ही काठमांडू में उच्चस्तरीय बर्चुवल वार्ता का योग बना। नेपाल में भारत के राजदूत विनय मोहन क्वात्रा और नेपाल विदेश मंत्रालय के सचिव शंकर दास बैरागी के अतिरिक्त अन्य मंत्रालयों के सचिव स्तर के अधिकारियों के बीच वार्ता हुई। इस तरह की एक बैठक जुलाई 2018 में भी हुई थी। बैठक का नाम संयुक्त निगरानी तंत्र दिया गया है।सोमवार को हुई इस तंत्र की बैठक में खास तौर पर भारत के सहयोग से नेपाल में संचालित परियोजनाओं की मौजूदा स्थिति पर चर्चा हुई।चर्चा में भूकंप अथवा अन्य आपदा के समय अपने इस नन्हें पड़ोसी राष्ट्र के प्रति भारत की क्या भूमिका रही,यह भी शामिल था।
लेकिन दोनों देशों के बीच तनाव की वास्तविक वजह पर खास चर्चा नहीं हुई। हो सकता है इस मुद्दे को कभी होने वाली दोनों देशों के सरकार स्तर की बैठक में उठाया जाय।दोनों देशों के बीच खटास तो ओली सरकार के सत्ता रूढ़ होने के बाद ही शुरू हुआ।वे तमाम गैरजरूरी मामलों को लेकर भारत पर निशाना साधते रहे। कहना न होगा कि भारत विरोध ही उनके राजनीति का प्रमुख आधार बनता गया। हालांकि उनके सख्त भारत विरोधी रुख का उनके अपने ही दल में जबरदस्त विरोध है। सरकार और पार्टी में व्यापक अंतरविरोध के कारण वे अपनी सरकार बचाने के लिए भागे भागे फिर रहे हैं।
इस बैठक में खासतौर पर उत्तराखंड के लिंपियाधुरा, लिपुलेख व कालापानी पर नेपाल के विवादित नक्शे पर बात नहीं हुई। नेपाल से लगी बिहार सीमा पर करीब 7100 एकड़ भारतीय भूक्षेत्र पर नेपाल द्वारा कब्जे कि बात भी बैठक में नहीं उठी। बिहार सीमा पर नेपाल पुलिस द्वारा भारतीय नागरिकों पर की गई फायरिंग पर भी चर्चा नहीं हुई।
हां भारत की ओर से नेपाल को यह जरूर याद दिलाया गया कि भारत उसका ऐसा पड़ोसी और मित्र राष्ट्र है जो बिना किसी स्वार्थ के उसकी मदद करता रहेगा। भूकंप के समय नेपाल के सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र नुवाकोट व गोरखा जिले में दिल खोलकर मदद की।वहां 460,301 घर बनाने में मदद की। भारत ने भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में 50 हजार घर बनाने का वादा किया है। इसके अलावा मोतिहारी-अमलेखगंज सीमा पर पेट्रोलियम पाइपलाइन के संचालन में नेपाल की मदद की। भारत ने विराटनगर में एकिकृत चेकपोस्ट निर्माण में मदद की।हाल ही कोरोना संक्रमण काल में भी भारत ने नेपाल की भरसक सहायता की। बैठक में, भारतीय सहायता से चलने वाली विकास परियोजनाओं के पूरा होने में आ रही कठिनाई को वार्ता के जरिए दूर करने पर सहमति व्यक्त की गई।नेपाल में, भारतीय सहायता से ऊर्जा, पुल, सिंचाई, रेलवे, सड़क, कृषि आदि पर भी काम चल रहा है।
दोनों देशों के बीच ऐसी बैठकें चलती रहती है लेकिन अर्सा बीत गया दोनों देशों के सरकारों के बीच बैठक हुए। ऐसी बैठकें हर उस समय होती रही है जब दोनों देशों के बीच तनाव ग्रस्त माहौल बना हो। दोनों देशों के बीच तनाव उतपन्न होना नया नहीं है। ऐसे ही एक तनाव को दूर करने के लिए 1956 में तत्कालीन राष्ट्रपति डा.राजेंद्र प्रसाद को भी जाना पड़ा था।उसके बाद सर्वपल्ली राधाकृष्णन,वीवी गिरी,डा.जाकिर हुसेन,ज्ञानी जैल सिंह और विदेश मंत्री रहते हुए प्रणब मुखर्जी जैसे शख्सियतों को काठमांडू जाना पड़ा था। वेशक भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने कई दफे नेपाल की यात्रा की लेकिन उनकी यात्रा ऐसे किसी मौके पर नहीं थी।
इधर मुमकिन है भारत नेपाल संबंधों में खटास को बढ़ावा देने में चीन की रुचि हो लेकिन नेपाल और भारत के संबंधो पर नजर रखने वाले नेपाली टीकाकार अनिरुद्ध उपाध्याय का कहना है कि राजनितिक लाभ के लिए नेपाल का कोई दल या राजनेता भले ही भारत विरोध को हवा दे,तमाम ऐसे मजबूत आधार है जिस वजह से नेपाल भारत से कभी अलग नहीं हो सकता। नेपाल के कुल आवादी के 4.5 प्रतिशत लोग भारतीय सैन्य सेवाओं पर निर्भर है।इनसे जुड़े लाखों परिवारों की जीविका भारत द्वारा दी जा रही करोडों के पेंशन पर चल रही है।इसके अलावा नेपाल में उत्पन्न जड़ी बूटी व अन्य औषधीय पदार्थों का सबसे बड़ा बाजार भारत है।नेपाल इसे कैसे छोड़ सकता है?