यूपी में ख़त्म हुई चाचा भतीजे की लड़ाई

भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा, वर्ष 2017 के चुनाव से पहले जब जनता को अपने काम का हिसाब देना था तब चाचा भतीजे, पिता पुत्र के बीच में एक गृहयुद्ध छिड़ा हुआ था. उत्तर प्रदेश की जनता खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही थी. आज 2022 के चुनाव से पहले कैसे सत्ता प्राप्त की जाय, इसकी जुगत में चाचा भी परेशान हैं और भतीजा भी. आज चाचा भतीजे फिर से गठबंधन करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश की जनता इस परिवारवादी संगठन को पूरी तरह से नकार चुकी है. 2017 के चुनाव में नकारा है, 2019 के चुनाव में नकारा है. आज फिर 2022 के चुनाव में जनता विकास के मॉडल पर योगी आदित्यनाथ के साथ रहेगी

लंबे समय के बाद चाचा-भतीजे में मुलाकात

लखनऊ: समाजवादी प्रमुख अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल सिंह यादव की मुलाकात के बाद अब उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी पहले से ज्यादा मजबूत नजर आ रही है. इस मुलाकात के बाद यह तय हो गया है कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का सपा में विलय होगा. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने गुरुवार को लखनऊ में शिवपाल सिंह यादव से मुलाकात की. इसके बाद चाचा भतीजे के बीच मनमुटाव और अलगाव को लेकर हो रही सारी चर्चाएं समाप्त हो चुकी हैं.

अखिलेश यादव चाचा शिवपाल के घर पहुंचे, जहां शिवपाल और उनके परिवार ने अखिलेश का स्वागत किया. शिवपाल के घर में बंद कमरे में दोनों चाचा भतीजे के बीच मीटिंग हुई. समझा जाता है कि शिवपाल और अखिलेश यादव को एक करने में पर्दे के पीछे मुलायम सिंह यादव की भूमिका है. अखिलेश की तरफ़ से गठबंधन की बात कही गयी है.

अपने ट्विटर अकाउंट पर अखिलेश यादव ने चाचा के साथ तस्वीर के शेयर की और लिखा, प्रसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जी से मुलाक़ात हुई और गठबंधन की बात तय हुई. क्षेत्रीय दलों को साथ लेने की नीति सपा को निरंतर मजबूत कर रही है और सपा और अन्य सहयोगियों को ऐतिहासिक जीत की ओर ले जा रही है.

सूत्रों के मुताबिक अखिलेश की तरफ़ से गठबंधन की बात कही गयी है. हालांकि, अंदरखाने यह सुगबुगाहट भी हो रही है कि अखिलेश यादव की रैलियों में भारी भीड़ और कई छोटे दलों के साथ उनके गठबंधन से शिवपाल यादव को लगा कि वह अकेले बहुत कुछ हासिल नहीं कर सकेंगे. यह भी वजह रही कि शिवपाल सिंह यादव ने कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर विलय का निर्णय लिया. वहीं, चाचा भतीजे, दोनों को एकजुट करने में लगे लोगों का कहना है कि अंततः प्रसपा सपा में विलय होगी.

फिलहाल, शिवपाल को सपा कितने टिकट देगी, यह तय नहीं हो पाया है. लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि शिवपाल समर्थकों को 15 टिकट दिए जाएंगे. शिवपाल यादव की प्रसपा पचीस तीस सीटें मॉंग रही है पर दस बारह में भी बात बन जायेगी.

चाचा भतीजे के इस गठबंधन पर वरिष्ठ पत्रकार राम दत्त त्रिपाठी ने कहा कि सैफई परिवार के एकजुट होने से समाजवादी पार्टी अपने गढ़ में मज़बूत होगी. शिवपाल यादव की प्रगतिशील पार्टी अगर अलग से चुनाव लड़ती तो वह तमाम सीटों पर समाजवादी पार्टी का नुक़सान करती क्योंकि दोनों का सामाजिक आधार और प्रभाव क्षेत्र एक ही है.

भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी का बयान

चाचा भतीजे के इस गठबंधन पर भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा, वर्ष 2017 के चुनाव से पहले जब जनता को अपने काम का हिसाब देना था तब चाचा भतीजे, पिता पुत्र के बीच में एक गृहयुद्ध छिड़ा हुआ था. उत्तर प्रदेश की जनता खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही थी. आज 2022 के चुनाव से पहले कैसे सत्ता प्राप्त की जाय, इसकी जुगत में चाचा भी परेशान हैं और भतीजा भी. आज चाचा भतीजे फिर से गठबंधन करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश की जनता इस परिवारवादी संगठन को पूरी तरह से नकार चुकी है. 2017 के चुनाव में नकारा है, 2019 के चुनाव में नकारा है. आज फिर 2022 के चुनाव में जनता विकास के मॉडल पर योगी आदित्यनाथ के साथ रहेगी. योगी जी को फिर से मुख्यमंत्री बनायेगी.

बहरहाल, अब आने वाला समय ही बतायेगा कि आखिर चाचा भतीजे के इस गठबंधन का समाजवादी पार्टी को कितना फायदा होगा और विपक्षी दल भाजपा को कितना नुकसान.

कैसे अलग हुये थे अखिलेश और शिवपाल

2017 यूपी चुनावों से ठीक पहले मुलायम परिवार में अंतर्कलह की बात सामने आई थी. मुलायम के भाई और यूपी में सपा के चुनाव प्रभारी शिवपाल यादव ने इस्तीफे की धमकी दी थी लेकिन मुलायम खुलकर शिवपाल के समर्थन में आगे आये और कहा कि अगर शिवपाल चले गये तो सरकार की ऐसी की तैसी हो जायेगी.

मुलायम इस्तीफा देने से शिवपाल को तीन बार मना चुके थे. मुलायम ने भाई को शह देते हुये बेटे अखिलेश को मंच से फटकार लगाते हुये कहा था कि अखिलेश के मंत्री बोझ के समान हैं. मुख्यमंत्री और इनके मंत्रियों की वजह से पार्टी बर्बाद हो जायेगी. राष्ट्रीय पार्टी को उन्होंने बड़ी मुश्किलों से खड़ा किया है. हालांकि, शिवपाल ने बिगड़ी बात को बनाने के लिये बयान दिया था कि पार्टी में उनकी किसी से कोई नाराजगी नहीं है और अखिलेश अच्छा काम कर रहे हैं. शिवपाल ने कहा था कि उनकी जिससे नाराजगी थी, उसके बारे में उन्होंने मुलायम सिंह यादव को अवगत करा दिया था. लेकिन इस घटना यह साफ कर दिया था कि चाचा भतीजे के बीच सबकुछ ठीक नहीं था. इसके बाद यह दूरी लगातार बढ़ती गई और अंतत: चाचा शिवपाल ने सपा से अलग होकर अपनी अलग पार्टी बना ली थी.

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कार्यकर्ताओं को लखनऊ मुख्यालय पर सम्बोधित करते हुए कहा है कि जनता भाजपा के साथ नहीं है. लोगों में भाजपा सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ तीव्र रोष है. महंगाई, भ्रष्टाचार से लोग त्रस्त हैं. चारों ओर बदलाव की हवा बह रही है.

सपा प्रमुख ने मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को किया संबोधित

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कार्यकर्ताओं को लखनऊ मुख्यालय पर सम्बोधित करते हुए कहा है कि जनता भाजपा के साथ नहीं है. लोगों में भाजपा सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ तीव्र रोष है. महंगाई, भ्रष्टाचार से लोग त्रस्त हैं. चारों ओर बदलाव की हवा बह रही है. जनता को उम्मीद है कि समाजवादी सरकार बनने पर ही उनकी जिंदगी में खुशहाली आ सकेगी.

उत्तर प्रदेश समाजवादी सरकार में जितना आगे बढ़ा था, उससे दूर तक पीछे चला गया है. बड़े पैमाने पर नौकरी और रोजगार नहीं है. सरकारी भर्तियां रूकी हुई है, नौजवानों का भविष्य अंधकारमय है. महिलाओं को जगह-जगह अपमानित होना पड़ता है. जो इन्वेस्टमेंट के वादे किए गए थे, वे वादे ही बने हुए हैं. भाजपा सरकार में कोरोना काल में जीते जी लोगों को न इलाज मिला न ही मरने के बाद पीड़त आश्रितों को मुआवजा मिला.

कोविड मौतों के मुआवजे पर उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार पर सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ी टिप्पणी की है. मुख्यमंत्री के झूठे वादों और कोविड काल में स्वास्थ्य व्यवस्था की झूठी तारीफ की पोल खुल गई है. कोरोना काल में जलती लाशों और गंगा में बहती लाशों के विचलित करने के दृश्य आज भी लोग याद कर सिहर जाते हैं.

किसान भाजपा राज में सबसे ज्यादा परेशान है. भाजपा के संकल्पपत्र में वायदा किया गया था कि उसकी आय दुगनी की जाएगी. वास्तविकता यह है कि आय दुगनी हुई नहीं, बढ़ती महंगाई ने उसको ज्यादा कर्जदार बना दिया है. उसकी फसल की बिक्री एमएसपी पर नहीं होती है. खरीद सिर्फ कागजों पर होती है. बिचौलियों को औने-पौने दाम में फसल बेचने को उसे मजबूर होना पड़ता है.

सच तो यह है कि भाजपा को जनहित के कामों में जरा भी दिलचस्पी नहीं रही है. उसकी नफरत की राजनीति के चलते समाज में अलगाव और वैमनस्य पनपता है. सत्ता के संरक्षण में अपराध बढ़ने से कानून व्यवस्था पर लोगों का भरोसा टूट चला है. चुनाव का दिन जैसे जैसे नजदीक आता जा रहा है, उसकी षड्यंत्रकारी गतिविधियों में तेजी आती जा रही है. भाजपा सत्ता की भूख में किसी भी हद तक जा सकती है.
समाजवादी पार्टी लोकतंत्र पर खतरा न आने देने के लिए सदैव संघर्षरत रही है. वह भाजपा की साजिशों का मुकाबला दृढ़ता से करने को संकल्पित है. सन् 2022 के चुनाव भाजपा की पराजय और समाजवादी पार्टी की जीत की गाथा लिखी जानी तय है.

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