वाल्मीकि जयंती पर करीब से जानिए महर्षि वाल्मीकि को…
वाल्मीकि जयंती या परगट दिवस
क्या तुम्हारे घरवाले भी तुम्हारे बुरे कार्यों में तुम्हारा साथ देंगे? नारद मुनि के इस सवाल का जवाब रत्नाकर को अपने परिवारवालों से जब ना में मिला, तब जाकर उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि वे कितनी बड़ी गलती कर रहे हैं? रात दिन हत्याएं करने वाले रत्नाकर ने मरा मरा का जाप कर रामायण की रचना करने का गौरव पा लिया. वाल्मीकि जयंती पर आज जानिए, इसकी पूरी कहानी…
Valmiki Jayanti : आज वाल्मीकि जयंती है. हर साल आश्विन मास की पूर्णिमा को महर्षि वाल्मीकि (Maharshi Valmiki) का जन्मदिन मनाया जाता है. इस दिन देश के विभिन्न हिस्सों में कई धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.
महर्षि वाल्मीकि को संस्कृत का आदिकवि कहा जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में 24000 श्लोकरामायण (Ramayana) महाकाव्य की रचना की थी. इसे ही वाल्मीकि रामायण कहा जाता है. वाल्मीकि जयंती को परगट दिवस के नाम से भी जाना जाता है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार महर्षि वाल्मीकि का असल नाम रत्नाकर था. उनके पिता ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे, लेकिन रत्नाकर जब बहुत छोटे थे, तब एक भीलनी ने उन्हें चुरा लिया था. जिसके बाद वह भीलों के समाज में पले-बढ़े. वहां कई सारे भील राहगीरों को लूटने का काम करते थे. इसलिए वाल्मीकि ने भी वही रास्ता अपनाया.
डाकू से वाल्मीकि का सफर
एक बार नारद मुनि जंगल के रास्ते जाते हुए डाकू रत्नाकर के चंगुल में आ गए. बंदी नारद मुनि ने रत्नाकर से सवाल किया कि क्या तुम्हारे घरवाले भी तुम्हारे बुरे कार्यों में तुम्हारा साथ देंगे? रत्नाकर ने अपने घरवालों के पास जाकर नारद मुनि का सवाल दोहराया. जिसके जवाब में उन्होंने स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया. डाकू रत्नाकर को इस बात से काफी झटका लगा और उसका हृदय परिवर्तन हो गया. साथ ही उसमें अपने जैविक पिता के संस्कार जाग गए. इसके बाद रत्नाकर ने नारद मुनि से मुक्ति का रास्ता पूछा.
एक अन्य कथा के अनुसार, प्रचेता नाम के एक ब्राह्मण के पुत्र, उनका जन्म रत्नाकर के रूप में हुआ था, जो कभी डकैत थे. नारद मुनि से मिलने से पहले उन्होंने कई निर्दोष लोगों को मार डाला और लूट लिया, जिन्होंने उन्हें एक अच्छे इंसान और भगवान राम के भक्त में बदल दिया. वर्षों के ध्यान अभ्यास के बाद वह इतना शांत हो गया कि चींटियों ने उसके चारों ओर टीले बना लिए. नतीजतन, उन्हें वाल्मीकि की उपाधि दी गई, जिसका अनुवाद “एक चींटी के टीले से पैदा हुआ” है.
राम नाम का जाप
नारद मुनि ने रत्नाकर को राम नाम का जाप करने की सलाह दी लेकिन रत्नाकर के मुंह से राम की जगह मरा-मरा निकल रहा था. इसकी वजह उनके पूर्व कर्म थे. नारद ने उन्हें यही दोहराते रहने को कहा और कहा कि तुम्हें इसी में राम मिल जाएंगे. ‘मरा-मरा’ का जाप करते-करते कब रत्नाकर डाकू तपस्या में लीन हो गया. तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें ‘वाल्मीकि’ नाम दिया और साथ ही रामायण की रचना करने को कहा.
रामायण की रचना की कहानी
महर्षि वाल्मीकि ने नदी के तट पर क्रोंच पक्षियों के जोड़े को प्रेमालाप करते हुए देखा लेकिन तभी अचानक पास में मौजूद एक शिकारी का तीर नर पक्षी को लग गया. ये देखकर कुपित हुए वाल्मीकि के मुंह से निकला, ‘मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः. यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम्.’ अर्थात प्रेम क्रीड़ा में लिप्त क्रोंच पक्षी की हत्या करने वाले शिकारी को कभी सुकून नहीं मिलेगा. हालांकि, बाद में उन्हें अपने इस श्राप के कारण दुख हुआ. तब नारद मुनि ने उन्हें सलाह दी कि आप इसी श्लोक से रामायण की रचना करने की शुरुआत करें.
दिया रामायण को जन्म
वाल्मीकि ने नारद मुनि से भगवान राम की कथा सीखी, और उनकी देखरेख में, उन्होंने काव्य पंक्तियों में भगवान राम की कहानी लिखी, जिसने महाकाव्य रामायण को जन्म दिया. रामायण में उत्तर कांड सहित 24,000 श्लोक और सात कांड हैं. रामायण लगभग 480,002 शब्द लंबा है, जो एक अन्य हिंदू महाकाव्य, महाभारत के संपूर्ण पाठ की लंबाई का एक चौथाई या एक पुराने ग्रीक महाकाव्य इलियड की लंबाई का लगभग चार गुना है. वाल्मीकि जयंती पर, वाल्मीकि संप्रदाय के सदस्य शोभा यात्रा या परेड आयोजित करते हैं, जिसमें वे भक्ति भजन और भजन गाते हैं.