आपकी नाक और साँसों में छिपा है कोरोना का इलाज

एक नए प्रकार का कोरोना वैक्सीन होगा जो कोरोना को समूल नष्ट करेगा

डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज 

   कोरोना महामारी के इस भीषण आफत विपत्ति में एक नोबुल पुरस्कार विजेता –लुइस जे इग्नाररो -louis  j ignarro के शोधों से नाइट्रिक आक्साइड का नोजल स्प्रे का प्रयोग कोरोना महामारी से जूझने के लिए दुनिया को उपलब्ध हो सकेगा जो सुई वाले टीकाकरण को प्रतिस्थापित कर देगाऔर कोरोना का उपचार  सर्वसुलभ हो जाएगा।

इस वैज्ञानिक ने एक शाश्वत सत्य की और भी दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया है कि प्रकृति प्रदत्त ईश्वरीय वरदान इस शरीर में ही घातक रोगों से,महामारी से  जूझने केलिए आवश्यक  तंत्र हैं ,व्यवस्था है। आवश्यकता है उसे चेतनशील बनाये रखे ,समय पर उसका सदुपयोग करें। इस मानव शरीर में अन्यान्य देवी देवताओं का वास है ,हम उनकी आराधना नहीं कर रहे है उनकी कृपा से वंचित त्राहि त्राहि कर रहे हैं। 

सॉंस लेने की सही क्रिया से कोरोना से मुक्ति

   इस वैज्ञानिक ने अपने एक लेख में कहा की श्वासोच्छवास की सही क्रिया से कोरोना से मुक्ति पाई जा सकती है। साँस नाक से लो और इसे मुंह से छोडो . इसे योग की साधना और व्यायाम का अंग ही न बनाओ ,इसे सामान्य श्वासोच्छवास क्रिया का अंग बना लो। इससे वायरल संक्रमण से जूझने का एक चिकित्सीय उपचार भी मिलता है। 

    कोरोना संक्रमण ने आज सबसे ज्यादा साँस को ही ग्रसा है. पूरे देश में आक्सीजन का भयंकर संकट पैदा हो गया है। हमारी रक्षा नाक और नाइट्रिक आक्साइड ही करेगी। इसके पीछे का तथ्य यह है कि कुछ एंजाइम की सहायता से नाक के कोटरों –nasal cavities में नाइट्रिक आक्साइड उत्पन्न होता है जो फेफड़ों में रक्त के प्रवाह को बढ़ा देता है साथ ही रक्त में आक्सीजन की मात्रा में वृद्धि भी करता है। नाक द्वारा साँस लेने पर नाइट्रिक आक्साइड की सीधी सप्लाई फेफड़े को होती है जहाँ यह कोरोना वायरस संक्रमण से जूझता है। कोरोना वायरस के प्रतिकृति प्रवृति replication को ब्लाक कर देता है। मुँह के बजाय नाक से साँस लेने से रक्त में आक्सीजन की सप्लाई अधिक होती है जिससे व्यक्ति अधिक चुस्त दुरुस्त महसूस करता है। 

   1998 में फार्माकोलॉजी में नोबुल पुरस्कार सम्मिलित रूप से लुइस जे इग्नररो और रोबर्ट एफ फुर्चगौट तथा फरीद मुराद को इस खोज के लिए दिया गया था कि शरीर में नाइट्रिक आक्साइड कैसे बनता है और क्या कार्य करता है।इस खोज के बाद तो नाइट्रिक आक्साइड जिसका रासायनिक सूत्र NO है बड़ा ही विस्मयकारी गैसीय पदार्थ के रूप में चिकित्सा जगत में जाना जाने लगा। आज यह शरीरक्रियाविज्ञान का महत्वपूर्ण अणु है। नवजात शिशु नीला पड़ जाता है उसे तत्काल नाइट्रिक आक्साइड इनहेल कराया जाता है यह फुफ्फसीय धमनियों को विस्तारित कर देता है। नवजात नीला शिशु स्वस्थ रक्ताभ हो जाता है चैतन्य। 

   नाइट्रिक ऑक्साइड की महिमा

   नाइट्रिक ऑक्साइड की महिमा बड़ी अपरम्पार है। शरीर के एक ट्रिलियन –एकलाख करोड़ सेल -कोशिकाओं द्वारा निरंतर उत्पन्न होता रहता है। शरीर में एक लाख मील तक फैली धमनियों में आतंरिक लाइनिंग करता है। फेफड़े पर तो इसकी विशेष कृपा रहती है ,जो उच्च रक्तचाप को रोकता है तथा सभी अंगो में रक्त सञ्चालन में सहयोगी होता है। सामान्य धमनियों में रक्त के थक्के नहीं जमने देता। शरीर की दूसरी कोशिकाएं जैसे सफ़ेद रक्त कण ,टिस्सू आदि भी बनाती हैं। 

   नाइट्रिक आक्साइड में कुछ ऐसे विशिष्ट गुण है जैसे यह एंटी-बैक्टीरियल और एंटी -वायरल प्रभाव वाला रसायन है ,वायरस के प्रसार और वृद्धि को रोकता है ,फुफ्फसीय धमनियों को विस्तारित करता है ,फेफड़े में रक्त संचार बढ़ाता है ,फेफड़े और रक्त में आक्सीजन की गति को तेज करता है। इन गुणों के कारण वैज्ञानिकों को विश्वास है की नाइट्रिक आक्साइड ,कोरोना से युद्ध में विजेता योद्धा हो सकता है। 

   उल्लेखनीय है की 2003 के सार्स महामारी में नाइट्रिक आक्साइड बहुत उपयोगी सिद्ध हो चूका है। विश्व के ग्यारह देशों में इसके इन्हेलिंग का क्लिनिकल ट्रायल कोविड -19 के मरीजों पर  चल रहा है। प्रथम चरण के प्रयोगों में पाया गया है की नाइट्रिक आक्साइड स्प्रे देने से 24 घंटे में ही वायरल प्रभाव में 95 प्रतिशत की कमी आई और 72 घंटों में 99 प्रतिशत की कमी पाई गई। इसका परीक्षण अंतिम दौर में है जब तक चिकित्स्कीय मान्यता प्राप्त करके यह सार्वजनिक उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं हो जाता तबतक हमें साँस की क्रिया के प्रति सचेत रहने की आवश्यकता हैं। 

   साँस है तो आस है। कोरोना काल में आक्सीजन की कमी देश की सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। आक्सीजन न मिलने से हर रोज सैकड़ों लोग दमतोड़ दे रहे हैं ,ऐसे में दुनिया के बहुत से देशों में साँस लेने के तरीकों और नाइट्रिक आक्साइड की उपयोगिता पर अध्ययन हो रहे हैं जिससे मानव को इस महामारी की त्रासदी से छुटकारा मिल सके। दुनिया की मशहूर किताब -ब्रीद -दी न्यू साइंस आफ दीं लास्ट आर्ट में कहा गया है की नाक से साँस लेना सबसे बेहतर है। मुंह से साँस लेने का मतलब है की हवा में मौजूद सबकुछ अंदर खींच लेना। नाक तो हवा को फ़िल्टर कर फेफड़ों को भेजता है तथा नाइट्रिक आक्साइड का इनटेक भी बढ़ता है। 

प्राणायाम पर विशेष ध्यान

    प्राचीन भारत के ऋषियों मुनियों ने कुछ ऐसी साँस लेने की प्रक्रियाएं ढूंढी जो योगशास्त्र का प्रमुख विषय है जिसे प्राणायाम कहते हैं।प्राणायाम एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है  आज के सन्दर्भ में ,आज की परिस्थितियों   में जब तक नाइट्रिक आक्साइड का इन्हेलर प्रयोग के लिए उपलब्ध नहीं हो जाता हमें प्राणायाम पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। प्राणायाम गूढ़ विषय है इसके विस्तार में इसके आध्यात्मिक पहलू पर विचार करना इस लेख में उचित नहीं है। इतना अवश्य उल्लेख कर  ना चाहूंगा की सामान्य प्राणायाम ,कपालभारती ,अनुलोम विलोम तथा भ्रामरी प्राणायाम पर लोगों को ध्यान देने की आवश्यकता है। 

भ्रामरी प्राणायाम

    नाइट्रिक आक्साइड के उत्पादन और क्रियाशीलता के लिए सबसे उपयोगी प्राणायाम भ्रामरी प्राणायाम है जिसमे मुंह ,आँख ,कान बंद करके श्वास लेने और रोकने के रूप में ,नासिका से एक गुनगुनाने वाली ध्वनि उत्पन्न की जाती है जो काली मधुमक्खी की गूंज से मिलती जुलती है इस दौरान दो अंगुली से आँख तथा दो से मुँह बंदकर अंगूठे से कान को बंद रखा जाता है। साँस जितनी देर रोका जा सके रोकना चाहिए फिर धीरे धीरे छोड़ना चाहिए ,इससे रक्त में कार्बन डाई आक्साइड का स्तर भी नियोजित होता है। 

    रोगों से जूझने के लिए जीवन में ,प्रकृति में ,पर्यावरण  में एक व्यवस्था और अनुशासन लाने की आवश्यकता है.तभी हम महामारियों से जूझ सकेंगे।  

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