सरकार द्वारा कोविड 19 में कारगर आयुर्वेदिक दवाओं की घोर उपेक्षा

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के डाक्टरों में नाराज़गी


काशी हिन्दू विश्व विद्यालय में आयुर्वेदिक विशेषज्ञों का कहना है कि आयुर्वेदिक दवाईयां कोरोना से बचाव में काफी उपयोगी हैं। इनके उपयोग से मरीजों को बचाया जा सकता है। लेकिन केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार इनकी घोर उपेक्षा कर लोगों के जीवन से खिलवाड़ कर रही हैं. कुछ आयुर्वेद विद्वान तीन दिन के भीतर मरीजों के स्वास्थ्य में उल्लेखनीय सुधार का दावा कर रहे हैं।आयुर्वेद के विशेषज्ञ अपने स्तर से लगातार शासन और प्रशासन को इसकी जानकारी देकर मरीजों के इलाज में आयुर्वेदिक दवाओं के प्रयोग की गुहार भी लगा रहे हैं।मगर सरकार लगातार अनसुनी कर आयुर्वेदिक रसायनों और डाक्टरों की उपेक्षा रही है.

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आयुर्वेदिक दवाएं रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ायें


विशेषज्ञों का कहना है कि आयुर्वेदिक दवाईयां व्यक्ति के रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ साथ कोरोना के इलाज में काफी कारगर साबित हुई हैं। इसके प्रयोग से मरीजों को बचने की संभावना काफी हो जाती है।

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उनका यह भी कहना है कि एलोपैथी में कोरोना की कोई उपयुक्त दवा नहीं है. वह संभावनाओं और लक्षणों के आधार पर इलाज कर रहे हैं। बार – बार इलाज और दवाएँ बदल रहे हैं . ऐसे में आयुर्वेद डाक्टरों को भी सैकड़ों साल से अनुभूत परम्परागत तरीक़े से कोविड मरीजों के इलाज का मौका मिलना चाहिए।

चीन, ताइवान, कोरिया, श्रीलंका और अफ्रीकी देशों की सरकारों ने अपनी परम्परागत चिकित्सा पद्धति के ज़रिए बीमारी के नियंत्रण में कामयाबी पाई. भारत में भी केरल, तमिलनाडु, आंध्र, तेलंगाना, मध्य प्रदेश और कर्नाटक , महाराष्ट्र की सरकारें आयुर्वेद, सिद्ध एवं अन्य पुरानी परम्परागत चिकित्सा का इस्तेमाल कर लोगों को घर पर स्वस्थ कर रही हैं और मृत्यु दर काम रखी है. आयुर्वेद की सबसे ज़्यादा उपेक्षा उत्तर प्रदेश में है.

चीन, ताइवान, कोरिया, श्रीलंका और अफ्रीकी देशों की सरकारों ने अपनी परम्परागत चिकित्सा पद्धति के ज़रिए बीमारी के नियंत्रण में कामयाबी पाई. भारत में भी केरल, तमिलनाडु, आंध्र, तेलंगाना, मध्य प्रदेश और कर्नाटक , महाराष्ट्र की सरकारें आयुर्वेद, सिद्ध एवं अन्य पुरानी परम्परागत चिकित्सा का इस्तेमाल कर लोगों को घर पर स्वस्थ कर रही हैं और मृत्यु दर काम रखी है. आयुर्वेद की सबसे ज़्यादा उपेक्षा उत्तर प्रदेश में है.

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के आयुर्वेद संकाय के पूर्व प्रमुख प्रो यामिनी भूषण त्रिपाठी ने बीते वर्ष केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर आयुर्वेद को कोविड मरीजों के इलाज में शामिल करने की मांग की थी। दूसरे दौर में वाराणसी में बढ़ते कोराना केसों से चिंतित होकर प्रोफेसर त्रिपाठी ने वाराणसी के जिलाधिकारी को भी एक पत्र लिखकर कोविड मरीजों के इलाज में आयुर्वेदिक दवाओ के प्रयेाग की सलाह दी। उन्होंने आयुर्वेद संकाय के विभिन्न प्रोफेसर्स डा नम्रता जोशी और सुशील दुबे आदि द्वारा किए गए व्यक्तिगत प्रयासों और शोध का उल्लेख भी किया।

प्रोफ़ेसर यामिनी भूषण त्रिपाठी

साथ ही इलाज में चिकित्सक की देखरेख में प्रयोग की जाने वाली दवाईयों मल्ल चंद्रोदय, स्वर्ण बसंत मालती रस, स्वर्ण सूतसेखर रस लक्ष्मीनिवास रस, गोदंती भस्म, शृंग भस्म प्रवाल पंचामृत शुद्ध टंकण भस्म अभ्रक भस्म सितोपलाद चूर्ण शिरिषादी वटी दशमूल क्वाथ गिलोय घन वटी आदि की जानकारी भी दी है। प्रोफेसर त्रिपाठी आयुर्वेदिक इलाज के माध्यम से आक्सीजन संकट से छुटकारा पाने की बात कही है।

आयुर्वेद को पहुंचा रहे नुकसान


काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के आयुर्वेद संकाय के पूर्व डीन प्रोफेसर यामिनी भूषण त्रिपाठी ने कहा कि अपने ही विभीषण आयुर्वेद को नुकसान पहुंचा रहे हैं। यह आयुर्वेद को प्रतिष्ठित करने में कहीं न कहीं बाधक है। प्रो त्रिपाठी कोविड 19 बीएचयू मेडिकल इंस्टीट्यूट के डॉक्टरों की सिफारिशों पर अमल क्यों नहीं विषय पर मीडिया स्वराज़ द्वारा आयोजित ऑनलाइन परिचर्चा में बोल रहे थे।

नीति आयोग ने आयुर्वेदिक प्रोटोकोल का संज्ञान नहीं लिया

उन्होंने बताया कि सरकार को नीति आयोग को आयुर्वेद संकाय के चिकित्सकों की टीम द्वारा कोविड 19 के इलाज के लिए तैयार प्रोटोकाल को भेजा गया था। जिसे संज्ञान में नहीं लिया गया। इस वर्ष फिर प्रदेश सरकार और जिलाधिकारी वाराणसी को भी प्रोटोकाल भेजा गया। पर उत्साहजनक रिस्पांस नहीं मिला।

विद्वानों की यह भी पीड़ा रही कि उनके द्वारा तैयार प्रोटोकाल को एलोपैथिक दवाईयों के साथ इस्तेमाल करने की इजाजत दी गई। इससे दवाइयों के मूल्यांकन में कठिनाई है. आयुर्वेद को स्वतंत्र प्रयोग की अनुमति नहीं मिली। जबकि बीएचयू आयुर्वेद संकाय के पास 250 बेड का अपना अस्पताल है। विडंबना यह है कि उसे कोविड काल में जबरन बंद करा दिया गया है। इसके बाद आयुर्वेद से ठीक होने वाले मरीजों का डेटा मांग रहे हैं।

आयुर्वेद एक स्वतंत्र चिकित्सा पद्धति

विद्वानों ने बल देकर कहा कि हजारों साल से आयुर्वेद एक स्वतंत्र चिकित्सा पद्धति है। इसका अपना सिस्टम है। संसद के कानून से आच्छादित है। हमें चिकित्सा करने की अनुमति है तो कोविड के मरीजों का इलाज करने से क्यों रोका जा रहा है . हमारे पास ऐंटी वायरल और हर तरह के ड्रग हैं जबकि एलापैथी दूसरी दवाओं की रिपर्पजिंग करके मरीजों का इलाज कर रहा है और वह जानलेवा भी साबित हो रही हैं.

आयुर्वेद के प्रोटोकाल को स्वीकृति नहीं


विद्वानों ने बीएचयू के प्रोफसर्स द्वारा तैयार आयुर्वेदिक औषधियों और शास्त्रीय औषधियांे के प्रयोग से ठीक होने वाले मरीजों का ब्यौरा परिचर्चा मंे साझा किया। बीएचयू आयुर्वेद के प्रोटोकाल को स्वीकृति नहीं मिलने पर बोलते हुए विद्वानों ने कहा कि आयुर्वेद को राजाश्रय नहीं मिला। इसके चलते इसका उत्थान नहीं हुआ। प्रधानमंत्री ने एक आयुर्वेद चिकित्सक को सचिव का दर्जा प्रदान कर आयुष मंत्रालय में बैठाया पर उसकी सुनी नहीं जा रही है। यह आयुर्वेद के खिलाफ है।

आयुर्वेद की तीन आधारभूत बातें

आयुर्वेद के दुर्दशा पर पर बोलते हुए कह कि इसके डाक्टरों ने खुद अपनी पद्धति पर ध्यान नहीं दिया। आयुर्वेद की तीन आधारभूत बातें पर ध्यान दें तो इसमें कोविड में बड़ी संख्या में मौतों को बचाया जा सकता है। आयुर्वेद में देव्यापाश्रय (स्पिरिचुअल हीलिंग) सत्ववजरू (साइकोलॉजिकल कान्फिडेंस बिल्डिंग) और युक्तिव्यापाश्रय (औषधि चिकित्सा) की व्यवस्था है। कोविड या इससे उत्पन्न मानसिक अवसाद का इलाज भी आयुर्वेद के इन सिद्धातों से किया जा सकता है।

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परिचर्चा में आयुर्वेद के मान सम्मान और स्वतंत्र चिकित्सा पद्धति की स्थापना के लिए संघर्ष करने पर जोर दिया गया। इसके लिए पीआईएल के जरिए न्यायालय से अधिकार पाने की जरुरत पर जोर दिया गया।

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परिचर्चा में बीबीसी के पूर्व संवाददाता रामदत्त त्रिपाठी के साथ आईएमएस बीएचयू से चार विद्वान पूर्व डीन प्रोफेसर यामिनी भूषण त्रिपाठी रसशास्त्रकी प्रोफेसर नम्रता जोशी डॉ परमेश्वर ब्यागदी और डॉ सुशील कुमार द्विवेदी के साथ ईस्टर्न सांइटिस्ट के संपादक और आयुर्वेद चिकित्सक डॉ आर अचल ने अपनी बात रखी।

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