सरदार बल्देव सिंह के तोते – (कमनीय कथा)
तोता असेम्बली
सरदार बल्देवसिंह के तोते: मुझे सेवानिवृत हुए दो दशक बीत चुके हैं। पुलिस विभाग में सेवानिवृत अधिकारियों को भी समुचित सम्मान देने और विभागीय अतिथि गृहों में रुकने की सुविधा देने की प्रशंसनीय परम्परा है।
मैं विगत रात्रि में फैज़ाबाद पुलिस लाइन परिसर में स्थित अतिथि गृह में आया था। प्रातः सूर्योदय के पूर्व जागकर पुलिस लाइन परिसर में टहल रहा हूं। दिन शुक्रवार है और परेड ग्राउंड पर पुलिस अधीक्षक की परेड की तैयारियां प्रारम्भ हो गईं हैं। शुक्रवार की पुलिस लाइन में होने वाली परेड का विशेष महत्व होता है। अन्य दिन की परेड का पर्यवेक्षण लाइन साहब (रिज़र्व इंस्पेक्टर) अथवा क्षेत्राधिकारी पुलिस लाइन करते हैं। शुक्र के दिन पुलिस अधीक्षक द्वारा पर्यवेक्षण का नियम है। परेड समाप्त होने के उपरांत पुलिस अधीक्षक पुलिस लाइन के परिसर का निरीक्षण करते हैं और फिर अर्दली रूम में जवानो की समस्यायें सुनकर समुचित आदेश देते हैं तथा किसी के दुष्कृत्य अथवा अनुशासनहीनता हेतु उसे दंडित करते हैं।
टहलते हुए मैं स्वयं के पुलिस अधीक्षक, फ़ैज़ाबाद के पद पर नियुक्ति के दौरान की स्मृतियों में खो जाता हूं। वर्ष 1979 की बात है- तब मैं हाल में ही पुलिस अधीक्षक फ़ैज़ाबाद के पद पर नियुक्त हुआ था। वहां तत्कालीन लाइन साहब थे सरदार बलदेव सिंह। वह हर दृष्टिकोण से एक आदर्श आर. आई. थे- छरहरा बदन, 6 फुट लम्बाई, भूतपूर्व खिलाड़ी, राधास्वामी के भक्त, अनुशासनप्रिय और सत्य बोलने का साहस रखने वाले व्यक्ति। एक शुक्रवार को परेड के उपरांत मैं पुलिस लाइन परिसर का राउंड ले रहा था कि परिसर में स्थित एक विशाल वृक्ष से सहस्रों तोते उड़कर फुर्र हो गये। मैं आश्चर्य से उन्हें निहारकर बोला, “ इतने तोते कहां से आ गये?”
सरदार बल्देवसिंह के तोते…
बलदेव सिंह के मुख पर स्मितरेखा उभरी और उन्होंने कहा, “सर, फैज़ाबाद का आर. आई. होने का सबसे बड़ा पुण्य है रोज़ रात हज़ारों तोतों की मेज़बानी करना। मेरे अनुमान से फैज़ाबाद रेंज के सारे ज़िलों के तोते रोज़ शाम को विश्राम हेतु इसी वृक्ष पर आ जाते हैं और सुबह उड़ जाते हैं। इस वृक्ष की एक और ख़ास बात है कि प्रत्येक शाम को यह वृक्ष तोतों का विधान भवन बन जाता है और प्रातःकाल राम मंदिर बन जाता है। शाम को सोने से पहले तोते इस वृक्ष पर ‘तोता असेम्बली’ करते हैं और सुबह जागने के पश्चात राम भजन करते हुए फुर्र हो जाते हैं।“
तोता असेम्बली.
मुझे ‘तोता असेम्बली’ में हास्य का पुट लगा। अतः पूछ लिया- “‘तोता असेम्बली’ का क्या मतलब?” बलदेव सिंह बोले, “सर, रोज़ सूरज डूबते-डूबते सब तोते वापस इस पेड़ पर आ जाते हैं। फिर उनमें कोई बड़ा-बूढ़ा तोता धीर गम्भीर स्वर में टेंउ-टेंउ करता है, जिसके उत्तर में पहले एक दो तोते बोलते हैं, और फिर मिलकर बोलने लगते हैं। कुछ समय में गलाफाड़ बहस प्रारम्भ हो जाती है।
सामान्यतः यह बहस आधा घंटे में समाप्त हो जाती है, परंतु किसी किसी दिन लम्बी खिंच जाती है और उस दौरान एक दूसरे पर हमले भी होने लगते हैं। तब आंख मूंदकर ध्यान से सुनने में ऐसा लगता है, जैसे असेम्बली में कुर्सी-मेज़ उलटी जा रही हो और माइक उखाड़कर दूसरों पर प्रहार किया जा रहा हो। फिर लगता है कि मार्शल दो-एक को घसीट कर बाहर ले गया। तब शांति स्थापित हो जाती है और सब तोते सोने चले जाते हैं।“ मैं सरदार बलदेव सिंह की कल्पना की उड़ान से प्रभावित हुए बिना न रह सका था।
सरदार पटेल और भारत की एकता(Opens in a new browser tab)
आज प्रातःकाल यहां टहलते हुए मैं बार-बार उस वृक्ष वाले स्थान को इस आशा से देखता हूं कि तोते सम्भवतः राम भजन करते हुए दिख जायें, परंतु वहां न तो वह वृक्ष है और न तोते। हरे भरे जीवंत वृक्ष के स्थान पर एक ईंट-पत्थर का मकबरा सा खड़ा हुआ है। मेरे मन में खिन्नता का भाव उत्पन्न होता है और मुझे लगता है कि जैसे असेम्बली भंग हो गई है और विधान भवन ध्वस्त हो चुका है।
महेश चंद्र द्विवेदी, पूर्व पुलिस महानिदेशक , उ . प्र.
लखनऊ