बदलेगा सब कुछ इस बार

पंकज प्रसून

इन दिनों अपने देश की जो हालत है ठीक वैसी ही परिस्थिति सन् 1929-39 के दौरान अमेरिका की थी। वहां के कुल बैंकों की आधी संख्या बंद हो गयी थी। डेढ़ करोड़ लोग बेरोज़गार हो गये थे। स्टाक मार्केट धड़ाम से नीचे गिर गया था।

वह महामंदी का दौर था। किसानों की हालत बेहद ख़राब हो गयी थी। उन्हीं दिनों एक गीतकार जनता को जगा रहा था। उसने बैंकों के दीवालिया होने पर लिखा। ग़रीब और अमीर के फर्क पर लिखा। उसके गाने अत्यंत लोकप्रिय होते गये। उसने कुल मिलाकर हजार गाने लिखे। कुछ अपने नाम से, तो कुछ छद्म नामों से।

उस महान गीतकार का नाम था बौब मिलर। सन् 1895 में  20 सितंबर को मेमफिस, टेनिसी में जन्मे बौब मिलर अद्भुत गीतकार और संगीतकार थे। दस वर्ष की आयु में ही पियानो बजाने लगे थे। फिर उन्होंने मिसिसिपी नदी पर चलने वाले स्टीमर के डांस बैंड में भी काम किया।

सन् 1920  के दशक में उनके कई गीत सुपरहिट हुए। वे भविष्यद्रष्टा भी थे। लूसियाना के गवर्नर ह्यू ई लौंग के लिये शोकगीत लिखा और कहा कि दो वर्ष बाद लौंग की हत्या हो जायेगी। वास्तव में ऐसा ही हुआ।

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान लिखा गया उनके गीत देयर इज ए स्टार स्प्रिंगल्ड बैनर वेभिंग समवेयर की दस लाख प्रतियां बिकीं थी।उसे एल्टन ब्रिट ने गाया था। 27 अगस्त1955 को इस प्रतिभाशाली कवि का निधन हो गया।

प्रस्तुत है बौब मिलर की प्रसिद्ध कविता “एलेवेन सेंट कौटन “ का संपादित और संक्षिप्त हिंदी अनुवाद। आप खुद ही आकलन करें कि भारत में चल रहे मौजूदा किसान आंदोलन के पीछे जो किसानों का दुःख है उसमें यह कविता कितनी सटीक और प्रासंगिक है। भारत में 41 वायसराय, 14 प्रधानमंत्री और 17 सरकारें बदलीं, पर फसलों की कीमत का मुद्दा जस का तस बना हुआ है।

बौब मिलर की कविता

कपास की कीमत ग्यारह सेंट

देती थी शिकन मेरे माथे पे

ओ महान् प्रभु

देखो तो ये क्या हो रहा है

हम डूब गये हैं कर्ज में आकंठ

कानों के लिये पड़ गयी है ये बात पुरानी

पिछले चार बरस से

दो जून खाना न मिला

और उस दौरान कभी एक पैसा भी न देखा

दमड़ी भी मिल जाती

तो खुद को सोचता धनवान

बेकार है बतियाना दूसरों की मार

पांच सेंट में कपास

और चालीस सेंट में मांस

इस साल में कोई गरीब खा सकेगा खाना ?

आ रहा है चुनाव का वक्त

फिर देखना हमलोगों को

अपनी कसम लगा सकते हो दांव

बदलेगा सब कुछ इस बार

वाशिंगटन में वे मक्का खाते

हमें मिलती उसकी गुल्की

पर अगले चुनाव के बाद

कोई ढूंढता रहेगा नौकरी

बेकार है बतियाना

दूसरों की मार

पांच सेंट कपास

चालीस सेंट में मांस

वाशिंगटन में लोग हैं मोटे और भरे पूरे

हम यहां मर रहे हैं भूखे

वादों और हुक्मों पर जीते

क्या बाल्टी भर दावत का वादा नहीं किया था हमसे

पर एक ही चीज़ भरी है केवल

वह है देश की जेल!!!

जितना ज्यादा हम करते काम

हमें मिलता उतना ही कम

कृषि सहायता के मलहम का सच

कोई हमसे भी तो पूछे

जब फट कर चीथड़े हो जायेंगे कपड़े हमारे

हो जायेंगे हम सब नंगे

पर भोजन के बदले क्या लेंगे?

…. हमें चाहिये एक बदलाव

हर थके इंसान के लिये होता है एक बात

बुरे वक्त का वही सहारा

है हमारा वोट

उन लोगों से मुक्ति दिलाने

जो हिला रहे नैया हमारे जीवन की!

हम तब तक मूर्ख थे

जब तक अच्छा था वक्त हमारा

पर हमें अब सोचना है

जो हमें सोचना था पहले ही

बेकार है बतियाना

दूसरों की मार

पांच सेंट की कपास में

नामुमकिन है भोजन मिलना!!!

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