Virasat Swaraj Yatra 2022: कानपुर पहुंचा विरासत स्वराज यात्रा

Virasat Swaraj Yatra 2022:  9 जनवरी 2022 को विरासत स्वराज यात्रा (Virasat Swaraj Yatra 2022) लोक सेवक मंडल, शास्त्री भवन कानपुर पहुंचा.

Virasat Swaraj Yatra 2022:  9 जनवरी 2022 को विरासत स्वराज यात्रा (Virasat Swaraj Yatra 2022) लोक सेवक मंडल, शास्त्री भवन कानपुर पहुंचा. इस यात्रा का सम्मान मंडल के अध्यक्ष दीपक मालवीय और कानपुर के सामाजिक कार्यकर्ताओं. राजनैतिक दलों के नेताओं, शिक्षकों और विद्यार्थियों ने किया. यात्रा को संबोधिक तकते हुए जलपुरुष राजेद्र सिंह ने कहा कि, आज हमारा कानपुर गंगा का हत्या बन गया है.

कानपुर से ही गंगा सबसे ज्यादा दूषित और प्रदूषित होती है. कानपुर के लोग क्या गंगा को गंगा बनाने के बारे में सोच सकते है? आज गंगा की हत्या हमारी आधुनिक शिक्षा ने की है. गंगा सबकी साझी विरासत है. यह राज-समाज संतों की साझी होती है. लेकिन गंगा की खुद की अस्मिता बहुत बड़ी होती है.  गंगा की जमीन उसकी खुद की अपनी जमीन होती है. उसकी देखभाल करने का काम सदियों से निषाद करते आए है.

यह बात ऋग्वेद में बहुत अच्छे से मानी जाती है. जब दुर्योधन ने विदुर को देश निकाला दिया, तब सभी जगह यह घोषण कर दी थी कि, विदुर को कोई मदद ना करें.  उसे यह देखना था कि, कितने समय में? कैसे राज से बाहर निकलेगा? विदुर विद्वान था, वह हस्तनापुर में गंगा की जमीन पर चले गए थे। गंगा की जमीन पर राजा का राज नहीं होता. कोई भी नदी हो, नदी अपनी जमीन की खुद मालिक होती है. उस ज़मीन को प्रबंधन करने का राजा निषाद को जिम्मेदारी देता था. निषाद से पुछ  कर ही राजा जमीन का उपयोग करता था। लम्बे समय तक नदियों पर अधिकार निषादों का रहा है.

इसके बाद यात्रा विटोरा घाट ओम धाम में पहुँची. यहाँ स्वामी विज्ञानानंद जी और गुरुकुल वासियों ने यात्रा का स्वागत किया. यहाँ गंगा जी उत्तरवाहिनी है. यहाँ जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि, आप सब गुरूकुल में पढ़ रहे है, यहाँ स्वार्थ की शिक्षा नहीं होती है. यहाँ सभी के शुभ के लिए विद्या पायी जाती है. आपकी विद्या से यह उत्तरवाहिनी गंगा अविरल – निर्मल बनकर बहे, आप सभी बहुत भाग्यशाली है कि, इस पवित्र घाट पर आपकी शिक्षा हो रही है.

यहाँ स्वामी विज्ञानानंद ने नदियों के प्रबंधन के बारे में लम्बे विचार रखे. स्वामी जी ने कहा कि, भारत की सबसे प्राचीन सिंधु सभ्यता के बाद, सरस्वती सभ्यता थी. सरस्वती सभ्यता  आर्यों ने नरभक्षियों को नर भक्षण पर रोक लगाने की बहुत कोशिश की, जिसमें भारद्वाज ऋषि के बहुत सारे शिष्य मारे गए. इन नर भक्षों को रोकने के लिए सरभंग को जिम्मेदारी दी थी। सरभंग एक बहुत कुशल नायक था. सरभंग ने अपने शिष्यों को नरभक्षी को रोकने के लिए बहुत बलिदान दिया। इन्होंने पूरी कोशिश करी की नरभक्षी रूक सकें. जब इन सभी से नहीं रूके, तब भारद्वाज आश्रम में राम, लक्ष्मण और सीता जी के साथ आए. इन्होंने अपने शिष्यों से पहले आग्रह कर दिया था कि, जब राम आये तो यह यज्ञ कुंड में मुखाग्नि देकर इसको बनाए रखना और मैं श्री राम के सामने ही अग्निमुख हो जाऊंगा. फिर जब राम आएं, तो हमारे शिष्यों के भक्तों के नरमुंड नारंग को दिखाएँ.

सरभंग ने अपनें शिष्यों को कहा था कि, तुम श्री राम को कहना कि, अब हमारे गुरु तो चले गए है, अब हमारी कौन रक्षा करेगा. तब श्री राम ने करूणा में होकर इनकी रक्षा का संकल्प देकर, आप सभी उनको अपना नायक मानकर उनके नेतृत्व में काम करना। स्वामी जी ने कई ऐसी कथाएँ सरस्वती सभ्यता को स्थापित करने के लिए सुनाई. यहाँ जलपुरूष राजेन्द्र सिंह ने पूछा कि, भारत में यह सरस्वती सभ्यता कितने स्थानों पर है? कितनी नदियों के किनारे है? तब स्वामी जी ने कहा कि, 18 नदियाँ है, जो सरस्वती के नाम से जानी जाती है। इनके किनारे की सभ्यता ही सरस्वती सभ्यता कहलाती है।

स्वामी जी ने कहा कि, सरस्वती सभ्यता के बाद गांगे सभ्यता बनी थी. अब गांगे सभ्यता पर भी खतरा है। गांगे सभ्यता को बचाने के लिए स्वामी सानंद प्रो जी.डी. अग्रवाल, स्वामी निगमानंद जी जैसे ऋषियां ने अपने प्राण त्याग किए है। फिर भी गांगे सभ्यता पर संकट बरकरार है। आज हमारे सभ्यता की मां गांगे , गंदा नाला बन कर मर रही है।  इसको बचाने के नाम पर चर्चा बहुत हो रही है, लेकिन काम नहीं हो रहा है। इसको बचाने के लिए संतो ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है। फिर भी यह सरकारें सुन नहीं रही है। यह बात इस सभा में आगे बढ़ी। इसके बाद विज्ञानानंद जी ने कहा कि, सरस्वती सभ्यता को स्थापित करने बहुत ऋषियों ने अपना बलिदान दिया है. अब गांगे सभ्यता पर भी संकट है, इसलिए हमें नई आध्यात्मिक शक्ति की आवश्यकता है और यह शक्ति स्थापित करने के लिए यह विरासत स्वराज यात्रा शिक्षा की जगह भारतीय विद्या को स्थापित करने में समाज को तैयार करेंगी. देर रात यात्रा प्रयागराज पहुंची. इस यात्रा में अरविंद कुशवाहा, आर्यशेखर आदि उपस्थित रहे.

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