डिक्टेटर चाहेगा कि एक ही पार्टी रहे : लोकनायक जयप्रकाश नारायण

25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में भाषण, जिसके बाद इमर्जेंसी लगी

जय प्रकाश नारायण रैली को सम्बोधित करते हुए

 क्या हुआ था जून 1975 में,  वर्तमान राजनीति समझने के लिए इतिहास जानिए 

भारत में पिछले दिनों  आपातकाल की 45 वीं बरसी मनायी गयी . बारह जून को इलाहाबाद  हाईकोर्ट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री  इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया था और उसी दिन कांग्रेस पार्टी गुजरात विधान सभा चुनाव हर गयी थी. इसके बाद इंदिराजी से इस्तीफ़े की माँग होने लगी.  25 जून  1975  देर शाम दिल्ली के राम लीला मैदान में विपक्षी दलों की एक रैली हुई थी, जिसे  लोक नायक जय प्रकाश नारायण ने सम्बोधित किया था. जेपी ने देश की जनता को लोकतंत्र और उसकी महत्वपूर्ण संस्थाओं पर ख़तरेसे  आगाह करते हंसे सत्याग्रह के कार्यक्रम की घोषणा की थी. कांग्रेस के अंदर से भी कसमसाहट  शुरू हुई. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कुछ ही घंटे बाद आंतरिक आपातकाल लागू कर दिया.  रातों रात जेपी समेत सभी आंदोलनकारी नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया . दिल्ली के अख़बारों की बिजली काट दी गयी. सेंशरशिप लागू कर दी गयी. इसलिए जय प्रकाश जीका यह पूरा  भाषण एक तरह से अप्रकाशित रहा.वास्तव में यह भाषण से अधिक आम नागरिकों के लिए साफ़ सुथरी राजनीति और लोकतंत्र की शिक्षा का महत्वपूर्ण पाठ है, जो हमेशा  प्रासंगिक रहेगा.यह भाषण लगभग दस हज़ार शब्दों का है, जिसकी पाँचवीं  किश्त  हम आज प्रकाशित कर रहे हैं.

पहला भाग  https://mediaswaraj.com/jp_speech_25june1975_emergency/

दूसरा भाग  https://mediaswaraj.com/ये-लोकतंत्र-के-तरीक़े-नही/

तीसरा  भाग https://mediaswaraj.com/ramlila_maidan_jp_speech_part3/

चौथा भाग https://mediaswaraj.com/emergency_1975_jayprakash_narayan_speech_25june/

पाँचवाँ भाग : https://mediaswaraj.com/jayprakash_narayan_25june1975_speech/

यहाँ से आगे =====

आओगे क्लासों में कि जाओगे जेलों में

एक सप्ताह का कार्यक्रम केवल सत्याग्रह का है। लेकिन आप समझते है कि केवल एक सप्ताह 

के सत्याग्रह से प्रधानमंत्री इस्तीफा दे देने वाली हैं ? ( श्रोताः नहीं, नहीं) तब आगे आ जाना

पड़ेगा। देश भर में सत्याग्रह करना पड़ेगा। डरेंगे तो याद रखियेगा और इसके लिए यह दिल्ली

विश्वविद्यालय खुलने वाला है और नेहरू विश्वविद्यालय खुलने वाला है। तो विश्वविद्यालयों के

लड़कों, याद रखो, तुमको सोचना पड़ेगा कि आओगे अपन क्लासों में या जाओगें जेलखानों में ?

जेलखानों में आओगे?  श्रोताः हां, हां जायेंगे। अच्छी बात है। देखूंगा में।

सिविल नाफरमानी

जय प्रकाश नारायण

तो मित्रो, यह तरह-तरह का सिविल डिसओबिडियन्स होगा। यह भी वक्त आ सकता है, ये

लोग अगर मानेंगे नहीं, जब यह फैसला हो कि सरकार को हमने अमान्य किया है, इनको कोई

नैतिक या कानूनी अधिकार, वैधानिक अधिकार नहीं है शासन करने का, इसलिए इनको हमने

अमान्य किया है, इनके साथ सहयोग नहीं करेंगे, इनको एक पैसा टैक्स नहीं देंगे। यहां तक 

कहना पड़ेगा आपको और फिर उसमें कुर्की होगी, नीलामी होगी। उन सबके लिए तैयार रहना

पड़ेगा। मैं यह समझता हूं कि ये कांग्रेस पार्टी के शासक कांग्रेस दल, उसके नेता इस तरह से

अपनी आंखों को बंद करके कानों में तेल डालकर के बेखबर हुए हैं कि सोचते नहीं कि दुनिया

किधर जा रही है। जिस रास्ते पर वे चल रहे हैं उसी रास्ते पर चलते रहेंगे। भगवान करे कि

ऐसा हो- न यह उनके हित में होगा न देश के हित में होगा। लेकिन हो सकता है जिस प्रकार

इंदिराजी का रुख मैं देख रहा हूं उसे देखकर लगता है सब हो सकता है। आपको याद दिला दूं

गुजरात के लड़कों ने जब आन्दोलन शुरू किया था पिछले साल जनवरी में तो कौनसी उनकी

मांग थी जिस मांग को अमान्य किया जा सकता था। जिस मांग को गैरमुनासिब कहा जा

सकता था? लेकिन लाठियां चली। गोलियां चली। डेढ़ सौ लोग मारे गए। बिहार के लड़कों ने

प्रदेश छात्र संघर्ष समिति बनाकर अपनी मांगे पेश की- 12 मांगे। एक भी मांग उनमें से ऐसी

नहीं है जो गैरमुनासिब हो। बातचीत हो सकती है। मगर वहां के मुख्यमंत्री को इतनी अक्ल नहीं

थी, शासन करने की। इतनी लियाकत नहीं थी कि वे लड़कों से बातचीत करते तो इंदिराजी को

तो समझना चाहिए था। इन्होंने कहा कि स्प्लिट हुई कांग्रेस में। फूट हुई किस आधार पर ?  ये

लोग प्रगति को, प्रोग्रैस को, चैन्ज को, परिवर्तन की, क्रांति को, इनकलाब को रोक रहे हैं। नया

समाज नहीं बनाने देना चाहते हैं। ये स्टेट्स-इनकलाब को रोक रहे हैं। नया समाज नहीं बनाने

देना चाहते हैं। ये स्टेट्स कोइस्ट हैं, यथास्तिथि को कायम रखना चाहते हैं। और मैं बहुत आगे

जाना चाहती हूं और ये लोग हमारा रास्ता रोके हुए हैं। इसलिए मैं आगे जा नहीं सक रही हूं। ये

सारा उनके नारे थे। जनता ने समझा कि कहीं से देवी उतर आयी है! जवाहरलालजी की पुत्री हैं।

अवश्य कुछ करेंगी। जब इस तरह की बातें वे कह रही हैं। उसी परम्परा में ये पली हैं। अब 69

छोड़ दीजिये। उनका बहुमत नहीं था। 71 में इन्हीं नारों के ऊपर वह जीत के आयी। भारत में

कौन सा परिवर्तन किया है उन्होंने ?  सिक्किम की बात करती हैं वह। सिक्किम में आज जो

सला हुआ वह पच्चीस वर्ष पहले होना चाहिए था। अगर जवाहरलाल जी चाहते तो यह आज जो

चोग्याल साहब हैं उनके पिताजी और उस समय जो सिक्किम की कांग्रेसी थी वे भी उस समय

तैयार थे कि हम भारत में मिल जाना चाहते हैं। क्यों जवाहरलाल जी ने उसको स्वीकार नहीं

किया? इस ससवाल को इतना लम्बा क्यों लटकाया गया ? और कई सवाल, वे कहती हैं कि हल

किए। लेकिन जिस समाज को आप बदलने चली थीं, उसमें क्या परिवर्तन हुआ ?

पूंजीपतियों का समर्थन किसे?

इंदिरा गांधी बेटे संजय के साथ

आज तक आप प्रधानमंत्री बनी रहीं इसके लिए जो चारों तरफ से आवाजें उठ रही हैं- आवाज

उठाने वाले कौन लोग हैं ? आप कहती हैं ये लोग प्रतिक्रिया वादी हैं। जयप्रकाश नारायण है

उनके पीछे धनवाले, पैसेवाले, करोड़पति लोग हैं। लेकिन इस फैडरेशन आफ इंडियन चैंबर्स आफ

कामर्स एण्ड इन्डस्ट्रीज में कौन लोग हैं ? आप जानते होंगे कि जो फैडरेशन हैं, सारे भारत के

बड़े से बड़े व्यापारियों और उद्योगपतियों का, सबसे बड़ा फैडरेशन हैं इस इंडियन चैबर्स आफ

कामर्स एण्ड इण्डस्ट्रीज की तरफ से प्रस्ताव पास हुआ है कि इंदिराजी को इस्तीफा नहीं देना

चाहिए। इंदिराजी हमें विश्वास है तो भारत का पूंजीवाद, भारत का कैपिटेलिज्म आज इंदिराजी के

पीछे खड़ा है। दूसरों को तो कहते हैं। गोबल्स ने ठीक यही काम किया था। हिटलर का वह

आदमी था। यह फासिस्ट है, वह फासिस्ट है और स्वयं जा रही हैं उस तरफ और धीरे-धीरे

पर्दाफाश होता जा रहा है। फासिज्म का रुप इंदिरा गांधी के रुप में साफ होता जा रहा है। स्पष्ट

होता जा रहा है। मुझे बहुत अफसोस होता है यह कहते हुए। लेकिन अगर वह चीज उनके अन्दर 

नहीं होती….. छोड़ दीजिये। कोई शरम नहीं, कोई हया नहीं, कोई नैतिक मुल्य इनके पास नहीं,

सत्ता का, पद का बड़ा लोभ है- लेकिन अगर यह चीज उनके अन्दर नहीं होती कि धीरे-धीरे,

लोकतंत्र को खत्म करके अपनी तानाशाही कायम करें तो आज इस्तीफा दे दिया होता। एक

अखबार वाले ने लिखा है, बहुत अच्छा संपादकीय लिखा है। लिखा है कि आज भी मौका है

इंदिराजी को कि ग्रेस और डिगनिटी से साथ, मर्यादा के साथ, स्वाभिमान के साथ इस्तीफा देना

चाहिए। बड़ा सुन्दर संपादकीय लिखा है हिन्दुस्तान टाइम्स ने। और लोगों ने भी लिखा है और

आज टाइम्स आफ इंडिया का संपादकीय पढ़कर तो मुझे प्लिजेंट सरप्राइज जिसे कहते हैं वह

हुआ। वे भी इस चीज को हजम नहीं कर सके। ठीक है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने लिखा है- अब भी

समय है कि वह ग्रेस एण्ड डिगनिटी से इस्तीफा दें। इसी से जार्जवर्गीज से मैं डिसएग्री करता हूं।

अब कोई ग्रैस नहीं, कोई डिगनिटी नहीं है। अब वे इस्तीफा दें तो न उसमें कोई इज्जत है न

मर्यादा है और न शान है।

किस मुंह से गरीबी की बात करती हैं ?

अब मित्रों यह लड़ाई कब तक चलेगी ?  क्या उनकी पैतरेबाजी होगी, लोकसभा वे भंग कर दे

सकती हैं, चुनाव भी जल्द हो सकता है, या अगले साल भी चुनाव हो। केवल यही नारा नहीं

लगाते जाना है कि इंदिरा जी इस्तीफा दो। साथ-साथ यह भी देखना है कि और उनके व

समर्थक कांग्रेस के जो आज कह रहे हैं कि आपके बिना देश चलेगा ही नहीं, देश जहन्नुम में,

रसातल में चला जायेगा, आप पर हमारा पूरा विश्वास है, चाहे जी भी कहे, चाहे हाईकोर्ट कहे,

सुप्रीम कोर्ट कहे, आपको प्रधानमंत्री बना रहना होगा तो यह भी आपके सामने प्रश्न आयेगा,

बल्कि मूल प्रश्न यही है कि फिर इन्दिराजी और उसकी पार्टी को वापिस नहीं आना है दिल्ली में

शासक हैसियत से। पिछले 9 वर्षों से इसका शासन देख लिया उसमें क्या परिवर्तन हुआ। कौन

सा समाज को बदला इन्होंने ? बेकारी बढ़ रही है। उन्होंने उस दिन आंकड़े नहीं दिये, ऐसा ही

कहा परसों किसी अपने ब्यान में कि बेकारी घट रही है। यब अजीब बात है। प्रधानमंत्री की गैर

जिम्मेदारी की बात नहीं कहनी चाहिए। बेकारी, अनएम्प्लायमेंट, बढ़ती जा रही है। ये हमारे

आकड़े है- याने 33 या कितने लाख थे उससे बढ़कर अब 93 लाख हो गए हैं, याने जो रजिस्टर्ड

है। कहां से उनके पास आंकड़े आये हैं? पढ़े-लिखों की बेकारी, अनपढ़ों की बेकारी, पिछले चार

बरसों में बढ़ी है। गरीबी बढ़ी है। एक अच्छे अर्थशास्त्री के हिसाब के मुताबिक शायद 1971 में

58 फीसदी भारत के लोग गरीबी की रेखा के नीचे थे, हालांकि प्लेनिंग कमीशन का कहना था

कि 40 प्रतिशत होंगे। उन्होंने एस्टिमेट किया था। आज 66 फीसदी लोग हैं। के बीच में, दो

तिहाई भारत की जनता गरीबी के रेखा के नीचे हैं और इन चार वर्षों में गरीबी हटाओ के नारे

का राद दिन नाम लेती हैं और हरिजनों को सम्बोधित करती है, आदिवासियों को सम्बोधित

करती है, लज्जा नहीं आती है कि इनका राज है उत्तर प्रदेश में, इनका राज है बिहार में और

हरिजनों को जिन्दा जलाया नया है, हरिजनों के गांव जला दिये गए हैं। क्या हरिजनों को

इंदिराजी को कुछ कहने का अधिकार है? वे तो बेचारे कहां बैठे हैं? उनको ये बातें समझ नहीं

आती हैं। लेकिन उनको कौस सा अधिकार है ? क्या उनको राज्य में हरिजनों का जीवन आश्वस्त

हुआ? वह अपना माथा ऊंचा करके आज जिन्दा रहा सकता है ? अभी हम गए थे भोजपुर के

इलाके में जहां नक्ससपंथी के नाम पर हरिजनों की कितनी हत्यायें हुई। गोलियों से उड़ा दिया

गए। जमीन के मालिक भी मारे गए हैं। एक जगह मसौढी के इलाके में तो 15 आदमियों को

इन्होंने मार दिया नक्सलाइट कह करके।

जय प्रकाश नारायण

देश बरबादी की तरफ जा रहा है

तो मित्रों, बेकारी बढ़ी, गरीबी बढ़ी, हर तरह का भ्रष्ट्राचार बढ़ा, शिक्षा की बरबादी होती गई।

जीवन का कौन सा पहलू है जिसमें बिगाड़ नहीं हुआ? सुधार कहां हुआ ? सुधार हुआ होगा इन

लोगों को जीवन में, कुछ रुपया कमाया होगा, कुछ मकान बनाये होंगे, कुछ महल बनाए होंगे,

लेकिन जनता के जीवन में कौन सा सुधार हुआ क्यों इन्दिराजी बराबर यह रिवोल्यूशन और

कांन्ति और चेंज और परिवर्तन हो ऐसा कहती हैं ?  और हम लोग जितने हैं वे प्रतिक्रियावादी

हैं। सारा काम यही कर रहे हैं, ये ही कहते हैं कि समाज को बदलना चाहिए- सामाजिक,

आर्थिक, राजनैतिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, नैतिक हर प्रकार से। अब यह तो नारा हम लगा रहे

हैं और वे क्या कहते हैं? यह तो समझ में नहीं आता है। डिक्टेटरी है यह। अब डिक्टेटरी आप

किसको कहते हैं। हम बराबर डेमोक्रेसी की बात कहते हैं। डिक्टेटर चाहेगा कि एक पार्टी रहे।

मुर्जीबुर्रहमान ने एक पार्टी बनाई, सब पार्टियों का खत्म किया, सब प्रेसों को खत्म किया।

जिनके लिये हमने इतना काम किया, जिन पर हमारा इतनी आशा हुई थी। जब वे छूटकर के

पाकिस्तान के जेल से आये थे तो खुशी के आंसू निकले थे पटने में जब मैं बीमार था। मैं उनसे

मिल नहीं पाया। उन्होंने हमारे मित्रों से कहा कि देखिएगा, मैं बुलाऊंगा जयप्रकाश नारायण को।

सेन यहीं बैठे होंगे। तो जिस तरह का भव्य स्वागत करेंगे। आज तक उनका निमंत्रण हमारे पास

आता रहा और मैं जानता हूं कि फिर क्यो निमन्त्रण नहीं आया। उसमें भी दिल्ली का हाथ है।

तो मित्रों, दिल्ली का हाथ कहां-कहां है, कितना लम्बा हाथ है, भगवान बचाएं अब मुझे जो कुछ

कहना था, कह चुका हूं कि यह गलत बात है, झूठ बात है, मिथ्या बात है।

देश बरबादी की तरफ जा रहा है। देश के गरीबों की हालत बिगड़ती चली जाती है, पीने का पानी

नहीं है आज। भारत के गावों में एक मील, दो मील के रिडियस में पीने का पानी गर्मी कि दिनों

में नहीं है। खाने की और कपड़े की कौन बात करे। रहने की कौन बात करे? इनको कोई

अधिकार है समाजवाद की बात कहने के लिए।

जयप्रकाश नारायण महात्मा गांधी के साथ

और मित्रों, याद रखों, यह लड़ाई लम्बी है। और यह केवल यहां नहीं। गुजरात में उन्होंने कर दिया विधानसभा को भंग। जब पहली नवम्बर को हुई तो उन्होंने कहा कि यह तो मुझसे गलती हो गयी। और यही लालकिले पर उन्होंने भाषण दिया कि चाहे मुझे इस्तीफा दे देना पड़े, लेकिन बिहार की विधानसभा भंग नहीं होगी, नहीं होगी, नहीं होगी। अब जवाहरलाल जी कहते थे वे अपनी बेटी के बारे में कि यह बहुत जिद्दी लड़की है। तो लाड़ली बेटी की जिद बाप के सामने टिक सकती है, लेकिन देश बरबाद हो जायेगा। उस दिन जब वे प्रधानमंत्री होकर यह कहें कि मैं इस्तीफा नहीं दूंगी, इस्तीफा नहीं दूंगी, इस्तीफा नहीं दूंगी। सारे देश की जनता आकर कहे, लाखों लोग आकर जेल में भर जायं, फिर भी इस्तीफा नहीं दूंगी। मत दीजिए इस्तीफा। कभी तो चुनाव होगा फिर फैसला होगा आपकी किस्मत का।

मौत का नक्कारा

जय प्रकाश नारायण

इसलिए मित्रों, इस्तीफे के आगे की बात सोची, असली महत्व की बात तो वही है। फिर इन

लोगों को, इन तीन कांग्रेंस के लोगों को छोड़ देता हूं- इनमें नाम सामने आ जाएंगे तो मैं स्वयं

ही इनको कहूंगा कि इनको वोट दो चाहे जिस टिकट पर हो। कांग्रेंस के टिकट से खड़े होंगे,

इसकी आशा कम है। कितने दिन वहां रहेंगे ए चन्द्रशेखर, कृष्णकान्त, मोहन धारिया, शेरसिंह,

लक्ष्मीकान्तम्या आदि ? लेकिन जो लोग आज इस तरह से जी-हूजुर बने हुए हैं, अपना ईमान

पिए जा रहे हैं और हिम्मत नहीं होती, पता नहीं कौन सी शेरनी बैठी है कि इनता भय हो रहा

है इन लोगों को। इतने लोभी बन गए हैं अपने पद के लिए, अपने मंत्रीपद के लिए और अपनी

लोकसभा की सदस्यता के लिए कि देश के हित में और पार्टी के हित में। कांग्रेंस के अच्छे-अच्छे

लोगों ने कहा है कि इंदिराजी ने जो आचरण बरता है इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद उसके

बाद कांग्रेंस इस देश में जीतने वाली नहीं हैं। लोकसभा का चुनाव कांग्रेंस नहीं जीतेगी। यह

कांग्रेंस के लोगों ने कहा है। लेकिन इसका फैसला आपके हाथों में है चुनाव के पहले बहुत से

हथकंडे होते हैं। बहुत प्रचार होता है। करोड़ों रुपया खर्च होता है। ये 75 या 74 सीटें हरगिज

नहीं मिलती उनको गुजरात में अगर करोड़ो रुपया खर्च नहीं किया होता। तो करोड़ों रुपया खर्च

होगा। गरीबों के पास वोट हैं। खाने को नहीं है उनके पास। उनको दस बीस रुपया मिलता है,

ईमान बेच देते हैं। और क्या-क्या तिकड़म करते हैं। याद रखिएगा यह कोई आसान काम नहीं है

परन्तु आप लोग समझदार हैं। आप वोट मत दीजिएगा, लेकिन दूसरों को भी समझाइएगा। जो

भी, जिसका भी संपर्क हो यह विचार फैलाना चाहिए। यह जो लोकसभा है यह आखिरी लोकसभा

है, जिसमें कांग्रेंस का रुलिंग, कांग्रेस का बहुमत है। दिस इज दी डैथ आफ दी रुलिंग कांग्रेंस

एण्ड इन्दिराजी हैज नाउ रैग दी बेल आफ डैथ फार दी किलिंग कांग्रेंस। सत्तारुढ़ दल की मौत

का नक्कारा बज गया है और इसे बजाया है खुद  इंदिराजी ने।

(समाप्त )

पचीस जून की यह सभा  शाम डर तक चली.  उसी रात तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमर्जेंसी लगा दी थी.

जय प्रकाश नारायण को नज़रबंद करने का आदेश

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