सन्नाटे में आवाजें
सन्नाटे में भी आवाजें हैं,
चीखें और चिल्लाहटे हैं ।।
यह सन्नाटा गहरा है बड़ा,
नेपथ्य में है कोहरा घना l l
दर्द न केवल आज का है , जज़्बात का है ।।
सारे ज़माने का है, फसाने का है।।
गुजरे वक्त का भी है, और आज के हालात का है ।।
गुजरे हुए दर्द और आज के दर्द मिल गए हैं ,
इस लिए तो सन्नाटे में भी चीखें बड़ी गहरी हैं ।।
वो आरजू ए जो दफन हो गई और सदमे
जिनसे उबर न सके , उभर आए हैं , इस माहौल में ।।
अब सुबह हो या शाम,
हर पहर ऐसे ही गुजरता है,
ट्रेनों के चले जाने के बाद के सन्नाटे सा ।।
अंधेरी सुरंग से न निकल पाने सा।।
अकेले ही मोहर्रम मनाने सा,
कब्र में जा कर न निकल पाने सा।
दिन के बाद रात आती ही है,
पर लगता है बड़ा धोखा हुआ है,
लंबी अंधेरी सुरंग में ही जीवन बिताने का
अभिशाप सौंपा गया है ।