माई क बुख़ारवा बढ़तई जात ब बबुआ

पांच जून ,पर्यावरण दिवस

चंद्र विजय चतुर्वेदी

डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज

 माई पृथ्वी है। अथर्ववेद के बारहवें खंड के सूक्त एक के बारहवें मन्त्र में कहा गया है ,माता भूमि पुत्रोअहम् पृथिव्या ,अर्थात पृथ्वी हमारी माता है ,हम इसके पुत्र हैं। सा नो भूमिः प्राणमयुर्द्वातु ,जो पृथ्वी हमें प्राण और आयु प्रदान करती है ,वह आज बुखार से त्रस्त है। कम से कम पिछली दो शताब्दियों से इसका बुखार निरंतर बढ़ता जा रहा है।पृथ्वी के बबुआ लोगों जरा अपने बुखार के बारे में सोचो। थोड़ा भी शरीर गरम हुआ क्रोसिन ,या पैरासिटामाल शुरूहो गया ,बुखार नहीं हुआ डाक्टर ने ढेर सारे टेस्ट कर के एंटीबायटिक शुरू कर दिया ,फिर भी बुखार बना रहता है तो – — .

   पृथ्वी माता के बुखार की स्थिति जरा देखें। औद्योगिक युग के पूर्व से आज तक यह बुखार जिस गति से बढ़ता जा रहा है वह चिंतनीय है। 1880 से 1980 तक प्रति दस वर्ष यह वृद्धि 0. 13 डिग्री फारेनहाइट या 0. 07 डिग्री सेल्सियस रहा। 1981 से बुखार के बढ़ने की गति प्रति दस वर्ष में 0. 32 डिग्री फारेनहाइट या 0. 18 डिग्री सेल्सियस हो गई। औसतन औद्योगिकयुग से आज तक में पृथ्वी माता के बुखार में 3. 6 डिग्री फारेनहाइट या 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुयी है। यह बुखार पृथ्वी के पुत्रों की ही देन है। यही बुखार ग्लोबल वार्मिग या वैश्विक तापन कहा जाता है।

    यह वैश्विक तापन परिणति है आधुनिकवैज्ञानिक युग के विकास और प्रगति का जो न्यूक्लियर ,औद्योगिक ,श्वेत और हरित क्रांति का युग है जिसमे मानव को प्रदुषण जैसी विकराल समस्या से जूझना पड रहा है जिसमे पर्यावरण इतना अधिक प्रभावित हो गया है कि  स्थल ,जल ,तथा वायुमंडल पर आश्रित जीवों तथा पादपों का जीवन अस्वस्थकर अशुद्ध ,असुरक्षित और संकटपूर्ण हो गया है। इस प्रदूषण से मनुष्य अन्य जीवधारियों की जीवन परिस्थितियों के समक्ष अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो गया है।

    पर्यावरण सम्बन्धी चिंताओं पर पहली बार 5 जून से 16 जून 1972 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानव पर्यावरण पर एक सम्मेलन  आयोजित किया गया। इस सम्मलेन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही की संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का गठन हुआ। 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस मात्र मानव  पर्यावरण का स्मृतिदिवस है।

    1972 में मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के युवा वैज्ञानिकों ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की. ,लिमिट्स टू ग्रोथ जिसके माध्यम से वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी की यदि विकास की गति धीमी न पड़ी तो पूरी दुनिया को पर्यावरण को लेकर भुगतना पडेगा। हम चेते नहीं परिणाम सामने है।

        यूँ तो पर्यावरण प्रदूषण  को लेकर 1972 से लेकर बहुत से सम्मेलन  हुए बहुत से आयोग बने पर वही ढाक के तीन पात। विकसित देश अपना ढर्रा बदलना नहीं चाहते ,विकासशील देश विक्सित होना चाहते हैं। 3 जून 1992 में ब्राजील की राजधानी रियो डी जेनीरो का पृथ्वी सम्मलेन रियो सम्मलेन व्यर्थ साबित हुआ जिसमे 182 देश के बीस हजार प्रतिनिधि सम्मिलित हुए थे। जिसके घोषणा पात्र में कहा गया था कि  दीर्घकालीन आर्थिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण संरक्षण आवश्यक है।

     जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए पेरिस एग्रीमेंट 2015 एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में सामने आया जिसमें  कहा गया कि   वैश्विक तापमान को औद्योगीकरण के पूर्व दौर से दो डिग्री सेल्शियस से अधिक नहीं होने दिया जाएगा। इस अग्रीमेंट में वैज्ञानिकों ने मत व्यक्त किया था की इससे अधिक वैश्विक तापन पर पृथ्वी की सुरक्षा खतरे में पड़ जायेगी। इस एग्रीमेंट के बाद 2016 और फिर 2019 सर्वाधिक गरम वर्ष रहा।

     पृथ्वी के ताप बढ़ने से ध्रुवों के पिघलने ,सागर के बढ़ने ,के साथ साथ बर्षा की प्रवृत्ति पर प्रभाव पड़ता है। ताप बढ़ने से विषाणुओं वायरसों ,परजीवियों और कीट पतंगों की संख्या में वृद्धि होती है। समुद्री तूफान आते हैं। जिसे वर्त्तमान भुगत रहा है।

    वैश्विक तापन पर नियंत्रण के लिए सतत विकास के आधुनिक प्रतिमान बदलने होंगे। आधुनिक विकास महंगा जीवन निम्न विचार पर आधारित है। व्यक्तिगत ,सामाजिक , राष्ट्रीय  और वैश्विक स्तर पर हमें अपने जीवन शैली में परिवर्तन लेकर ,सादा जीवन उच्च विचार को अंगीकार करना ही होगा तभी माँ का बुखार कम हो सकेगा।

 

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