मुठभेड़ एक पुलिस अधिकारी से

बदरी प्रसाद सिंह, आई पी एस ( अ प्र)

वर्ष १९९२ की होली मैं अपने पुलिस अधीक्षक सुलखान सिंह सर (से.नि. डीजी)के साथ जिलाधिकारी पीलीभीत के घर दोपहर में होली खेल रहा था कि पूरनपुर कस्बे में चेकिंग में पांच आतंकियों के पकड़े जाने की सूचना मिली।मैं SPके साथ तत्काल थाना पूरनपुर पहुंचा तो ज्ञात हुआ कि होली में कस्बे के बाहर लगी BSF की चेकिंग के समय पीलीभीत की तरफ से आ रही एक पुरानी अम्बेडकर कार को रोक कर ,कार एवं उसमें बैठे पांचों सिखों को चेक किया गया तो कोई संदिग्ध वस्तु नहीं मिली।जब उनसे कार के दरवाजों के सीसों को ऊपर उठाने को कहा गया तो उन्होंने सीसे खराब होने बताए।जवानों ने अपने पंजाब के अनुभव से जब दरवाजों के भीतरी तह को नोचा तो सीसे के स्थान पर दो एके-४७ रायफल तथा २०० कारतूस निकले।उन्हें थाना लाया गया था।
उन दिनों तराई में आतंकवाद चरम पर था, नैनीताल और पीलीभीत सर्वाधिक प्रभावित जिले थे। पीलीभीत के पूरनपुर में सिखों की अधिक आबादी के कारण वह आतंकियों की राजधानी बनी हुई थी। मैं वहां पुलिस अधीक्षक सिख आतंकवाद उन्मूलन तथा सुलखान सिंह जी पुलिस अधीक्षक पीलीभीत थे।
हम लोगों की पूछताछ पर पकड़े गए सिखों ने अपना पता बताते हुए स्वयं को पंजाब पुलिस का मुखबिर, दोनों रायफलें तथा कारतूस पुलिस प्रदत्त, एवं एक आतंकी की खीरी जनपद में होने की संभावना पर उसका पता लगाने के लिए पुलिस द्वारा भेजा जाना बताया। उन्होंने अपने समर्थन में फिरोजपुर के पुलिस अधीक्षक का पत्र भी हमें दिखाया।हम फ़ोन पर फिरोजपुर के SP से बात कर इसकी पुष्टि करनी चाही, लेकिन बात हो नहीं पाई। हम अपने यहां मुखबिरों को सरकारी असलहे नहीं देते ,सो मान लिया कि वे झूठ बोल रहे हैं, लेकिन वे किस ग्रुप के कितने बड़े आतंकी हैं,यह हमारे सूत्र नहीं बता पाए।
हमने यह सूचना उच्च अधिकारियों को दे दी थी।सूचना मिली कि डीआईजी बरेली, मंडी समिति पूरनपुर पहुंच रहे हैं,हम भी मंडी समिति आ गये। हमें आतंकियों से निपटने के लिए पीएसी के अतिरिक्त एक बटालियन (४८ वीं)BSF तथा दो कम्पनी नागा सशस्त्र बल मिला था। बटालियन का टेक हेडक्वार्टर मंडी समिति में था और मैं प्राय: सप्ताह में चार दिन वहीं उनके साथ में रहता था।हमने तय किया था कि सिखों की गिरफ्तारी ही दिखाई जायेगी।
डीआईजी सर,BSF के कमांडेन्ट के साथ आए।आते ही पूरी जानकारी लेकर पूंछा कि अगला कदम?जैसी घटना हुई है वैसे मुकदमा लिख कर टाडा में जेल भेज देंगे,हमने बताया। इनकाउंटर क्यों नहीं?हमने कहा कि दस आतंकियों की मुठभेड़ की जांच पहले ही चल रही है तथा इन्हें दिन में कस्बे के पास पकड़ा है, बहुतों ने देखा होगा, मुठभेड़ उचित नहीं होगी। मैंने वरिष्ठ अधिकारियों से बात कर ली है,आप लोग चिन्ता न करें,वह बोले।हमने कहा कि जांच में हमारे अधीनस्थ ही फंसेगे, वरिष्ठ अधिकारी नहीं। डीआईजी घुमा-फिरा कर बहुत सी बातें की लेकिन हम मुठभेड़ को तैयार नहीं हुए।वह झुंझला कर कमांडेंट BSFसे पूंछा कि क्या वह बगैर पुलिस के मुठभेड़ कर देंगे? कमांडेंट ने हामी भर ली। हमने कहा कि जिम्मेदारी स्थानीय पुलिस की है,यदि BSF मुठभेड़ में पांच को मार भी दे तो भी पूछा हमीं से जाएगा और हम इस पर भी तैयार नहीं हैं। डीआईजी आवेश में आकर हमें बहुत कुछ कह कर बगैर चाय पिएं ही बरेली लौट गए जबकि उनका पूरनपुर रुकने का कार्यक्रम था।
कमांडेंट रुक गये लेकिन उनके अधीनस्थ अधिकारी शास्त्री ने हमारे सामने उन्हें बहुत कुछ कह कर पूछा कि क्या BSF सुपारी किलर या कसाई है जो वह मुठभेड़ के लिए तैयार हो गये थे। कमांडेंट ने मजाकिया लहजे में कहा कि उन्हें पता था कि पुलिस मुठभेड़ होने नहीं देगी, इसीलिए हांमी भरी थी ।जब मुफ्त का नम्बर बंट रहा है तो लेने में क्या हर्ज। डीआईजी और वह दोनों पूर्व फौजी थे।
मुकदमा कायम हुआ, पांचों जेल गए।जब विवेचक पंजाब जाकर पता किया तो सिखों की बात सच निकली।फिर वहां के अधिकारी आकर हमें पूरा किस्सा बताया कि उन्होंने एक आतंकी का पता लगाने सरकारी शस्त्र मालखाने से देकर पांचों को भेजा था।बाद में दोनों राज्य सरकारों तथा DG’sमें वार्ता हुई। हमें निर्देश मिला कि मुलजिमों को छुड़वाया जाय,असलहे पंजाब पुलिस को वापस हों तथा मुकदमा समाप्त किया जाय।उस समय के जिला जज बहुत इमानदार एवं सख्त थे लेकिन मुझे पर स्नेह रखते थे।मैं एक शाम उनके घर जाकर पूरी दास्तां सुनाकर इसका रास्ता पूंछा और उनकी राय से पहले जमानत फिर शस्त्र वापसी और अंत में अन्तिम रिपोर्ट लगी।
पुलिस विभाग में अपने अधिकारी से मुठभेड़ होना खतरनाक है।डीआईजी सर ने इसे व्यक्तिगत रूप में लिया और सुलखान सिंह सर एवं मुझसे नाराज़ बने रहे। उन्हें जब भी अवसर मिला,हमारी जड़ खोद कर मट्ठा डालते रहे लेकिन डीजी प्रकाश सिंह सर एवं आइजी दुर्वासा सर के कारण हम सुरक्षित बचे रहें।सोचता हूं कि यदि हम उस दिन दबाव में आ जाते तो जांच होती या न होती,हमें जीवन पर्यन्त निर्दोषों की हत्या का पछतावा बना रहता।

= फ़ेस बुक वाल से साभार 

One Comment

  1. बढि़या सत्य कथा या आपबीती । धन्यवाद बीपी सिंह साहब । दिनेश कुमार गर्ग

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