बुंदेलखंड़ : सामुदायिक प्रयास से ‘जलग्राम’ बना जखनी गांव
आर.जयन
बाँदा. बुंदेलखंड ऐसा क्षेत्र है, जहां सूखे के दौरान सरकार ने मालगाड़ी के जरिये पीने का पानी भिजवाया था. ये ऐसा स्थान जहां जल संसाधनों की प्रचुरता है, छोटी-बड़ी लगभग 35 नदियां हैं. जिनमें पांच बड़ी और 30 प्रदेश स्तर की हैं. छोटे-बड़े लगभग 125 बांध हैं. 27,000 तालाब विद्यमान हैं. 52,000 कुएं, 200 नाले, 150 बावडियां और चंदेल, बुंदेल राजाओं द्वारा स्थापित लगभग 51 परंपरागत और प्राकृतिक जल संसाधन हैं. एशिया की सबसे बड़ी पेयजल योजना बुंदेलखंड़ के चित्रकूट जिले के पाठा में है. केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा जल की तमाम योजनाओं में अरबों रुपए खर्च करने के बावजूद भी बुंदेलखंड आज प्यासा क्यों है? मालगाड़ी से पानी भेजने की नौबत क्यों आई? क्या कारण है कि सरकारों के अनेकों प्रयासों के बावजूद भी समस्या ज्यों की त्यों बनी रही. सरकारों ने अपना काम किया. लेकिन जिनके लिए काम किया, उस समाज ने उन कामों के प्रति क्या जिम्मेदारी दिखाई? उन कार्यों को कैसे स्वीकार किया? सरकार के कार्यों में क्या सहयोग किया? क्या केवल भोगी बनकर उपभोग किया और उपलब्ध कराए गए संसाधनों का दोहन करके सरकारों के भरोसे छोड़ दिया या दिए गए संसाधनों से समस्या का स्थाई समाधान निकाल कर गांव, प्रदेश और देश की उन्नति में सहायक बने अथवा नहीं? यदि ऐसा होता तो सरकार को पीने का पानी मालगाड़ी से ना भेजना पड़ता. बुंदेलखंड पानी के लिए आत्मनिर्भर होता, स्वाबलंबी होता. लेकिन सरकार की अनेकों योजनाओं के चलते भी बुंदेलखंड का किसान आज भी बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहा है. गांव से पलायन हो रहा है. बुंदेलखंड के गांव के गांव खाली हो रहे हैं. कृषि और रोजगार के अभाव में कर्ज़ के सहारे लोग भूखे जिन्दा हैं. सूखी रोटी खाकर पेट भर रहे हैं.
इस समस्या के बाद भी बगैर किसी सरकारी अनुदान या सहायता के बिना समुदाय के कुछ जागरूक ग्रामीणों ने एक मिट्टी का दीपक जलाकर बुंदेलखंड के बांदा जिले के जखनी गांव को ‘पानीदार’ बना दिया है. किसानों ने अपनी परंपरागत खेती-किसानी का सहारा लिया और बिना किसी सरकारी और अतिरिक्त सहायता, संसाधन के गांव के बच्चे, बुजुर्ग, जवान स्त्री-पुरुष सभी ने गांव के जलदेव को जगाया.
दृढ संकल्पित इसी गांव के जल योद्धा उमाशंकर पांडेय (पूर्व पत्रकार) के नेतृत्व में ग्रामीणों ने अपने लिए नहीं, बल्कि अपने गांव के लिए, अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए सामुदायिक आधार पर फावडे, कस्सी, डलिया, टोकरा लेकर उमड़ पड़े और परंपरागत तरीके से पानी रोकने का बंदोबस्त किया. सबको एक ही चिंता थी कि पानी बनाया नहीं जा सकता, उगाया नहीं जा सकता, लेकिन प्रकृति द्वारा दिए पानी को रोककर सहेजा जा सकता है. पूरे गांव के लोगों ने खेतों की मेड़बंदी की और पानी को बरबाद होने से बचाया.
खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़ लगाया
मेड़बंदी के बाद अब बारी थी कि जल की निरंतर प्राप्ति के लिए पुख्ता इंतजाम क्या किया जाए। इसके लिए उमाशंकर ने समुदाय के साथ गांव के पानी का मैनेजमेंट किया और गांव के तालाबों को पुनर्जीवित कराया और खेतों की मेड़ से निकलने वाले अतिरिक्त पानी और गांव के बचे पानी का रुख तालाबों की ओर मोड़ दिया. यानी ‘खेत का पानी खेत में, गांव का पानी गांव में.’ इसका नतीजा यह रहा कि पहली बारिश होते ही ऊंची मेड़ के कारण खेतों ने जी भर कर पानी का संचय किया, खेतों का पेट भरने के बाद बाहर निकले पानी ने छह तालाबों को लबालब किया. अब इस गांव के हालात यह हैं कि जहां समूचा बुंदेलखंड़ बूंद-बूंद पानी को तरस रहे है, वहीं यह गांव देश के लिए एक ‘मॉडल’ के रूप में चर्चित हो गया है. यही नहीं, तालाबों के अलावा गांव के 30 कुंए भी पानीदार हो गए हैं.
किसानों ने खुद की तकदीर बदल ली
सूखे बुंदेलखंड में 15 वर्षों की मेहनत रंग लाई और जखनी गांव के किसानों ने पिछले वर्ष 21,000 हजार कुंटल बासमती धान और 13,000 हजार कुंटल गेहूं का उत्पादन किया. गेहूं, धान, चना, तिलहन, दलहन के साथ-साथ सब्जी, दूध और मछली पालन से जखनी के किसान समृद्ध और साधन संपन्न होने लगे हैं. यहां तक कि 4 बीघे के छोटे से छोटे किसान के पास भी आज अपना खुद का ट्रैक्टर है. 20 साल पहले जखनी गांव बांदा जिले का सबसे गरीब गांव था. एक भी युवा गांव में नहीं था, 99 फीसदी युवा पलायन कर गए थे, जो अब सब वापस गांव आ गए हैं. अब जखनी गांव प्रदेश का सबसे संपन्न गांव माना जाता है. सामुदायिक आधार पर चला यह सिलसिला यहीं नहीं रुका, गल्ला मंडियों में जखनी के किसानों के धान को अधिक मूल्य और सम्मान मिला तो सब्जी मंडी में भिंडी, बैंगन, प्याज, टमाटर की सर्वाधिक मांग होने लगी. इस वर्ष जखनी गांव के किसानों ने 2,000 कुंटल प्याज पैदा किया है. अब जखनी के किसानों की नकल आसपास के लगभग 50 गांवों के सैकड़ों किसान भी करने लगे हैं. बिना किसी सरकारी सहयोग के हुई इस जलक्रांति की खबर जब सरकार तक पहुंची तो भारत सरकार के जलशक्ति मंत्रालय के अधिकारियों ने जखनी का रुख किया. जल सचिव यू.पी. सिंह खुद जखनी आकर किसानों से मिल चुके हैं, उनके कार्य और परिणाम को देखा और सरकार के जलक्रांति अभियान के अंतर्गत ग्राम जखनी को संपूर्ण भारत के लिए जलग्राम की मान्यता मिली है.