आज आप तख़्त में हो, घमंड में सब कर रहे हो, लेकिन आपको इसका अंजाम नहीं पता – मोदी को सत्यपाल मलिक की खरी-खरी

कृषि कानूनों को लेकर पीएम मोदी से मिले सत्यपाल मलिक

एक ओर जहां किसानों के हक में बोलने वाले कम ही हैं, उस पर भी सरकार की ओर से तो अब तक किसी ने भी किसानों के दर्द को न महसूस किया और न ही कुछ कहा. ऐसे में लंबे समय बाद रविवार को मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसानों के हक में अपना मुंह खोला. उन्होंने बताया कि इस मामले में उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत भी हुई और उन्होंने किसानों के हक में पीएम से सिफारिश भी की. हालांकि पीएम मोदी ने इस बारे में उनसे क्या कहा, इस पर उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया. उनके इस बयान ने चारों ओर अफरा तफरी का माहौल बना दिया.

मीडिया स्वराज डेस्क

मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने रविवार को एक बार फिर से केंद्र सरकार को कृषि कानूनों के मुद्दे पर घेरा और कहा कि उसे अंततः कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों की मांगों को स्वीकार करना ही होगा, और यह भी कि उसे नई संसद के बजाय विश्व स्तर के कॉलेजों में निवेश करना चाहिए था.

रविवार को जयपुर में ‘तेजा फाउंडेशन’ की ओर से आयोजित ‘ग्लोबल जाट समिट’ को संबोधित करते हुए मलिक कहते हैं, देश ने इतना बड़ा आंदोलन शायद कभी न देखा हो, जिसमें 600 लोग शहीद हो गए. यहां तक कि जब एक जानवर भी मारा जाता है तो दिल्ली के नेता उसके लिए दुख जाहिर करते हैं लेकिन 600 किसानों की मौत के बावजूद दिल्ली के एक भी नेता ने कोई प्रस्ताव या मोशन पास कर अपनी संवेदना जाहिर नहीं की. महाराष्ट्र में शनिवार को एक घटना हुई तो दिल्ली से भी प्रस्ताव पारित किया. लेकिन हमारे 600 लोग मारे गए लेकिन किसी ने उस पर कुछ भी नहीं कहा. यहां तक कि हमारे वर्ग के लोग भी यानि कृषक समुदाय से जुडे लोग भी संसद में प्रस्ताव पास करले के लिए खड़े नहीं हुए.

इस मुद्दे पर वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले. फिर मलिक ने कहा कि मैं बहुत दुखी हुआ और नाराज भी. यही वजह थी कि मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिला और उन्हें समझाया कि आप स्थिति को गंभीरता से नहीं समझ रहे हैं. न तो सिख समुदाय के वे लोग कभी हार माने थे और न ही ये जाट कभी हार मानेंगे. आपको लगता है कि ये किसान आसानी से यहां से चले जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं है. उन्हें यहां से विदा करने से पहले कुछ दे दीजिए और दो चीजें न कीजिए. पहला- उनके साथ जबरदस्ती मत कीजिए और दूसरा- उन्हें खाली हाथ मत भेजिए क्योंकि वे अगले हजारों वर्षों तक यह सब कभी भी भूल नहीं पाएंगे.

मलिक ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय को याद करते हुए कहा कि अकाल तख्त पर ओपरेशन ब्लूस्टार करने का खामियाजा उन्हें पूरी जिंदगी भुगतना पड़ा था, जिसने सिख समुदायों को गहरा आघात पहुंचाया था और जनरल एएस वैद्य को आर्मी चीफ के पद से रिटायरमेंट मिलने के बाद पुणे में मार ​डाला गया था जबकि जालियांवाला बाग के कर्ता धर्ता जनरल (Michael O’Dwyer) डायर को लंदन में मार गिराया गया था.

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जब कारगिल युद्ध हुआ तो इन्हीं किसानों के 20वर्षीय बच्चों ने ऊंचीे पहाड़ियों पर विजय पताका लहराई. मैं मानता हूं कि यह का​रगिल में प्रवेश सरकार की हार थी लेकिन ये ​उन किसानों के बच्चे ही थे, जिन्होंने अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर इसकी कीमत चुकाई. यह अन्याय सिर्फ हमारे साथ ही होता है और कभी कभार लोग इस पर प्रतिक्रिया भी दे देते हैं. मैं नहीं चाहता कि एक दिन ऐसा आए जब ये किसान भी इसके लिए अपनी प्रतिक्रिया दें. किसानों ने अभी तक किसी को कंक्रीट के टुकड़े से भी नहीं मारा है. लाल किले की घटना का किसानों के विरोध से कोई संबंध नहीं था.

उन्होंने आगे कहा, अगर मैं कृषि कानूनों के आंदोलन में विरोध का नेता होता, तो भी इसे सही ठहराता कि लाल किले में तिरंगा फहराने का अधिकार केवल प्रधानमंत्री का है.

उन्होंने कहा कि लोक साहित्य, कहानियां और सिख व जाटों के गीत में अक्सर लाल किले का जिक्र होता है. सिख गुरु तेग बहादुर को इसी लाल किले के बाहर मौत के घाट उतार दिया गया था. तो क्या उनकी संतानों को लाल किले पर तिरंगा फहराने का अधिकार नहीं है? लाल किला हमारे जाट समुदाय की सोच और इतिहास का एक अटूट हिस्सा है, बिल्कुल उसी तरह से जैसे कि यह सिखों की जिंदगी का है. इसलिए प्रधानमंत्री के अलावा अगर किसी और का लाल किले पर तिरंगा फहराने का अधिकार है तो वह केवल हम हैं.

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उन्होंने आगे कहा, 26 जनवरी को जो हंगामा हुआ था, तब भी तिरंगे को उस खास जगह पर फहराने की कोशिश नहीं की गई थी जहां कि हर साल प्रधानमंत्री फहराते हैं, लेकिन इसे इस तरह से दिखाया गया जैसे मानो कुछ खतरनाक हो गया हो, जैसे देशद्रोह हो गया हो.

मैंने प्रधानमंत्री से कहा , आप राजा हैं और बड़े भी हैं. आपको इन किसानों से कहना चाहिए था कि आप गलत हैं और तब आप सही होते अगर आप अब भी उनकी मांगें मान लेते क्योंकि आप उनका दर्द महसूस नहीं कर पा रहे. ऐसा करके आप अपना कद और भी ऊंचा कर सकते थे. राज्यपाल ने आगे कहा कि मैं आपसे नहीं बताऊंगा कि इस मुद्दे पर उन्होंने कैसी प्रतिक्रिया दी और मुझे क्या कहा?

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उन्होंने किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के महत्व को रेखांकित किया और कहा: जब एमएसपी लागू होता है तो इससे किसी का नुकसान होता है. वे किसानों को मुश्किल में डालना चाहते हैं. वे खुद भी किसानों से कम कीमत पर सामान खरीदते हैं और फिर उसे अधिक कीमत पर बेचते हैं. मैं आपको यह लिखित में दे रहा हूं. सरकार रहे या न रहे पर एमएसपी रहेगा और यह कानून बनकर रहेगा.

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