अध्यात्म में स्वावलंबन पद्धति विनोबा की देन : शीला बहन

विनोबा विचार प्रवाह अंतर्राष्ट्रीय संगीति

लखनऊ (विनोबा भवन) 31 अगस्त। अध्यात्म में स्वावलंबन साधने की पद्धति का विकास विनोबा  भावे जी का एक बड़ा योगदान है। इसके लिए  उन्होंने ब्रह्मविद्या मंदिर की स्थापना के साथ अध्यात्म को आत्माधार का विचार दिया। 

मनुष्य देह ऐसा प्लेटफाॅर्म है जहां से नर नारायण भी बन सकते हैं और नर से वानर भी हो सकते हैं। आत्मज्ञान की सामर्थ्य देह में संभव है। गुरु को कहीं खोजने नहीं जाना पड़ता, बल्कि वही उत्तम शिष्य की खोज में रहते हैं।

उक्त विचार सत्य सत्र की वक्ता ब्रह्मविद्या मंदिर की अंतेवासी सुश्री शीला बहन ने विनोबा जी की 125 जयंती पर विनोबा विचार प्रवाह द्वारा फेसबुक माध्यम पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगीति में व्यक्त किए।

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तीन महाभाग्य

सुश्री शीला बहन ने कहा कि शंकराचार्य ने जीवन में तीन महाभाग्य का वर्णन किया है। ईश्वर की कृपा से मनुष्य का जन्म मिलना, उसमें मोक्ष की इच्छा जाग्रत होना और महापुरुषों का सान्निध्य प्राप्त होना।

मलीन वासनाओं के ढेर के नीचे परमात्मा है। इस मलीनता को सेवा, भक्ति, ज्ञान, ध्यान, और प्रज्ञा से स्वच्छ किया जा सकता है। महापुरुष का आश्रय महत्तम भाग्य से प्राप्त होता है।

गुरु के दो प्रकार

सुश्री शीला बहन ने दो प्रकार के गुरु की चर्चा करते हुए कहा कि एक गुरु बारिश जैसा होता है, जो सभी पर समान रूप से अपनी कृपा बरसाता है।

दूसरा गुरु माली जैसा होता है, जो एक-एक शिष्य को पौधे के समान तैयार कर वृक्ष में परिवर्तित करता है।

विनोबा जी में दोनों ही रूप दिखायी देते हैं। उनका विश्वास केवल आत्मा पर था।

आत्माधार पर विश्वास

जब विनोबा जी राजस्थान के काशी का वास में ब्रह्मविद्या मंदिर की स्थापना का संकल्प जाहिर किया तब बहनों को पत्र में लिखा कि वे कोई मार्गदर्शक नहीं हैं। आप सभी को आत्माधार पर छोड़ रहा हूं।

मार्गदर्शन के लिए आश्रम में स्थित भरत-राम हैं। उनका प्रयत्न रहा कि सभी अपने आधार को अपने भीतर खोजें।

अध्यात्म में स्वावलंबन की विनोबा जी विशिष्ट पद्धति के बारे में सुश्री शीला बहन ने कहा कि वे अव्यक्त से प्रेरणा लेने की बात कहते थे।

आश्रम की बहनों से हर महीने पत्र लिखने की बात कही लेकिन विनोबा जी ने पत्र का जवाब अभिध्यान से दिया।आत्मा के आधार से भीतर से जुड़ना सिखाया।

सुश्री शीला बहन ने कहा कि जब विनोबा जी से कहा कि भरत-राम के ध्यान के बदले आपका ध्यान करना आसान है।

तब विनोबा जी ने कहा कि जो आपके साथ हंसता, बोलता है वह विनोबा नहीं है। भरत-राम जितना अव्यक्त है, उतना ही विनोबा भी अव्यक्त है।

उन्होंने अध्यात्म के क्षेत्र में कभी भी हाथ पकड़ कर नहीं चलाया। इसलिए कभी भय नहीं लगा।

विनोबा का महाप्रयाण

सुश्री शीला बहन ने विनोबा के महाप्रयाण का जिक्र करते हुए बताया कि उनके जाने पर वातावरण में सर्वत्र मंगल भाव था।

उनकी सिखावन का परिणाम था कि उनके जाने पर शोक नहीं हुआ .

विनोबा जी सामूहिक साधना को बहुत महत्व दिया। इससे अध्यात्म को सार्वजनीन और सभी के लिए सुलभ बनाने में मदद मिलेगी। उन्होंने विज्ञान के जमाने में अध्यात्म को बहुत सहज बना दिया।

अध्यात्म के क्षेत्र में प्रयोग की चुनौती

प्रेम सत्र के वक्ता माता रुक्मिणी सेवा संस्थान के (जगदलपुर बस्तर) संचालक पद्मश्री धर्मपाल सैनी ने कहा कि विज्ञान के समान ही अध्यात्म के क्षेत्र में प्रयोग करने की चुनौती हमारे सामने है।

हमारी योजनाएं गरीबों के साथ पक्षपाती होनी चाहिए। इसमें अंत्योदय से सर्वोदय का विचार निहित है।

श्री सैनी ने रतलाम के निकट स्थित रूपाखेड़ा गांव की जानकारी देते हुए बताया कि वहां का पढ़ा-लिखा युवक नौकरी करने का इच्छुक नहीं रहता। उस गांव का एक भी मुकदमा कोर्ट में नहीं है।

उन्होंने विगत पचास सालों से बस्तर में आदिवासियों के बीच किए जाने वाले शिक्षण कार्यों की जानकारी भी साझा की।

करुणा सत्र की वक्ता सुश्री गीतांजलि बहन ने दिल्ली में गणिकाओं के बीच किए जा रहे कार्यों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि वे विगत आठ वर्षों से चार हजार गणिकाओं के जीवन स्तर को सुधारने के काम में संलग्न हैं।
संचालन श्री संजय राॅय ने किया। आभार श्री रमेश भैया ने माना।

डाॅ.पुष्पेंद्र दुबे

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