कोरोना जैसी महामारियों से राजनीतिक उथल -पुथल और समाज में व्यापक परिवर्तन

महामारियों का इतिहास -3

                                     

कोरोना जैसी महामारियों का इतिहास यह बताता है कि महामारियों के कारण राजनीतिक उथल -पुथल व समाज में व्यापक परिवर्तन होता रहा है।6वीं शताब्दी के प्लेग ने रोम साम्राज्य एवं 14वीं शताब्दी में चीन के यांग साम्राज्य को ध्वत कर दिया।1920 में फैले स्पेनिश फ्लू ने विशाल ब्रिटिश साम्राज्य को कमजोर कर दिया,जिससे कई स्वतंत्र राज्योंका उदय हुआ।आज कोरोना कोविड-19 महामारी के असफल प्रबंधन और उससे हुई मौतो में बहुत सी सरकारों को अस्थिर कर दिया । 

डा आर अचल
डा आर अचल

वैश्विक महामारियों के संक्रमण काल के बाद समाज में व्यापक परिवर्तन पाये गये है।साम्राज्यों के ध्वस्त और उदय की घटनायें भी होती है।6वीं शताब्दी में रोम साम्राज्य व 14वीं शताब्दी में चीन यांग साम्राज्य प्लेग के कारण नष्ट हो गये।

6वीं शताब्दी में रोम का शक्तिशाली शासक जस्टिशिटन था। रोम में उस समय दास प्रथा थी।यही रोम का उत्पादक वर्ग था,जो निःशुल्क खेतों,कारखानों में काम करता था।इस समय जब प्लेग का आक्रमण हुआ तो सम्भ्रांत वर्ग अपने घरो में क्वारंटीन हो गया।दास खेतों,कारखानों मे काम करता रहे,सैनिक युद्ध अभियान पर रहे।इसलिए दास कामगार व सैनिक प्लेग के शिकार हो गये।जिससे रोम साम्राज्य का उत्पादन और सुरक्षा व्यवस्था ध्वस्त हो गयी।

साम्राज्य आर्थिक और सुरक्षात्मक दृष्टि से कमजोर गया।जिसका लाभ उठा कर जर्मन  कबीइलियों ने विद्रोह कर दिया, अंततः एक मजबूत साम्राज्य का अंत हो गया।इतिहास में इसे जस्टिशियन प्लेग के नाम से जाना जाता है।इस भयावह विनाश का पाश्चत्य दुनिया में गहरा सामाजिक प्रभाव हुआ।इसी समय हताशा में लोगो में ईसाई धर्म को स्वीकार करने लगे,बहुत सारे लोग नास्तिकता की ओर बढ़ गये,जो आगे चल कर ज्ञान-विज्ञान के वाहक बने।

साम्राज्य आर्थिक और सुरक्षात्मक दृष्टि से कमजोर गया।जिसका लाभ उठा कर जर्मन  कबीइलियों ने विद्रोह कर दिया, अंततः एक मजबूत साम्राज्य का अंत हो गया।इतिहास में इसे जस्टिशियन प्लेग के नाम से जाना जाता है।इस भयावह विनाश का पाश्चत्य दुनिया में गहरा सामाजिक प्रभाव हुआ।इसी समय हताशा में लोगो में ईसाई धर्म को स्वीकार करने लगे,बहुत सारे लोग नास्तिकता की ओर बढ़ गये,जो आगे चल कर ज्ञान-विज्ञान के वाहक बने।

इसी प्रकार 14वीं शताब्दी में चीन का यांग साम्राज्य भी प्लेग महामारी के कारण ध्वस्त हो गया ।1920 में स्पेनिस फ्लू के कारण ब्रिटिश साम्राज्य कमजोर होने लगा था।भारत जैसे उपनिवेशों में भी भारी संख्या में लोग मारे गये थे ,जिससे जनता नें यह धारणा बन गयी कि अग्रेजों ने ही यह महामारी फैलायी है।इसलिए आजादी के आंदोलन से जनता जुड़ने लगी। इसके बाद विश्वयुद्ध ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दिया।अन्ततः 27 साल बाद 1947 तक भारत सहित अनेक ब्रिटिश उपनिवेश स्वतंत्र हो गये।। 

 भारतीय समाज पर महामारियों का कुछ अलग प्रभाव पड़ा।19वीं,20वी शताब्दी के शुरुआत में हैजा और प्लेग का दौर चल रहा था।ऐसे समय समय में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने कर के लालच में इलाहाबाद का कुम्भ मेला आयोजित किया।इससे हैजा महामारी के रूप में फैल गयी 

ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अफसर, सम्पन्न वर्ग, सेठ, सामंत, राजे, महाराजे,जमींदार अपने हवेलियों में क्वारंटीन हो गये ।हैजा फैलने से श्रद्धालु मेले में लावारिस हालात में मरने लगे,लोग जैसे-तैसे अपने शहरों-गाँवों की ओर भागने लगे,जिससे पूरे देश में महामारी फैल गयी। किसान,मजदूर, विपन्न,गाँव, इसके शिकार हो गये।गाँव के गाँव उड़ गये।बचे हुए लोग नये स्थानों पर जा बसे।गरीबों और अमीरों के बीच एक बड़ी खाई बन गयी।जिस जाति वर्ग की बस्तियाँ अधिक प्रभावित हुई थी उन्हे अछूत माना जाने लगा।

चेचक,हैजा जैसी महामारी का भारतीय समाज पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि इसे दैवी प्रकोप मान लिया गया।जिससे उबरने के लिए शीतला और काली देवियों की पूजा की परम्परा शुरु हो गयी।समान्यतः राज्य व्यवस्थ्या के असफल होने के कारण आम जनता दैवी सहारा खोज लेती है।ऐसी स्थिति में तंत्र-मंत्र,टोने-टोटके का प्रभाव बढ़ गया,जो कमोबेस आज भी जारी है।

दुर्योग यह है कि वर्तमान महामारी कोरोना कोविड-19 के दूसरी लहर के समय भी हरिद्वार कुम्भ का आयोजन किया गया।इसके बाद ही उत्तर भारत में कोरोना के व्यापक संक्रमण की खबरे आनी लगी।उत्तर भारत में त्राहिमाम् मच गया।गंगा में लाशें तैरने लगीं.

नदियों में लाशें
नदियों में लाशें बहाने पर जुर्माना होगा

अकिंचन बिहार, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, असम,बंगाल आदि प्रदेशो के गाँवों की हताश जनता पुनःएक बार अदृश्य शक्तियों के भरोशे होकर,कोरोना माता की पूजा करने लगी।इसके प्रभाव का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि महिलाओं ने कोरोना के लेकर पारम्परिक गीत रच लिया।

कोरोना के प्रभाव में भारत ही नहीं, पूरी दुनियाँ पर राजनैतिक-सामाजिक प्रभाव पड़ा है।दुनिया के इतिहास का यह विभाजन काल सिद्ध हो सकता है।संभव है दुनियाँ का इतिहास अब पूर्वकोरोनाकाल  तथा उत्तरकोरोनाकाल के रुप में जाना जाना जाय।

विश्व के राजनैतिक-सामाजिक समीकरण ध्वस्त होते दिख रहे है। भौगोलिक, महाद्वीपीय, देशिक, सामाजिक, धार्मिक तथा वैयक्तिक समीकरण बदल बदल रहे है।नये समीकरण बनते दिखने लगे है।दुनियाँ की महाशक्ति अमेरिका अपना आधार खोता जा रहा है।चीन नयी विश्वशक्ति के रुप में उभरता दिख रहा है।कोरोना महामारी के असफल प्रबंधन के कारण अमेरिकी चुनावों में राष्ट्रपति ट्रम्प को चुनाव हारना पड़ा।ब्राजील आदि कई देशों में राजनैतिक परिवर्तन देखे गये।दुनियाँ के अनेक देशों मे सत्ता के प्रति जन आक्रोश की खबरें मिल रही है।

इस स्थिति में कुल सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिले है। लाकडाउन के कारण पर्यावरण स्वच्छ हुआ है,नदियोँ का जल भी साफ हो गया।इसलिए विकास की अवधारण भी प्रभावित सकती है।पूरे दुनियाँ के पूजा घर मंदिर,मस्जिद,चर्च आदि बन्द किये गये,जिससे धर्म के प्रति भी मनुष्य का व्यवहार बदल सकता है।

समाशास्त्री दुर्खिम का कथन सत्य होता दिख रहा है-आत्महत्या भी व्यक्ति स्वयं नहीं करता है।समाज के दबाव व अव्यवस्था के कारण आत्महत्या के लिए विवश होता है।इस काल में महामारी से अधिक लोग गरीबी,सामाजिक अराजकता एवं कुव्यवस्था व गलत नीतियों के कारण भी लोग मारे जा रहे है। भारत में अचानक लाक़डाउन से मजदूर, भिखारी, फुटकर दुकानदार बेरोजगार हुए है।प्रवासी मजदूर, फुटकर दुकानदार शहरो के पैदल अपने गाँवों लौटने में मारे गये है।इसलिए सामाजिक-आर्थिक विषमता की खाई गहरी होती जा रही है।

साधन व शक्ति सम्पन्न लोग स्वयं की सुरक्षा पर केन्द्रित हैं. विपन्न के पास जो है वह भी छिन चुका है।इसलिए वह जितने लोग महामारी से नहीं मरे है,उससे अधिक भूख व संसाधनो के अभाव से मर सकते है।निजी क्षेत्र उच्च वेतन पर काम करने वाले नौकरी खोने के कारण आत्महंता बन सकते है।महामारियों के इतिहास को देखने के बाद ऐसी सम्भावनाओं व्यक्त की जा रही है।

शिक्षा व कला की दुनिया भी पूरी तरह बदल सकती है।जिसका संकेत दो सालों के आन लाइन क्लासेज में मिल रहा है।इससे समाज के निचले पायदान के लोग शिक्षा से वंचित हो सकते है।जो शिक्षित होगे वे सोच से वंचित हो सकते है।इस प्रकार कोरोना जैसी महामारियाँ राजनीति और समाज को गहराई से प्रभावित करती है,जिसकी सम्भावनायें हमारे सामने है।

 डॉ.आर.अचल , संपादक-ईस्टर्न साइंटिस्ट एवं आयोजन सदस्य-वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस.

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