लोकतंत्र के भाग्य विधाता

लोकतंत्र
डॉ. चंद्रविजय चतुर्वेदी

लोकतंत्र के भाग्य विधाता

हे मतदाता हे मतदाता

जैसे ही चुनाव का मौसम आता

नेतागण तुझको ललचाता

तेरी कृपा दृष्टि पाने को

सब मिल तुझको

आश्वासन का घूंट पिलाता

जाति धरम के बंधन मेंबाँधि को तुझको

सुख सम्पति सब अपने घर ले जाता

और तुझे बस धता बताता

पांच बरस तक तू पछताता

तू ही बाहुबली को जातिबली को

धनबल अपराधी को गद्दी पर बैठाता

तू  अपनी किस्मत के संग

देश की किस्मत भी बरबाद है करता

एक क्षणिक गलती से दर दर ठोकर खाता

जागो भाग्यविधाता जागो

हे मतदाता हे मतदाता जागो

जाति धरम के झूठे बंधन तोड़ो

राजनीती को जन जन की किस्मत से जोड़ो

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