भ्रष्टाचार का इलाज जनता के हाथों में होना चाहिए – लोकनायक जय प्रकाश नारायण

25 जून 1975 को जेपी का ऐतिहासिक भाषण : लोकतंत्र का पाठ भाग -3

                              वर्तमान को समझने के लिए इतिहास को समझना ज़रूरी 

जेपी

भारत में काल आपातकाल की 45 वीं बरसी मनायी गयी . 25 जून  1975  देर शाम दिल्ली के राम लीला मैदान में विपक्षी दलों की एक रैली हुई थी, जिसे  लोक नायक जय प्रकाश नारायण ने सम्बोधित किया था. जेपी ने देश की जनता को लोकतंत्र और उसकी महत्वपूर्ण संस्थाओं पर ख़तरेसे  आगाह किया था.तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कुछ ही घंटे बाद आंतरिक आपातकाललागू कर दिया.  रातों रात जेपी समेत सभी आंदोलनकारी नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया . दिल्ली के अख़बारों की बिजली काट दी गयी. सेंशरशिप लागू कर दी गयी. इसलिए जय प्रकाश जीका यह पूरा  भाषण एक तरह से अप्रकाशित रहा.वास्तव में यह भाषण से अधिक आम नागरिकों केलिए साफ़ सुथरी राजनीति और लोकतंत्र की शिक्षा का महत्वपूर्ण पाठ है, जो हमेशा  प्रासंगिक रहेगा.यह भाषण लगभग दस हज़ार शब्दों का है, जिसकी दूसरी  किश्त हम आज प्रकाशित कर रहे हैं. यह सिलसिला लगभग एक सप्ताह चलेगा

 पहला भाग https://mediaswaraj.com/jp_speech_25june1975_emergency/

दूसरा भाग    https://mediaswaraj.com/ये-लोकतंत्र-के-तरीक़े-नही/

ईमानदारी प्राथमिक जरुरत

मैं अपने भाषणों में अकसर कहता रहता हूँ कि कम से कम जो मांग जनता कर सकती है अपने प्रतिनिधि से अपने मंत्री से, मुख्यमंत्री से, प्रधानमंत्री से, कम से कम मांग भले ही जनता को रोटी न मिले, कपड़ा न मिले, काम न मिले, खाना न मिले, लेकिन जनता कम से कम इतनी उम्मीद रखती है और रखनी चाहिए, यह मांगने का उसको अधिकार है कि हमारी सेवा आप ईमानदारी से करो। न जाने कितनी बार हजारों सभाओं में मैंने यह कहा है। और यह भ्रष्टाचार होता है तो उसका इलाज जनता के हाथों में होना चाहिए।

एक बहुत बड़े कान्स्टीट्यूशन लाइयर, याने दुनिया के माने हुए वकील सर आयवर जेंनिंग-उनका एक वाक्य अंग्रेंजी में पढ़ देता हूँ। जो मैंने कहा है वही बात उन्होंने लिखी है। उन्होंने कहा है: “दी मोस्ट एलीमेन्टरी क्वालीफिकेशन डिमान्डेड आफ ए मिनिस्टर इज आनेस्टी एण्ड इनकरप्टिबिलटी- सबसे प्राथमिक, पहली क्वालीफिकेशन सबसे पहले जो गुण होना चाहिये वह होना चाहिए कि वह आनेस्ट हो, ईमानदार हो और ईमानदार बना रहे। यह कम से कम विशेषता है। उसके बाद यह भी कहा कि यह बहुत जरूरी है कि वह आनेस्ट रहे। यह क्वालीफिकेशन तो रहे ही, मगर इतना ही नहीं, “इट इज नॉट ओनली नैसेसरी फार हिम टु पजेस दिस क्वालिफिकेशन, बट ही मस्ट आलसो एपीयर टु इट” वह ईमानदार हो और इनकरप्टिबल हो, वह भ्रष्ट नहीं बनाया जा सकता हो इतना ही जरूरी नहीं है, बल्कि लोग देखें भी, समझें भई कि यह आदमी ईमानदार है। उन्हें विश्वास भी हो उनकी ईमानदारी में। केवल इस क्वालिफिकेशन को ही सामने रखें आप। 

अंग्रेंजों ने भारत पर राज्य किया। उनकी बुरी आदतें तो बहुत सी सीख ली हमने। अपने समाज में फैली हुई आदतें देखता हूं। शराब भी लोग पीते हैं और क्या-क्या करते हैं। कुछ तो अपने देश की खराबियों और कुछ उनके देश की खराबियां। लेकिन उनकी अच्छाइयाँ हमने कुछ ली नहीं हमने। अब जिनके गुलाम रहे, उनका बड़ा आदमी यह कह रहा है। इस परिभाषा के अनुसार कम से कम जो गुण होना चाहिये वह यह होना चाहिए। उनके अनुसार क्या प्रधानमंत्री है श्रीमती गांधी किसी पद पर रह सकती हैं उसके बार में नानाजी ने कह है, आपने अखबारों में भी देखा होगा, बहुत फर्क पड़ गया है। सिर्फ इतना ही नहीं है। हमारा जो रिजोल्यूशन है, उसमें यह बात विस्तार से आई है। उसकी कापी ले आया हूँ। कोई तीन पन्ने का हिन्दी में अनुवाद है। कहीं पूरा नहीं छपा। अखबार वाले अगर देश की सेवा करना चाहते हैं तो अब भी उनको पूरा छापना चाहिए । हिन्दी, उर्दू सबमें आनी चाहिए। आपकी पालिसी कुछ भी हो, यदि आप जनता की सेवा करना चाहते हैं तो। अब उसमें यह कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के सामने जो सवाल था वह यह है कि प्रधानमंत्री को स्टे आर्डर मिला था। पालकीवाला साहब “एब्सोल्यूट” (पूर्ण) मांग रहे थे, जिससे वह पार्लियामेंट में ‘फंक्शन’ कर सके, जब तक उसका फैसला हो सुप्रीम कोर्ट में आखिर में दो-चार महीनों में फैसला होगा। अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि इस तरह से हम पूरा स्थगन तो नहीं दे सकते। जहां तक मेंम्बर आफ पार्लियामेंट है, उसमें उन्होंने बता दिया है कि मैम्बरी उनकी रहेगी, वह खत्म नहीं होती है। मगर मैम्बरी के कोई अधिकार उनको पास नहीं हैं। एक बात हमारे प्रस्ताव में भी छूट गई है। क्योंकि वे पार्लियामेंट की मैंम्बर की हैसियत से तनखा नहीं ले सकती है। वहां की बहस में वे हिस्सा नहीं ले सकती हैं, ये सारी बातें उसमें हैं, यानि वोट तो मंत्री के पद से भी नहीं दे सकती हैं, भाग भी नहीं ले सकती हैं। सिर्फ आकर के रजिस्टर में दस्तखत कर सकती हैं जिसमें उनकी मैंम्बरी खत्म न हो। जब जज ने अपने जजमेंट में लिखा है कि हमारे सामने जो सवाल था वह केवल यही था, पार्लियामेंट की मैम्बरी का सवाल।

जिसकी मैम्बरी तक पर शंका हो…………..

मि. जस्टिस कृष्णा अय्यर ने लिखा है कि दिस अपील, इट इज क्लैम्ड, रिलेट्स ओनली टु दी लोकसभा मैंबरशिप आफ दी अपीलेन्ट एण्ड दी सब्जैक्ट मैटर आफ हर आफिस एण्ड प्राइम मिनिस्टर इज नाट डायरेक्टली टु डिस्पोज आफ इन दिस लिटिगेशन। इस मुकदमें में हाईकोर्ट के अन्तिम फैसले  तक सिर्फ एक ही सवाल है कि मैम्बरी। वे मैंबर आफ पार्लियामेंट रह सकती हैं या नहीं- ये दो चार्जेस उनके ऊपर अपहोल्ड किये हैं हाईकोर्ट ने, उसके हिसाब से वे मैंबर नहीं रह सकतीं। लेकिन जो ‘कंडिशनल स्टे’ दिया है, उसके मुताबिक उसकी मैंबरी जारी है। तो खुद कह रहे हैं कि हमारे सामने एक ही सवाल है इस मुकदमें भर में प्राइम मिनिस्टर की मैंबरी। वे ‘एज ए मैंबर आफ पार्लियामेंट’ रह सकती हैं कि नहीं। लेकिन इस पर उन्होंने कहा कि ‘मैंबरी एब्सोल्युट’ नहीं रह सकती। वह इतनी हद तक ही मैंबर रह सकती हैं कि उनका नाम कट न जाये। इतना ही भर। यह बिल्कुल साफ है। सुप्रीम कोर्ट का फैंसला होने तक उनकी मैंबरी बरकरार रहे। अब यह क्या कहा जा रहा है? रेडियो ने, टेलीविजन ने. कांग्रेस नेताओं ने, पार्लियामेंटरी बोर्ड ने सब लोगों ने इसे इस तरह सामने रखा कि जैसे उनका प्राइम मिनिस्टर रहना सुप्रीम कोर्ट ने उचित माना है, आवश्यक माना है कानून और उसके ऊपर उसने फैसला दिया है। तो मेरा ऐसा ख्याल है और शायद इसको हाईकोर्ट में टैस्ट किया जाए तो मालूम हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपनी जो राय दी है, मैंबरी के बारे में तो साफ राय दी है- उसमें तो कोई शिकायत हो ही नहीं सकती है, लेकिन प्राइम मिनिस्टर रह सकती है, उसके बारे में जो कुछ कहा है उन्होंने अपने आर्डर के चौथे पैराग्राफ में, वह नहीं कहते तो अच्छा होता। क्योंकि उसका लाभ उठाकर यह प्रचार हो रहा है। उन्होंने इतना ही कहा है कि कानून जैसा आज है, उसमें वे प्राइम मिनिस्टर अभी रह सकती हैं अगर वे चाहें तो, इतना ही कहा है। लेकिन आप सोचिये, उस पर उन्होंने अपनी राय नहीं दी। कहा कि यहां लॉ कोर्ट के बाहर का सवाल है। इसके बारे में हम कुछ नहीं कह सकते हैं।

श्रीमती गांधी झूठी साबित

अब देश को जो प्राइम मिनिस्टर है, वह इतना  बंधा हुआ हो एक हाईकोर्ट के फैसले के ऊपर भ्रष्टाचार के काले बादल छाए हुए हों वे अभी छटे नहीं हैं और जब तक सुप्रीम कोर्ट का आखिरी फैसला नहीं हो जायेगा तब तक वे बादल रहेंगे। इसलिए अंग्रेजी में कहते हैं कि शी इज अन्डर क्लाउड। यह जो उनकी आनेस्टी है, इनकरप्टिविलिटी है, यह क्वेश्चन्ड है। हाईकोर्ट ने आप जान ले, दो प्रश्नों के उपर तो कहा है कि करप्ट प्रैक्टिसेस उन्होंने इलेक्शन में अख्तियार किये। लेकिन साथ-साथ यह भी हुआ है, सुप्रीम कोर्ट के एक एडवोकेट ने मुझे बताया कि कोर्ट के जजमेंट सत्ताइस जगहों पर मि. जस्टिस सिन्हा ने यह कहा है कि इंदिरा जी ने लिखित बयान दिया और अभी जो सवाल दे रहीं हैं, या सवाल पूछने पर जो जवाब दे रहीं हैं, कोई सत्ताइस जगहों में ऐसे प्रश्न आये हैं, जिस पर उन्होंने यह शक जाहिर किया है कि जो बात यह कह रही है वह नेचुरल है, स्वाभाविक है या नहीं। याने हाईकोर्ट ने उनके शब्दों के उपर अविश्वास किया है कि सच बोल रही हैं या झूठ बोल रही हैं, यह कह नहीं सकते। वहां सभ्य भाषा का प्रयोग किया गया है। साधारण जनता की भाषा में कहा जा सकता है कि हाईकोर्ट ने यह  कहा हा कि कई जगहों पर उन्होंने झूठ कहा है, संदिग्ध  बात कही है पहले कुछ कहा बाद में कुछ कहा। अब प्राइम मिनिस्टर के ऊपर ये जो आरोप लगाये गए हैं, सब कायम हैं। प्राइम मिनिस्टर वोट नहीं कर सकती हैं। अब ऐसी हालत में क्या देश के लिए अच्छा होगा कि ऐसा एक प्राइम मिनिस्टर रहे देश का, दुनिया भर के सामने एक ऐसा प्रतिनिधि रहे। कोई इन्टरनेशनल   कांफ्रेंस  हुई तो जब प्राइम मिनिस्टर जायेंगे……. कर्टसी, सदाचार और औपचारिकता के ख्याल से अच्छी-अच्छी बातें कहें उनके सामने, जैसे आज भी कर रही हैं, लेकिन भारत की दुनिया के सामने क्या तस्वीर रखती है। इसलिए यह कोई नैतिकता का ही प्रश्न नहीं है, यह एक ऐसा प्रश्न है, ऐसा कि एक प्रधानमंत्री, जिस प्रस्ताव में कहा है कि हाथ-पैर जिसके बंधे हुए है, जिसके ऊपर भ्रष्टाचार का दाग लगा हुआ है जो अब तक धुला नहीं है जब तक फैसला सुप्रीम कोर्ट में नहीं हो जाता है, उनकी सच्चाई और उनके कथन के ऊपर हाईकोर्ट ने विश्वास नहीं किया, तो क्या ऐसा प्राइम मिनिस्टर देश का होना चाहिए। यह केवल औपचारिकता का ही प्रश्न नहीं है। यह हमारे देश के लिए, हमारे लोकतन्त्र के लिए अच्छा है कि बुरा है, यह सोचना चाहिए।

(क्रमशः जारी) _

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