दीपावली: सत्य व प्रकाश का प्रतीक वैश्विक पर्व

दीपा​वली : अन्धकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और असत्य पर सत्य के विजय का प्रतीक

डॉ. रवीन्द्र कुमार

प्रतिवर्ष कार्तिक अमावस्या को मनाई जाने वाली दीपावली– दीपोत्सव भारत का एक प्रमुख धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पर्व है। अपने प्रयोजन के कारण दीपावली अब विश्व स्तर पर मनाए जाने वाले पर्वों में से भी एक है। किसी एक विशेष धर्म-सम्प्रदाय की आस्था की सीमा से परे दीपावली की अब वर्ष-प्रति-वर्ष संसारभर में महिमा बढ़ती जा रही है।

अन्धेरी कार्तिक अमावस्या को मनाई जाने वाली दीपावली, अन्धकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और असत्य पर सत्य की विजय की प्रतीक है। अन्धकार तथा अज्ञान, असत्य के, और प्रकाश व ज्ञान, सत्य के प्रतीक हैं इसलिए, अन्धकार, अज्ञान व असत्य, एवं उसी प्रकार प्रकाश, ज्ञान व सत्य एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।

असत्य पर विजय प्राप्त कर संसार में सत्य की स्थापना करने, दूसरे शब्दों में मानवता को अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने के उद्देश्य से अवतरित मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम इस दिन, जैसा कि हम सब जानते हैं, अपना एक प्रयोजन पूर्ण कर अयोध्या वापस लौटे थे। उनके आगमन की अपार प्रसन्नता में जन-जन ने दीप प्रज्वलित किए थे; असत्य तथा बुराई पर सत्य की विजय की पुष्टि की थी। वही परम्परा, हजारों वर्षों के बाद, वर्तमान में भी जारी है।

कार्तिक अमावस्या के दिन ही चौबीसवें जैन तीर्थंकर वर्धमान महावीर को मोक्ष प्राप्त हुआ था। वे सत्य की पराकाष्ठा पर पहुँचे थे। इसलिए, जैन-धर्मावलम्बियों द्वारा भी यह दिन दीपावली के रूप में मनाया जाता है। तथागत गौतम बुद्ध का उनके अनुयायियों द्वारा, इसी दिन असंख्य दीप प्रज्वलित कर, महा स्वागत किया गया था।

बौद्धों में वह, अन्धकार से प्रकाश– अज्ञान से ज्ञान-मार्ग के अनुसरण की परपरा के रूप में, वर्तमान में भी स्थापित है। इसी दिन न्याय व सत्य के लिए संघर्षकर्ता छठवें सिख गुरु हरगोबिन्द मुगलों की कैद से स्वतंत्र हुए थे, इसलिए सिक्ख जन भी दीप प्रज्वलन द्वारा इसे हर्षोल्लास से मनाते हैं। इसी प्रकार, कार्तिक अमावस्या से और भी वृतान्त, विशेषकर आदि शंकर व स्वामी दयानन्द ‘सरस्वती’ से, जो सत्यान्वेषक महापुरुष थे –जिनका सम्पूर्ण जीवन मानवता को अन्धकार –अज्ञान से बाहर निकालकर प्रकाश –ज्ञान की ओर ले जाने हेतु समर्पित रहा, जुड़े हैं।

दीपावली, इस प्रकार, हर रूप में, जैसा कि कहा है, सत्य, प्रकाश व ज्ञान का प्रतीक वैश्विक पर्व है। सर्वजन को सत्यानुभूति कराना –किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना प्रत्येक के जीवन से अन्धकार को मिटाकर उसमें उजाला लाना; इस प्रकार, उसके जीवन-मार्ग को, उसके स्वयं अपने सुकर्मों के बल पर सार्थक करने हेतु प्रशस्त करना, दीपावली पर्व की मूल भावना और उद्देश्य है। इस मूल भावना अथवा उद्देश्य को समष्टि कल्याण भी कह सकते हैंI दीपावली, इस रूप में, वृहद् कल्याणकारी एवं संधारणीय वैश्विक संस्कृति के निर्माण का मार्ग भी प्रशस्त करती है।

दीपावली पर्व के केन्द्र में विद्यमान प्रमुख छवि, श्रीरामावतार, पृथ्वी से हर प्रकार के अन्याय और बुराई को समाप्त कर सर्वत्र न्याय और सत्य की स्थापना हेतु ही अवतरित हुए थे। सर्वजन को अज्ञान –अन्धकार से बाहर निकालकर उनके जीवन में प्रकाश लाना उनके आगमन का प्रयोजन था।

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मानव ही नहीं, प्राणिमात्र के प्रति दया –दयालुता, मैत्री, सद्भावना –सौहार्द और करुणा, परस्पर सहयोग व सामंजस्य की सर्वकालिक प्रासंगिकता को श्रीराम ने एक मानव, धर्मपरायण राजा और युगपुरुष के रूप में स्वयं अपने जीवन-व्यवहारों से मानवता के समक्ष रखा। प्रत्येक का इन सर्वकल्याणकारी मानवीय मूल्यों से, जो धर्म के सुदृढ़ आधार हैं, तथा सत्यानुभूति के मार्ग प्रशस्तकर्ता भी, सम्बद्ध रहकर जीवन में आगे बढ़ने का आह्वान किया।

श्रीराम द्वारा उच्चतम और सर्वकालिक मानवीय मूल्यों की परिधि में स्थापित आदर्श, युग बीत जाने के बाद आज भी, अपनी प्रासंगिकता को न केवल पूर्णतः बनाए हुए हैं, अपितु उनकी महत्ता निरन्तर बढ़ती जा रही है। इसीलिए, दीपावली पर्व भी वैश्विक बनता जा रहा है।

दीपावली के अन्तर्राष्ट्रीय पर्व के रूप में स्थापित होने पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों से एकाकार करना, और उन्हें अपने जीवन-व्यवहारों का आधार बनाना हमारी प्राथमिकता होनी ही चाहिए। साथ ही, एक अति महत्त्वपूर्ण बात, विशेषकर वर्तमान में, हम सभी सजातीयों को समझनी चाहिए। श्रीराम के जीवन-सन्देशों तथा बुराई, असत्य और अन्याय के विरुद्ध उनके संघर्षों में भी यह बात प्राथमिकता से, उनके प्रमुख मानवाह्वान के रूप में, प्रकट होती है।

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वह बात यह कि मनुष्य हर स्थिति में व्यक्तिगत-आधारित अहंकार –मिथ्याभिमान से बाहर निकले। सभी एक स्रोत निर्गत हैं। एक अविभाज्य समग्रता के भाग हैं। कोई पराया नहीं है। सभी एक स्रोत्रिय हैं। मनुष्य सार्वभौमिक एकता की सत्यता की अनुभूति करे। सबके कल्याण –समष्टि प्रकाश में ही अपने कल्याण –प्रकाश को देखे और समझे। इस वास्तविकता को स्वीकार करे। यही सर्वोच्च सत्यता पारस्परिक मानवीय-व्यवहारों का आधार हो। आइए, अविभाज्य समग्रता और सार्वभौमिक एकता के प्रतीक मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम का स्मरण करते हुए, जगत कल्याण की कामना के साथ दीप प्रज्वलित करते हुए, दीपावली पर्व मनाएँ!

सियाराम मय सब जग जानी/ करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी//”

(पद्मश्री और सरदार पटेल राष्ट्रीय सम्मान से अलंकृत इण्डोलॉजिस्ट डॉ0 रवीन्द्र कुमार चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के पूर्व कुलपति हैं; साथ ही, ग्लोबल पीस अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिका के प्रधान सम्पादक भी हैं।)

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