“वर्तमान भारत सरकार का यह बजट गरीब व आम आदमी के खिलाफ योजनाबद्ध साजिश…”

वर्ष 2022-23 का आर्थिक बजट केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को देश के सामने रखा.

अविनाश काकड़े

लोग आशान्वित रहते हैं और हर वर्ष बजट के पेश होने के बाद निराश हो जाते हैं. कमोबेश इस वर्ष भी यही हाल बजट का रहा. लोगों की उम्मीदों से कोसों दूर 2022 का बजट देश के कुछ खास मुठ्ठीभर लोगों को समेटकर फायदा देने वाला व सामान्य जनों के लिए महज एक देशभक्ति व राष्ट्रनिर्माण के खोखले भाषण तक ही सीमित रहा. जन की आवाज को मजबूत करने की कोई तरकीब या एकाध कार्यक्रम भी केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मलाजी भारतवासियों को नहीं दे सकीं, यह हर वर्ष की तरह खेदजनक है.

कुल 39.45 लाख करोड़ रुपये के घोषित बजट में 15.06 लाख करोड़ रुपयों का वित्तीय घाटा है. मतलब हमारी कुल वार्षिक आय (प्राप्ति) का अनुमान केवल 22.84 लाख करोड़ रुपयों का है. बजट में वित्तीय घाटा जीडीपी का 6.5 प्रतिशत होगा. मतलब विदेशी, बाहरी संस्थाओं का कर्जा और बढे़गा. पिछले सात वर्षों में 2014-2022 तक भाजपा के नरेंद्र मोदी सरकार में विदेशी संस्थाओं का कुल कर्ज 55 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 160 लाख करोड़ रुपयों हो गया है. अब और विदेश का कर्जा बढे़गा, यह 2022 के बजट में साफ दिखाई दे रहा है.

बहुत सी घोषित योजनाओं पर कोई काम नहीं हो पाएगा, इसी तरह से इसकी घोषणा की गयी है – जैसे रेलवे से छोटे किसान को जोड़ना मतलब क्या व कैसे संभव होगा? एक स्टेशन एक उत्पाद योजना कैसे होगा? गंगा नदी से 5 किलोमीटर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती को बढावा देना? यह सब पुराणों की काल्पनिक कथाओं जैसी घोषणाएं हैं. इससे प्रत्यक्ष लोगों के जीवन में कैसे व क्या आर्थिक सकारात्मक बदलाव आयेंगे, इसका कोई विश्लेषण नहीं है.

सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर गेहूं, धान व तिलहन की खरीद के लिए हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी 2.37 लाख करोड़ रुपयों का प्रावधान किया है, यह पिछले वर्ष से 11 हजार करोड़ रुपये कम है. बजट पेश करते समय इस पर काफी जोर दिया गया. पर इस वर्ष के बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय भाव के तहत सरकार की यह राशि भी पूरी तरह से खर्च होगी, ऐसा दिखता नहीं है. यह प्रावधान कम होने से देश के ज्यादातर किसानों को लाभ नहीं मिलेगा.

44 हजार करोड़ रुपये की “केन बेतवा संपर्क परियोजना” के क्रियान्वयन से 9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई बढ़ाने की एकमात्र घोषणा की गई है. पूरे देश में सिंचाई के क्षेत्र को बढ़ाने के लिए देश में 2 हजार लाख हेक्टेयर असिंचित कृषि की जमीन में से इस वर्ष मात्र 9 लाख हेक्टेयर सिंचाई का क्षेत्र बजट में रहेगा तो कुल सिंचाई का क्षेत्र कैसे बढे़गा, इसपर कोई स्पष्टता नहीं है. इसी तरह से योजनाओं का नियोजन रहा तो अगले 200 वर्षों में भी हम सिंचाई का लक्ष्य पूरा नहीं कर पाएंगे. प्राकृतिक खेती के नाम पर लोगों को एक आह्वान व लालच दिखाने की कोशिश तो की है, पर देश के कुल उत्पादन में बढ़ोत्तरी के लिए आवश्यक बीज, दवाई, खाद, निविष्टाओं पर नियंत्रण व सुलभता के लिए 2022 के बजट में पिछले वर्ष के बजट 1 लाख 40 हजार करोड़ की जगह घटाकर 1 लाख 5 हजार करोड़ रुपये कर दिया गया है. मतलब इसमें 35 हजार करोड़ रुपये कम किए गये हैं. कच्चे तेल पर टैक्स बढ़ने की बात की गयी है, इससे घरैलू गैस, पेट्रोल व डीजल की कीमतें और बढ़ेंगी. इससे खेती में लगनेवाले फर्टीलाइजर खाद आदि वस्तुओं की कीमतें आनेवाले समय में और ज्यादा बढ़ेंगी. इसका असर ग्रामीण कृषि क्षेत्र विकास पर होगा. खेती के सवालों को मोड़ देकर उससे पल्ला झाड़ने की यह सरकार की नीति स्पष्टता से दिखाई देती है.

देश में 6.5 करोड़ परिवार में गरीबी बढ़ी है. 60 लाख छोटे व्यवसाय उद्योग बंद हुए हैं. 54 प्रतिशत लोगों की सालाना आय घटी है. इस क्षेत्र को बढ़ावा देने की दृष्टि से इस बजट में किसी प्रकार का कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन बड़े पूंजिपतियों के कार्पोरेट घरानों में व्यक्तिगत व सामूहिक रूप से फायदा पहुचाने की पूरी योजना इस बजट में है. पिछले दिनों में कार्पोरेट टैक्स 30 प्रतिशत से 25 प्रतिशत, फिर 22, 18 और अब 15 प्रतिशत करने की घोषणा कर दी गई है. इसी के साथ सरचार्ज 15 से 12 प्रतिशत किया गया था और अब इसे घटाकर 7 प्रतिशत करने की घोषणा की गई है. मतलब साफ है कि अंबानी अडाणी जैसे गिने-चुने अमीर लोग, जिनकी सालाना आमद दो-तीन-चार लाख करोड़ रुपयों में है, उन्हें सालाना 10 से 15 हजार करोड़ रुपये का व्यक्तिगत टैक्स रिलीफ भी मिलेगा. पिछले वर्ष में 143 बडे़ पूंजिपतियों की आय 23 लाख करोड़ रुपयों से बढ़कर 56 लाख करोड़ रुपये हुई है. जाहिर है कि इन लोगों की इस बचत में से कुछ हिस्सा सत्ता पक्ष व उनके लोगों के हिस्से में पहुंचेगा. मतलब वर्तमान नरेंद्र मोदी की भाजपाई सरकार ने इस बजट के माध्यम से व्यवस्थित तरीके से अमीरी, गरीबी में आर्थिक विषमताएं बढ़ाने की योजना बनाई है.

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इस अर्थसंकल्प में शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा देने के लिए कोई तत्परता नहीं दिखाई दे रही है. पिछले दो वर्षों में स्वास्थ्य चिकित्सा का इतना बड़ा सवाल उभरने के बाद सरकार कोई बडा़ कदम व महत्वाकांक्षी योजना लाएगी, ऐसी उम्मीद थी, लेकिन ऐसा इस बजट में दिखाई नहीं दे रहा है. पिछले वर्ष के 85,900 करोड़ रुपयों में केवल एक हजार करोड़ रुपये बढ़ाकर 86900 करोड़ रुपयों का बजट इस वर्ष जाहिर किया गया है. शिक्षा में 88 हजार करोड़ रुपयों की जगह एक लाख करोड़ रुपयों की घोषणा की गई है. इससे देशस्तर पर शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में उद्देश्य की प्राप्ति कैसे होगी, इसका कोई ठीक विश्लेषण भी नहीं है. मनरेगा जो एकमात्र योजना रह गया है, जिसके तहत ग्रामीण लोगों को पिछले दिनों में काम मिला था, इस वर्ष इस योजना को कम करके 98 हजार करोड़ रुपयों के बदले में महज 73 हजार करोड़ रुपयों का ही प्रावधान किया गया है. खाद्य सब्सीडी 2.09 लाख करोड़ की जगह पर 2.01 लाख करोड़ रुपये की गयी है. मतलब 8 हजार करोड़ रुपये इसमें पिछले वर्ष से कम है. गरीबों की संख्या बढ़ रही है और अनाज की सहायता का बजट कम हो रहा है. रोजगार – मनरेगा, शिक्षा, स्वास्थ्य चिकित्सा, खाद फर्टीलाइजर व ग्रामीण विकास की योजनाओं में कटौती की गयी है. इस बजट में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर कोई बात नहीं की गई है. पिछले वर्ष सरकार की घोषणा के अनुसार देश में हर वर्ष 10 हजार किसान उत्पादक (FPO) संगठन बनाने के लिए आवश्यक प्रावधान नहीं किया गया है. देखा जाए तो ग्रामीण क्षेत्र को पूरी तरह से इस बजट में बेदखल किया गया है.

सरकार की घोषणा के अनुसार 2014 से 2022 तक हर वर्ष 2 करोड़ युवाओं को रोजगार देना था, ग्रामीण – किसान की सालाना आमदनी दुगुनी करनी थी, देश के हर परिवार को पक्का मकान देना था, सबको पूरे समय बिजली देनी थी, हर घर में शौचालय व हर घर में पानी के नल की सुविधा देनी थीं, 1लाख 75 हजार गांव – कसबे तक पक्की सड़कों का निर्माण करना था, गांव व शहरों से गरीबी को खत्म करना था. इन सब बातों को लेकर किसी प्रकार की कोई बात इस बजट में दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रहीं है.

वर्तमान सरकार के इस बजट से यह साफ हो रहा है कि देश में कुछ मुठ्ठीभर लोगों के फायदे के लिए पूरे देश को योजनाबद्घ तरीकेसे अपाहिज़ करने की योजना पेश की गयी है. आम आदमी को सरकार के इस षडयंत्र को समझने की जरुरत है.

(लेखक अविनाश काकड़े, सेवाग्राम, वर्धा-महाराष्ट्र से हैं)

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