घर-घर आयुर्वेद और विडम्बनायें


*डॉ.आर.अचल

डॉ आर.अचल पुलस्तेय
डॉ आर.अचल पुलस्तेय

हर दिन आयुर्वेद-हर घर आयुर्वेद योजना का स्वागत है,स्वागत करना भी
चाहिए। सरकार द्वारा आयुर्वेद को जन-जन तक पहुँचाने की सराहनीय पहल
है।परन्तु अभी देख रहा हूँ,अक्सर देखता हूँ,आप भी देखते है कि आयुर्वेद के नाम
पर स्वास्थ्यवृत्त दिनचर्या,परिचर्या, ऋतुचर्या,आहार,विहार,भोजन-पानी पर
कार्यक्रम हो रहे है।आयुर्वेद के नाम अक्सर यही होता भी है।इससे आगे बढ़ते है
तो गिलोय, त्रिफला, च्यवनप्रास,असगंधा,शातावरी,काली मिर्च, लहसुन,
प्याज,बेल,जीरा,धनियाँ, दूध, दही,घी, गोमूत्र,इम्यूनिटी पर आयुर्वेद खत्म हो
जाता है।जनता में आयुर्वेद की एक छवि बन जाती है,कि आयुर्वेद रोगो से
बचाने,इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए है न कि चिकित्सा के लिए इसलिए सिरदर्द,
डायरिया, डिसेन्ट्री, खाँसी, बुखार,मलेरिया,जलने,कटने,न्यूमोनिया आदि किसी
भी प्रकार की बीमारी होने पर लोग अंग्रेजी मेडिकल स्टोर पर पहुँच जाते
है,गोलियाँ खरीद कर खा लेती है।इससे आगे बढ़े तो अंग्रेजी प्रेक्टिस कर रहे
आयुर्वेद चिकित्सकों के पहुँचते है,जहाँ वही अंग्रेजी सूई-दवायें मिल जाती हैं। कुछ
बड़ा रोग हुआ या रो गंभीर हो गया तो नर्सिंग होम,स्पेशलिस्ट-सुपर स्पेशलिस्ट
के यहाँ पर लाईन लगा लेते हैं। कुछ लोग आयुर्वेद की दवायें सीधे आयुर्वेदिक
स्टोर्स के स्वयं खरीद कर आवश्यक-अनावश्यक रूप से इसलिए खाते रहते है कि
खा लो यार, कुछ तो फायदा करेगी ही,नही किया तो कम से कम नुकसान तो
करेगी नहीं।
इधर आयुर्वेद के बी. ए.एम.एस,एमडी,एम.एस क्लिनिक खोलकर ऐलोपैथिक
प्रेक्टिस करते है यदि साहस किया तो खाली बैठे दिन काटते है । यदि मेडिकल
अफसर बन गये तो सरकार द्वारा सप्लाई दवायें भी बाँटने के लिए मरीजो का
इन्तजार कर ड्यूटी करते हैं। संविदा,एन.एच.आर.एम है तो अंग्रेजी डाक्टरों का
सहयोग करते है,या बंधुआ मजदूर की तरह टेम्प्रेचर देखते है. या फाईल भरते
है,दवाई तो ऐलोपैथी वाले ही लिखगे ।एक दिन एन.एच.आर.एम ने संविदा
नियुक्त एक चिकित्सक बता रहे थे कि हम गाँव ने जाते है-मरीज देखते है पर
दवा नहीं लिख सकते है,उन्हें अस्पताल के एम.बी.बी.एस के पास रेफर करते
हैं।नर्सिंग होम्स की असली जिम्मेदारी आयुर्वेद चिकित्सक ही निभाते है परन्तु

असली चिकित्सक अंग्रेजी डाक्टर ही होता हैं।इस हालत के लिए आयुर्वेद के
कालेज,फैकल्टी और चिकित्सक भी कम जिम्मेदार नहीं है।शायद उन्हें भी ऐसा
करने में सुविधा रहती है क्योंकि मरीज शिकायतों पर दिमाग खापने से मुक्त
रहते हैं।इस बात की टेंशन नहीं होती है कि अगली बार मरीज आकर यह कहेगा
कि-साहब आराम नहीं हैं।
इस स्थिति के लिए आयुर्वेद को घर-घर पहुँचाने के अभियान में सरकार और
आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज या आयुर्वेदिक चिकित्सक अभी तक जनता को यह
समझानें में असफल रहे है या कहें तो कोशिश ही नहीं की है आयुर्वेद एक सम्पूर्ण
चिकित्सा पद्धति है।आयुर्वेद की दवायें भी बिना चिकित्सक के परामर्श लिए खाने
से उचित प्रभावकारी नहीं होती है।गलत या अनावश्यक प्रयोग से नुकसान भी
करती हैं।आयुर्वेद की दवायें केवल जड़ी-बूटी,किचन मेटेरियल नहीं
केमिकल,पारद,भस्म,विषाक्त द्रव्यो से भी बनती हैं।इसलिए देश की नब्बे
प्रतिशत जनता यह नहीं जानती है,आयुर्वेद में शल्य क्रिया(सर्जरी) भी होती
है,जिसकी बकायदे पढ़ाई और डिग्री दी जाती है। रस औषधियाँ अंग्रेजी दवाओं
की ही तरह तात्कालिक प्रभाव भी दिखाती है। सर्दी,जुकाम,रक्तस्राव,मलेरिया,
टायफायड,न्यूमोनिया,पीलिया,दर्द,डेंगू,वायरल
बुखार,लीवर,गुर्दे,डायरिया,डिसेन्ट्री,मनोरोग,आदि की भी सफल चिकित्सा
संभव होती है। इसलिए इस योजना में आम जनता से आयुर्वेद के सर्वांगिक
परिचय भी कराने की भी जरूरत है।ऐसे आयुर्वेद चिकित्सको की पहचान किया
जाना चाहिए जो शतप्रतिशत आयर्वेद से चिकित्सा करते है।
इस आपाधापी भऱी जिन्दगी में जीवन शैली सुधारना सबके वश में बात नहीं
है,हजारो साल पुरानी आदर्श जीवन शैली को वर्तमान में राष्ट्रपति और राज्यपाल
के अलावा शायद ही कोई पालन कर सके।क्योंकि पीएम,सीएम,डीएम
पत्रकार,डाक्टर.बिजनेसमैन,स्टूडेंट के जागने सोने का समय अनिश्चित है। बाजार
में मिलावटी खाद्यपदार्थ,पेप्टीसाइज वाले अनाज,सब्जियाँ,फल ही नहीं
दूध,चिकेन,मटन के उत्पादन में भी भाई मात्रा में केमिकल दवाओं का इस्तेमाल
हो रहा है,जो अन चाहे आदमी के शरीर ने जा रहा हैं।फास्ट फुड और टीफिन का
कहना ही क्या है।ऐसे मे आयुर्वेदिक जीवन शैली,दिनचर्या,ऋतुचर्या भला क्या
कर लेगी।इस प्रकार रोग-विकार जिन्दगी के अपरिहार्य हिस्सा बन चुके है।
रेजिस्टेंट होती अंग्रेजी दवाओं के विकल्प के रुप आयुर्वेद चिकित्सा में अपार
संभावनायें है,इसलिए आयुर्वेद की महत्ता सिद्ध करने के लिए आयुर्वेद
चिकित्सकीय कौशल का प्रचार-प्रसाद किया जाना चाहिए न कि आयुर्वेद का

मेला लगाकर पब्लिक में सेल्फ आयुर्वेद ट्रीटमेंट का प्रोत्साहित करना
चाहिए।आयुर्वेद की चिकित्सकीय क्षमताओं का आम जनता से परिचय करना
इस अभियान का लक्ष्य होना चाहिए ।
आयुर्वेद के विकास में अहम यह समस्या यह है कि आयुर्वेदीय औषधियों के योगो
के बहुत सारी घटकीय वनस्तियाँ विलुप्त प्राय हो चुकी हैं,जो बची है उन्हें आँख
मूँद कर सरकारी नीतियों और जनता द्वारा नष्ट किया जा रहा हैं।उनके अभाव के
बावजूद आयुर्वेद की दवायें बना कर बाजार में उपलब्ध कराई जा रहीं हैं।यदि
ऐसा ही रहा तो आने में वाले मात्र दश सालों में आयुर्वेद की बहुत सारी दवाओं
का निर्माण असम्भव होगा।
इस संदर्भ में खेद जनक तथ्य कि विकास के नाम पर सरकारी नीतियों और
समाज की अज्ञानता के कारण जड़ी-बूटियों की अनेक प्रजातियों की नित्य समूल
नाश किया जा रहा है। हमारे देखते-देखते ही अनेक वनस्पतियाँ लुप्त हो
चुकी,आप भी यदि ध्यान देगे तो ऐसा ही महसूस करेगें ।सड़कों के
चौड़ीकरण,नगरविकास निगमों के विस्तारीकरण औद्योगिकरण,खेती में
खरपतवार नाशको,कीटनाशकों के अंधाधुन्ध प्रयोग ने बहुत सारी प्रजातियों को
खत्म कर दिया है ।गाँवों मो टीलो बंजर,वनज भूमि,चारागाह,नदी,नालों के
किनारें का प्रयोग आवासीय,औद्योगिक होने से बथुआ, द्रोणपुष्पी, हुलहुल,
अपामार्ग,कंटकारी,भूमिआमला,भृंगराज, अकरकार,शालपर्णी,चित्रक, सरफोंका,
वासा,जवासा,कुटकी,पलास,सेमल,अंग्निमंथ आदि खत्म हो रहे है।अभी हमारे
क्षेत्र में एक प्राचीन टीला है,जहाँ पलास, व्याघ्रैण्ड,
वासा,बेल,सहदई,आक,अपामार्ग,सप्तपर्ण का जंगल है,जिसे काटकर थाना बनने
जा रहा,पंचायत भवन बन चुका है,यहाँ सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पलास
राज्य पुष्प है जिसे नष्ट करना अपराध की श्रेणी में आता है।फिर भी सरकार की
नीतियों के कारण पलास काटा जायेगा। ऐसी स्थिति में हर दिन आयुर्वेद-हर घर
आयुर्वेद भला कैसे भलीभूत हो सकता है ?इसलिए हर दिन आयुर्वेद अभियान में
जड़-बूटियों के संरक्षण,आयुर्वेद की समग्र चिकित्सकीय क्षमताओं से समाज को
परिचित करने की भी जरुरत है।आयुर्वेद चिकित्सकों को आयुर्वेद चिकित्सा करने
के लिए भी प्रोत्साहित करने की आवश्यता है।आयुर्वेद मेडिकल कालेजों को ऐसे
आयुर्वेद स्नातको को तैयार करने की जरूरत है जो पूर्णतः आयुर्वेदिय प्रेक्टिश कर
आम जनता में आयुर्वेद के प्रति विश्वास पैदा कर सके।

लेखक आयुर्वेद चिकित्सक,वरिष्ठ सदस्य-वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस,स्तम्भकार,लेखक और विचारक हैं।

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