ग्रामीण भारत में तीन में से दो डॉक्टर के पास नहीं डिग्री , सीपीआर की रिपोर्ट में हुआ खुलासा
नई दिल्ली. कोरोना संकट काल यानि ऐसा समय जब पूरा देश चिकित्सकों के भरोसे बैठा है। ऐसे में एक रिसर्च रिपोर्ट ने भारत की चिकित्सा मशीनरी पर ही सवाल खड़ा कर दिया है। कोरोना संकट काल में सामने आई इस रिसर्च रिपोर्ट ने भारत सरकार के होश उड़ा दिए हैं। भारत के गहन और व्यापक सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ है कि ग्रामीण भारत में कम से कम तीन में से दो डॉक्टरों के पास कोई औपचारिक मेडिकल डिग्री नहीं है। उनके पास चिकित्सा की आधुनिक प्रणाली में भी कोई योग्यता नहीं है। यह जानकारी सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य देखभाल उपलब्धता और गुणवत्ता को लेकर हुए सर्वे में सामने आई है। कोरोना काल में इस तरह के आंकड़े सामने आने से स्वास्थ्य मंत्रालय अलर्ट हो गया है।
वहीं, इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि देश के 75 प्रतिशत गांवों में कम से कम एक स्वास्थ्य सेवा प्रदाता है और एक गांव में औसतन तीन प्राथमिक स्वास्थ्य प्रदाता हैं। इनमें से 86 प्रतिशत निजी डॉक्टर हैं और 68 प्रतिशत के पास कोई औपचारिक चिकित्सा प्रशिक्षण नहीं है। यह तथ्य नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) के शोधकर्ताओं द्वारा किये गए सर्वे में पता चले हैं। देश के 19 राज्यों में 1,519 गांवों का सर्वे किया गया है।
यह रिपोर्ट ‘भारत में स्वास्थ्य कार्यबल’ पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2016 की रिपोर्ट का समर्थन करती है। जिसमें कहा गया था कि भारत में एलोपैथिक दवाओं की प्रैक्टिस कर रहे 57.3 प्रतिशत लोगों के पास कोई मेडिकल योग्यता नहीं है और 31.4 प्रतिशत केवल माध्यमिक विद्यालय स्तर तक शिक्षित हैं।
वहीं, सीपीआर के इस सर्वे में पाया गया कि औपचारिक योग्यता गुणवत्ता की भविष्यवाणी नहीं करते हैं। तमिलनाडु और कर्नाटक में अनौपचारिक प्रदाताओं का चिकित्सा ज्ञान बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रशिक्षित डॉक्टरों की तुलना में अधिक है। इस शोध के मुख्य लेखक जिश्नु दास जो वाशिंगटन के जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में मैककोर्ट स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी के प्रोफेसर और वॉल्श स्कूल ऑफ फॉरेन सर्विस में प्रोफेसर हैं, उन्होंने कहा है कि ग्रामीण परिवारों की विशाल जनसंख्या में अनौपचारिक प्रदाताओं जिन्हें आमतौर पर क्वैक्स (नीम-हकीम) कहा जाता है, वे स्थानीय स्तर पर उपलब्ध एकमात्र विकल्प हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य क्लीनिक या एमबीबीएस डॉक्टर इतने कम हैं या बहुत दूर हैं इसलिए ज्यादातर ग्रामीणों के लिए वे विकल्प नहीं होते हैं। मैंने जिन राज्यों (मध्यप्रदेश और पश्चिम बंगाल) में काम किया वहां ये सच है लेकिन मुझे इसका अहसास नहीं था कि केरल को छोड़कर हर राज्य में यही स्थिति है। इसलिए स्वास्थ्य नीति के दायरे में यह विचार है कि जैसे-जैसे राज्य समृद्ध होते हैं, अनौपचारिक प्रदाता स्वतः ही गायब हो जाएंगे, यह सच नहीं है।
यह स्थिति बेहद गंभीर है क्योंकि भारत की अधिकांश जनसंख्या इन्हीं के भरोसे बैठी हुई है। ग्रामीण भारत की जनता को इन्हीं का सहारा है।