सामान्य औषधियों से भी सफल चिकित्सा होती है: बस निदान सही हो!!

अश्वगंधा में वायु, आकाश, वायु, अग्नि अग्नि और पृथ्वी महाभूत के गुण

डाक्टर मदन गोपाल वाजपेयी
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी

12 अगस्त 2021 शुक्रवार का दिन, अहिरगुवां, पन्ना(म.प्र.) के प्रतिष्ठित व्यक्तित्व और आयुषग्राम ट्रस्ट,चित्रकूटधाम के सहयोगी तथा मेरे आत्मीय श्री श्याम प्रकाश शुक्ल (61 वर्ष) को ‘आयुषग्राम (ट्रस्ट) के चिकित्सालय चित्रकूट में लेकर आए। वह हार्ट के मरीज़ थे और उन्न्हें 15 दिन से लगातार भयंकर चक्कर आ रहे थे। दो साल पूर्व इन्हें भयंकर हार्ट अटैक हुआ था। परिजनों ने प्रेम नर्सिंग होम सतना में भर्ती कर दिया था। डाक्टरों ने बाईपास सर्जरी की जोरदार सलाह दी थी, किन्तु हमने इन्हें आईसीयू से निकलवा कर आयुष ग्राम चिकित्सालय चित्रकूट में भर्ती कर आयुष कार्डियोलोजी से ‘बाईपास सर्जरी’ की चुनौती स्वीकार कर इन्हें पूर्ण आरोग्य लाभ दिया था। 

चक्कर आने के शिकायत

अब जब चक्कर आने के शिकायत लेकर डॉक्टरों के पास गये तो सरवाईकल स्पोंडिलाइटिस की शिकायत बताई। इन्हें चक्कर तो ऐसे आते थे कि किसी तरह दिनचर्या निपटाने के बाद ये अधिकांश समय लेटे ही रहते थे। 

हमें जानकारी हुई तो हमने परिजनों से उन्हें तत्काल आयुषग्राम चित्रकूट भेजने का आग्रह किया। वे श्री शुक्ल जी को 12 अगस्त 2021 को यहाँ छोड़ गए। 

निदान के क्रम में जब केस हिस्ट्री ली गई तो यह तथ्य उभर कर आया कि इन्हें चक्कर के अलावा दुर्बलता, अवसाद, बेचैनी, घबराहट, सांस फूलना, जीर्ण विबन्ध आदि समस्याएँ हैं। शरीर में स्थौल्यता, पेट निकला हुआ। 

इनकी जीवन शैली में दिवा शयन, श्रमहीन जीवन, पान, सुपारी, कत्था, चूना और पिपरमेंट, कालीमिर्च, दालचीनी, लौंग, तुलसी का काढ़ा दिन में 2 बार। 

  • पेट साफ करने हेतु 5 प्रकार के चूर्ण, बवासीर के नाम पर कई सालों से हरड़ के विभिन्न प्रकार के कल्पों का सेवन। भोजन में ‘रिच डाइट’। 
  • प्रारम्भिक निदान करने पर वात और पित्त वृद्धि, स्रोतोरोध, धातुक्षय के लक्षण स्पष्ट थे। 
  • बहुत ही शांत स्वभाव का व्यक्तित्व पर क्रोध, चिड़चिड़ापन, रुदन, निराशा आदि के लक्षण थे। दुनियाँ के प्रथम शल्य वैज्ञानिक आचार्य सुश्रुत बताते हैं कि “रजः पित्तानिलाद्भ्रमः॥ (सु.शा. 4/54) यानी भ्रम (vertigo = चक्कर) आने में रजोगुण, पित्त और वायु की भूमिका ही रहती है। सन्निकृष्ट और विप्रकृष्ट निदान, तदनुसार, संप्राप्ति, खवैगुण्य, स्रोतस् दुष्टि आदि पर विचार करने पर स्पष्ट था कि यदि सरवाईकल स्पोंडिलाइटिस है भी तो उसके मूल में गलत जीवन शैली फिर रजोगुण, वात, पित्त प्रकोप ही है। जिसमें स्पोंडिलाइटिस के लक्षण या चक्कर कोई रोग थोड़े ही है वह तो शरीर के वातादि दोषों से उत्पन्न लक्षण/विकार हैं। 

हमने यह निर्णय ले लिया कि हमें इस बार इसमें कोई रसौषधियों का प्रयोग नहीं करना, और न ही स्वर्णघटित योग का। चूंकि 10 दिन पूर्व इन्हें कुछ बस्तियाँ भी दी जा चुकी थीं अतः संप्राप्ति घटकों पर ध्यान रखते हुए हमने केवल एक साधारण सा योग प्रेसक्राइब किया

  •  अश्वगंधा चूर्ण 5 ग्रा. शुण्ठी चूर्ण 2 ग्रा. वनतुलसी चूर्ण 250 मिग्रा मिलकर प्राग्भक्त अवस्था में गर्म पानी से। 

आहार में सुबह 8 बजे भोजन/नाश्ता में 150 ग्राम दलिया/खिचड़ी या किनोवा गरम-गरम और गोघृत 2 चम्मच गरम-गरम। 

दोपहर में- 200 ग्राम नाशपाती छीलकर। 

रात का भोजन सूर्यास्त से पूर्व 4 रोटी, हरी सब्जी, मूंग की दाल पतली 1 कटोरी, थोड़ा चावल। 

पान सुपारी पिपरमेंट और तुलसी आदि काढ़ा का निषेध कराया। 

परिणाम: औषधि सेवन के 24 घंटे बाद आंशिक परिणाम दिखने लगा। भ्रम (चक्कर) में कमी आई, बेचैनी, निराशा, उदासी, सांस फूलना, घबराहट भी कम हुई।

पर अचानक भोजन की मात्रा संतुलित कर देने से वे अधीर हुये, हमें उन्हें सांत्वना दिया। एक सप्ताह की उक्त चिकित्सा और आहार तथा जीवन शैली परिवर्तन से श्री शुक्ल जी 90% ठीक होकर 22 अगस्त को अपने घर चले गए। बताइये! कितनी सहज चिकित्सा है आयुर्वेद में। 

दुनियाँ के महान काय चिकित्सक और चिकित्सा वैज्ञानिक ‘फादर ऑफ मेडिसिन’ महर्षि चरक एक सूत्र देते हैं – 

एका शांतिरनेकस्य तथैवेकस्य लक्ष्यते।

व्याधिरेकस्य चानेका बहूनां बह्वय एव च॥ च.नि. 8/30

अर्थात, अनेक रोगों की एक चिकित्सा होती है तो एक रोग की अनेक चिकित्सा होती है तथा अनेक रोगों की अनेक चिकित्सा भी होती है। 

इस केस में हमने अश्वगंधा, शुण्ठी और वनतुलसी का प्रयोग पूर्ण आयुर्वेद विज्ञान सम्मत तरीके से ही किया। आचार्य भाव मिश्र गुडुच्यादि वर्ग प्रकरण में बताते हैं कि “अश्वगंधाsनिलश्लेष्मश्वित्रशोथक्षयापहा। बल्या रसायनी तिक्ता कषायोष्णाsतिशुक्रला”॥ यानी अश्वगंधा तिक्त, कषाय रस और उष्ण गुणयुक्त होने के साथ साथ ‘अतिशुक्रला’ यानी शुक्र धातु को अत्यंत बढ़ाता है। इधर सोंठ का संयोग हो जाने से यह विशेष रूप से वातशामक विबन्ध (constipation) नाशक धातुवर्धक स्रोतोरोध नाशक अग्निवर्धक साथ साथ पेट फूलना उदर की वायु को मिटाने वाला बन गया। क्योंकि शुण्ठी को आचार्य भावमिश्र ने स्निग्धोष्णा कफवात विबन्धनुत्, वृष्या, हन्ति आनाहोदरमारुतान् तोयांशपरिशोषि बताया है। चूंकि इस केस में धातुक्षय, वातवृद्धि, रजोगुणवृद्धि जीर्ण विवन्ध, स्रोतोरोध, उदरवायु स्पष्ट थे जिसका परिणाम था भ्रम (चक्कर)।

चिकित्सा में एक तथ्य ध्यान देने योग्य है कि जैसे अतिव्यवायिनो व रेतसि क्षीणे प्रतिलोम क्रमेण अनन्तरा: सर्वे धातवो रसपर्यन्ता: क्षीयते (भा.प्र. क्षयरोग) अर्थात्, अत्यधिक मैथुन करने वाले व्यक्ति का वीर्य क्षीण होने से वीर्य के नीचे की रसपर्यंत धातु उल्टे क्रम में क्षीण होने लगते हैं तो वैसे ही शुक्रल द्रव्यों के सेवन से शुक्र धातु के पुष्ट होने से शुक्र से नीचे की रस पर्यंत धातु (मज्जा, अस्थि, मेद, मांस, रक्त और रस) पुष्ट होने लगते हैं। एक विषय और ध्यान देने योग्य है कि यह धातु परिपोषण अग्नि व्यापार क्रम के व्यवस्थित हुये और  प्राण, अपान, समान वायु के सम्यक् हुए तथा स्रोतोरोध नष्ट हुए बिना हो ही नहीं सकता। 

इस प्रकार, इस केस में जैसे ही धातुक्षय दूर हुआ तो वात का शमन हुआ और रजोगुण शांत होने लगा क्योंकि “रजोबहुलां वायु:”॥ लंबे समय का विबन्ध (कब्ज) जिसमें वे 5-5 प्रकार के चूर्ण खाते थे वह टूटने लगा, आँतें सक्रिय हुईं, पक्वाशयगत वायु का अनुलोमन हूआ। इसी क्रम में पाठकों को यह बताना है कि जो लोग कब्ज की शिकायत करते रहते हैं और कब्ज के लिए अनेक चूर्ण खाते रहते हैं वह कब्ज की मूल चिकित्सा नहीं है। जब तक वात और अग्नि की स्थिति सम्यक् नहीं बनती तब तक कब्ज मिटता ही नहीं और दूसरे रोग पैदा होने लगते हैं। अग्नि के बढ़ने से सतोगुण का उद्भव, सतोगुण के उद्भव से रज तथा तम अभिभूत होने लगते हैं। रजस्तमश्चाभिभूय सत्वं भवति भारत॥ श्रीमद्भवद्गीता 4/10॥     

अब एक प्रश्न बन सकता है कि यदि हमें इस केस में आयुर्वेद के शुक्रल द्रव्यों का ही प्रयोग करना था तो अश्वगंधा का ही क्यों चयन किया, वह इसलिए कि अन्य शुक्रल द्रव्य शतावर, मूसली, कपिकच्छु आदि शुक्रल तो हैं पर मधुर, स्निग्ध शीत गुरु गुण होने के कारण स्रोतोरोध निवारण और अग्निवर्धन में सहायक नहीं हैं क्योंकि ये द्रव्य पृथ्वी और जल महाभूत प्रधान द्रव्य हैं जो जाठराग्नि को मंद करते हैं। जबकि अश्वगंधा में वायु, आकाश, वायु, अग्नि अग्नि और पृथ्वी महाभूत के गुण हैं जो स्रोतोरोध को नष्ट कर अग्नि को अवश्य बढ़ाते हैं।

इस प्रकार बिल्कुल सामान्य चिकित्सा व्यवस्था से श्री शुक्ल जी भयंकर समस्या से मुक्त हो गए।

नोट : वैद्य डा मदन गोपाल वाजपेयी इस प्रयोग पर अपने विचार टिप्पणी अवश्य भेजें.

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