यह साजिश है या कांग्रेस हाई कमान की सोच

राहुल प्रियंका की इमेज पर चोट

यशोदा श्रीवास्तव
यशोदा श्रीवास्तव

मौजूदा हुकूमत की नाकामियों से लड़ रही कांग्रेस लोगों के बीच में चर्चा का विषय बन रही है। इसका श्रेय राहुल,प्रियंका के अलावा कभी कभी बीबी श्री निवास जैसे लोगों को भी जाता है जो दिल्ली में कोरोना पीड़ितों के लिए देवदूत सरीखे खड़े नजर आते हैं।मुमकिन है और लोग भी हों जो अपने अपने इलाकों में ऐसी ही सेवा कर रहे हों। 

लेकिन गुलाम नवी आजाद,अंबिका सोनी,दीपेंद्र हुड्डा सहित तकरीबन 13 अन्य कांग्रेस जनों का नाम जब इस काल में सेवा करने वालों में शामिल होता दिखता है तो हैरानी होती है। हैरानी इस बात पर भी होती है कि मौजूदा कांग्रेस क्या वाकई राहुल और प्रियंका की कांग्रेस है जिस पर देश की आंख लगी हुई है?

हैरानी की इंतहा तो तब है जब इस सूची में युव कांग्रेस के अध्यक्ष बीबी श्रीनिवास का नाम आखिर में दर्ज किया गया हो। कांग्रेस का यह युवा नेता बहुत चर्चा में नहीं था लेकिन आज अगर उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक गांव,शहर के चट्टी चौराहों पर कोरोना काल में पीड़ितों की जी जान से मदद करने वालों का नाम पूछें तो सिर्फ दो नाम,सोनू सूद और बीबी श्रीनिवास का नाम लोगों की जुबान पर है।

सोनू सूद तो फिलहाल “राहों में आए जो दीन दुखी उनको गले से लगाते चलो”गीत को चरितार्थ करते नजर आ रहे हैं तो बीबी श्रीनिवास दिल्ली में विदेशी दूतावासों के लोगों समेत बीजेपी सांसद हंसराज हंश,टीबी पत्रकार चित्रा त्रिपाठी,अजीत अंजुम जैसे नामचीन हस्तियों की मदद को लेकर चर्चा में आए। यूथ कांग्रेस की ओर से दिल्ली में आम ओ खास यानी हर जरूरत मंद की मदद के लिए तो बाकायदे सेंटर ही खोल दिए गए हैं।इसका श्रेय यूथ कांग्रेस अध्यक्ष बीबी श्रीनिवास को ही जाता है।

कांग्रेस नेता बीबी श्रीनिवास की कोरोना पीड़ितों की सेवा बीजेपी सरकार को नागवार लगी तो उसने इनके पीछे पुलिस लगा दी है। कोरोना काल में कांग्रेस के बैनर तले खासा चर्चित हो रहे इस शख्स की पार्टी में ही कागजी उपेक्षा के पीछे आखिर कौन है? कांग्रेस के भीतर के वे कौन चेहरे हो सकते हैं जो कुछ ही दिन पूर्व कश्मीर में नारंगी पगड़ी धारण कर कांग्रेस के कमजोर होने का राग अलापने वाले गुलाम नवी आजाद को कोरोना सेवादारों की कांग्रेसी सूची में पहले नंबर पर दर्ज कर कांग्रेस की किरकिरी की कोशिश की? देश की आंखो ने गुलाम नवी जैसे गुनाम तमाम कांग्रेस नेताओं को आखिर कहां पीड़ितों की मदद करते देखा?

हम यह नहीं कह सकते कि ऐसा बिना कांग्रेस हाई कमान की जानकारी में हुआ होगा। हाई कमान का मतलब सोनिया गांधी ही हैं क्योंकि वे कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष तो हैं ही। तो क्या यह मान लिया जाय कि सोनिया गांधी के इर्दगिर्द अभी भी चापलूसों का गिरोह मौजूद है। यदि यह सच है तो शिद्दत से कहना चाहुंगा कि यह कांग्रेस के उद्धार को राहुल और प्रियंका के जी तोड़ कोशिशों को तार तार करना है।

इसमें दो राय नहीं कि केंद्र सरकार की नाकामियों पर राहुल गांधी की आक्रमकता देश स्तर पर सुर्खियां बटोर रही है तो यूपी में योगी सरकार पर लगातार हमलावर रहीं प्रियंका गांधी एक संभावना के रूप में उभर रही हैं।

अभी पांच विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्यक्ष रूप से भले न सफल हुई हो लेकिन सत्ता पक्ष अपनी हार के पीछे कांग्रेस की रणनीति को पचा भी नहीं पा रहा है। इधर जब बीजेपी और कांग्रेस की तुलना हो रही है तो इस बात की भी चर्चा होती है कि गोवा,मणिपुर, कर्नाटक, बिहार,मध्यप्रदेश समेत एक दर्जन प्रदेशों में भाजपा कैसे सत्ता में आई?

जिस गुजरात माडल की चर्चा खूब हुई उस गुजरात में बीजेपी बहुमत से महज नौ सीट ही ज्यादे है। राजस्थान की गहलोत सरकार गिराने में बीजेपी के षणयंत्रों को लोग भूले नहीं है।कांग्रेस वेशक इन प्रदेशों में सत्ता में नहीं है लेकिन बीजेपी के सपनों के अनुकूल यदि भारत कांग्रेस मुक्त होने से बचा है तो इसके पीछे गुलाम नवी जैसे कांग्रेसी नहीं, राहुल गांधी हैं। अरे भाई गुलाम नवी हों या कपिल शिब्बल या सारे के सारे 23 जी के सदस्य, वे क्यों नहीं बैक्शीन विदेश भेजने को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ मुखर होने का साहस दिखाते?

राहुल और प्रियंका ने तो ऐसाकर खुद को गिरफ्तार करने की चुनौती केंद्र सरकार को दे दी है। ये 23 जी वाले तो विदेशों में वैक्सीन भेजने का विरोध करने वालों की गिरफ्तारी के खिलाफ भी मुंह नहीं खोलते।

भीतर से लेकर बाहर तक जब कांग्रेस को कमजोर करने के षणयंत्र चल रहे हों तो ऐसे में इस बात की संभावना से कैसे इनकार किया जा सकता है कि हो न हो यह कांग्रेस को मजबूत करने में जुटे राहुल और प्रियंका को एक बार फिर कमजोर करने की कोशिश हो? 

कांग्रेस में जिन 23 जी के सदस्य हैं, ये सभी स्व.इंदिरा जी,राजीव जी के करीबी होने के नाम पर पार्टी में सम्मान पाते रहे हैं। ये लोग ज्यादातर राज्यसभा की शोभा बढ़ाते रहे और जब जब कांग्रेस सरकार में रही, ये सब मनचाहा मंत्रिपद भी पाते रहे। गुलाम नवी आजाद की राजनैतिक महत्व सिर्फ यह है कि वे कश्मीर घाटी से आते हैं।1977 में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़े थे और मात्र 380 वोट पाए थे। राजनीतिक रूप से बेहद नाकामयाब यह शख्स जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री भी रहा।अनंतनाग से एक बार लोकसभा के लिए चुना गया वह भी गठबंधन से।अबतक के राजनीतिक सफर में ज्यादातर समय राज्यसभा की शोभा बढ़ाते और कांग्रेस के सत्ता में रहते मंत्री की कुर्सी पर बैठे बीता। गुलामनवी आजाद समेत 23 जी के सारे कांग्रेसी नेताओं की चिंता कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव को लेकर रहती है लेकिन पार्टी के भीतर नहीं, मीडिया में। 

कोरोना काल में पीड़ितों की सेवादारों की सूची में यदि कांग्रेस के नूर बीबी श्रीनिवास की जगह गुलाम नवी आजाद जैसों का नाम पहले नंबर पर दर्ज होता है तो यह न केवल हास्यास्पद है, जानबूझ कर मीडिया में कांग्रेस की किरकिरी कराना है ही,राहुल और प्रियंका की इमेज पर चोट पहुंचाने की साजिश भी है।

यशोदा श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार और नेपाल मामलों के विशेषज्ञ हैं

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