भारत और चीन के बीच पांच सूत्री समझौता क्यों हुआ

लगता है कि चीन ने मजबूरी में भारत के साथ यह समझौता किया

पंकज प्रसून। कुछ समझौते  होते ही हैं ख़त्म होने के लिये और नया भारत-चीन  समझौता इसका अपवाद नहीं लगता।

दोनों देशों के बीच पहले भी छह समझौते हो चुके हैं।

इस नये समझौते के शब्दों में ही उसका मृत्यु-लेख लिखा हुआ है।

इसमें न तो  वास्तविक नियंत्रण रेखा पर से सेना हटाने की कोई समय सीमा तय की गयी है.

न चीन ने भारत की जमीन पर से अपना कब्जा हटाने की मंशा जाहिर की है।

तो चीन ने यह समझौता क्यों किया ?

दरअसल चीन की जनता में कोरोना के बाद विदेशी कंपनियों के हटते जाने के कारण असंतोष फैल रहा है.

 इससे ध्यान हटाने और देशभक्ति का उन्माद जगाने और ध्यान हटाने के लिये छोटी मोटी मुठभेड़ करना वहां के शासकों के लिये जरूरी हो गया था।

भारत ने दक्षिण चीन सागर में आस्ट्रेलिया  ,जापान और अमेरिका के साथ मिलकर चीन के खिलाफ जो लाठी भांजना शुरू किया है.

उसके लिये  उसे दंडित करना भी चीन के एजेंडे में शामिल हो गया ।

लेकिन इसका कुपरिणाम यह हुआ कि भारत ने चीन से अपना कारोबारी संबंध ख़त्म करना शुरू कर दिया ।

चीन की गुजरात में करोड़ों डॉलर की पूंजी लगी हुई है और संसार के कई देशों में फैले गुजराती कारोबारी चीन में बने सामानों का बायकॉट करने लगे।

इसलिये लगता है कि उसने मजबूरी में भारत के साथ यह समझौता किया है।

समझौते  के बिंदु 

 भारत और चीन के विदेश मंत्रियों ने पांच सूत्री समझौते पर बृहस्पतिवार 11 सितंबर की शाम मॉस्को में  दस्तख़त किये थे ।

इसका मकसद लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों के बीच चल रहे हालिया संघर्ष को रोकना है।

भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वांग यी की मुलाकात मॉस्को में हुई।

मास्को में शंघाई सहयोग संगठन की मीटिंग में शामिल होने दोनों नेता गये हैं।

4 सितंबर को  रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और चीन के रक्षा मंत्री वेइ फंग ह में मॉस्को में ही बातें हुईं थीं जो उतनी सकारात्मक नहीं रहीं।

डॉ. जयशंकर चीन में भारत के सबसे लंबी अवधि तक राजदूत रह चुके हैं और वांग यी के साथ उनका पुराना परिचय है।

दोनों नेताओं ने पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर मौजूदा तनाव को खत्म करने की दिशा में पांच सकारात्मक समझौते किये।

समझौते के पाँच सूत्र
  • भारत और चीन आपसी संबंध बढ़ाने को लेकर दोनों पक्ष नेताओं के बीच हुई सहमतियों से सलाह लेंगे।

इसमें असहमतियों को तनाव का रूप अख्तियार नहीं  करने देना शामिल है।

  • दोनों नेताओं ने माना कि सीमा को लेकर मौजूदा स्थिति दोनों पक्षों के हित में नहीं है।

दोनों पक्षों की सेनाओं को बातचीत जारी रखनी चाहिये , जल्द से जल्द लड़ाई रोक देनी चाहिये।

एक दूसरे से उचित दूरी बनाये रखनी और तनाव कम करनी चाहिये ।

  • भारत-चीन के सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और सौहार्द्र बनाये रखने और सीमा संबंधी मामलों

को लेकर दोनों पक्ष सभी मौजूद समझौतों और प्रोटोकॉल का पालन करेंगे और तनाव बढ़ाने जैसी कोई कार्रवाई नहीं करेंगे।

  • भारत-चीन सीमा विवाद सुलझाने के लिए दोनों पक्ष विशेष प्रतिनिधि के जरिये वार्ता जारी रखने पर सहमत हुए।

सीमा संबंधी मामलों में विमर्श और समन्वय पर कार्यकारी मैकेनिज्म के तहत भी वार्ता जारी रहे।

  • जैसे-जैसे तनाव कम होगा दोनों पक्षों को सीमावर्ती इलाकों में शांति बनाये रखने के लिए आपस में भरोसा बढ़ाने के लिए नये क़दम उठाने चाहिये।
चीन की टिप्पणी

चीन के विदेश विभाग ने समझौते के बाद कहा कि पड़ोसी होने से यह स्वाभाविक है कि चीन-भारत की कुछ मुद्दों पर असहमति है।

मगर यहां अहम बात यह है कि उन असहमतियों को सही परिप्रेक्ष्य में देखा जाये ।

चीनी विदेश विभाग के अनुसार,’ चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि चीन-भारत के संबंध एक बार फिर दोराहे पर खड़े हैं।

मगर जब तक दोनों पक्ष अपने संबंधों को सही दिशा में बढ़ाते रहेंगे, तब तक कोई परेशानी नहीं होगी।

ऐसी कोई भी चुनौती नहीं होगी जिसको हल नहीं किया जा सकेगा ।’

चीनी विदेश विभाग ने स्पष्ट किया कि डॉ. जयशंकर ने कहा कि चीन के प्रति भारतीय नीति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।

और भारत सीमा पर जारी तनाव को और बढ़ाना नहीं चाहता है।

लेकिन इस पांच सूत्री सहमति के बावजूद वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों के बीच नोंक-झोंक जारी है।

समझौते का सबसे नकारात्मक पहलू यह है कि इसमें अप्रैल पूर्व की स्थिति बहाल करने की कोई सीमा नहीं है।

न ही सैनिकों को हटाने और तनाव कम करने की समय सीमा तय की गयी है।

भारत-चीन के बीच तनाव के कारण

भारत-चीन के बीच सबसे बड़ी लड़ाई 20 अक्टूबर, 1962 को शुरू हुई थी जो कि करीब एक महीने तक चली थी।

यह युद्ध भारत ने बिना किसी तैयारी के लड़ा था और भारत ने अपनी वायुसेना का इस्तेमाल नहीं किया था।

इसके कारण भारत यह युद्ध हार गया था और तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू की कड़ी आलोचना हुई थी।

गलवां या गलवान घाटी अक्साई चीन में पड़ती है जो कि लद्दाख और अक्साई चीन के बीच पड़ती है।

इस घाटी में गलवां नदी बहती है जिसके कारण इसका नाम ही गलवां घाटी पड़ा है।

यहीं पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC)है।

यह रेखा ही अक्साई चीन को भारत से अलग करती है और अक्साई चीन पर दोनों देशों का दावा है।

इससे पहले भी भारत और चीन के बीच 1962 में इसी गलवां घाटी में युद्ध हुआ था।

इसके बाद दोनों देशों के बीच युद्ध विराम और समझौता हो चुका है।

लेकिन ऐसा देखा गया है कि चीन की सेना इस विवादित क्षेत्र में टेंट लगाकर लड़ाई उकसाने का काम करती है।

चीनी सैनिक टेंट लगाते हैं और भारत के सैनिक उन्हें उखाड़ देते हैं और इस क्रम में सैनिकों के बीच हाथापाई भी देखी गयी है। 

भारत और चीन के बीच शांति समझौता

1993 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के चीन दौरे के समय सीमा शांति का एक समझौता हुआ था।

इसके तहत यह तय हुआ कि दोनों देशों की सेनाएं सीमा पर गश्त के दौरान हथियार का इस्तेमाल नहीं करेंगी। 

रैंक के अनुसार जिन अधिकारियों के पास बंदूक होंगी भी तो उनका मुंह ज़मीन की तरफ होगा।

इसके लिए जवानों को खास ट्रेनिंग दी जाती है, ताकि किसी भी हालत में सैनिक हथियार इस्तेमाल न करें।

यही कारण है कि भारत और चीन के सैनिक आये दिन एक-दूसरे से बिना हथियार के भिड़ते नजर आते हैं।

लेकिन गलवान घाटी में चीन के सैनिकों ने इस बार 1993 में हुए समझौते का उल्लंघन किया।

 और निहत्थे भारतीय सैनिकों पर धारदार हथियारों से हमला किया था जिससे भारत के 20 जाबांज सैनिक मारे गये।

हालाँकि बाद में भारत ने भी जरूरी कार्रवाई करते हुए चीनी सैनिकों को मारा था।

भारतीय सेना और चीनी पीएलए के बीच मई के शुरुआत से ही पूर्वी लद्दाख में एएलसी पर गतिरोध बना हुआ है।

किंतु यह भी तल्ख सच्चाई है कि युद्ध कितना भी बड़ा क्यों न हो, अंत में दोनों देशों के बीच होता समझौता ही है।

इसके पहले भी भारत और चीन के बीच  छह बार समझौते हो चुके हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

Back to top button