भारत में ऐसी है तो नेपाल में वैसी है हिंदी

विश्व हिंदी दिवस पर विशेष : नेपाल में भटक रही हिन्दी की आत्मा

हिंदी की जब बात होती है तो हिंदुस्तान का नाम आगे आता है क्योंकि दुनिया मानती है कि संपूर्ण हिंदुस्तान हिंदी है. लेकिन आज विश्व हिंदी दिवस पर कहने में संकोच नहीं कि यही हिंदी हिंदुस्तान के अनेक प्रांतो में बोलने की तो छोडिए, लोग समझते भी नहीं. हैरानी तब है जब हमारे राजनेता गैरहिंदी प्रांतो में जब दाखिल होते हैं तब अपने संबोधन का पहला हिस्सा उस प्रांत की भाषा में करते हैं. अर्थात हम हिंदी के विस्तार पर खुद ही ठिठके हुए हैं. शायद यही वजह है कि हिंदी का दर्जा राष्ट्रीय भाषा तक नहीं पहुंच पा रहा है, हां बावजूद इसके यह जरूर कहुंगा कि भारत भले ही कई मायनों में अनेक है लेकिन अनेकता में एकता की यही खूबसूरत फिजा हमें एक सूत्र में बांधे रहने का मंत्र भी है और संबल भी.

नेपाल में भटक रही हिंदी की आत्मा

एक ओर जहां भारत के ही तमाम प्रांतो में हिंदी अलग थलग की भाषा बन अपने उत्थान की राह देख रही है, वहीं भारत के अभिन्न अंग स्वरूप पड़ोसी मित्र राष्ट्र नेपाल में हिंदी न केवल वहां के सभी सात प्रदेशों की बहुप्रचलित बोल चाल की भाषा हिंदी है. भारत सीमा से सटे नेपाल का तराई क्षेत्र जिसमें 20 जिले आते हैं, वहां शत प्रतिशत आवादी में हिंदी बोली जाती है, लिखी जाती है लेकिन पढ़ी नहीं जाती क्योंकि इसके भारी व्यापकता के बावजूद नेपाल में हिंदी की मान्यता नहीं है. यह हिंदी ही है जिस वजह से भारत और नेपाल के बीच रोटी बेटी का रिश्ता बरकरार है.

नेपाल में हिंदी कभी सरकारी मान्य भाषा थी.104 वर्ष राणा शासन के समय तक वहां हिंदी की समस्या नहीं थी लेकिन उसके बाद हिंदी की ऐसी उपेक्षा शुरू हुई कि आज नेपाल में इसकी आत्मा भटक रही है.

“नेपाल में सरकार भंग हो चुकी है. चुनाव की तारिख भी तय हो गई है. आने वाले वक्त के चुनाव में मुमकिन है कि नेपाल की कोई पार्टी अपने चुनावी एजेंडे में “हिंदी” को प्रमुख मुद्दा बना ले? क्योंकि वहां चीनी भाषा की पढ़ाई होती है, चीन इसके लिए शिक्षक भी उपलब्ध करा रहा है, भारत नेपाल में हिंदी के प्रति उदासीन है. नेपाल के हिंदी प्रेमियों को भारत के इस रुख के प्रति नाराजगी रहती है.

विश्व पटल पर हिंदी(Opens in a new browser tab)

 हिंदी की ऐसी उपेक्षा उस मुल्क में है जहां हिंदी के एक दो नहीं सैकड़ों हिंदी के रचनाकार व साहित्यकार रहे हैं. इनमें कई तो सरकार के ऊंचे ओहदे पर रहे हैं.प्रधानमंत्री भी. लेकिन हिंदी को सरकारी मान्यता दिलाने में रुचि नहीं लिए.नीचे से लेकर ऊपर तक हिंदी एक स्वेच्छिक विषय तो है लेकिन इसे पढ़ाने वाले शिक्षक शायद ही कहीं हो.नेपाल हिंदी सरकारी भाषा हो,और सरकारी नौकरियों में इसकी मान्यता हो,इस बार के चुनाव में हिंदी का मुद्दा बनना निस्संदेह स्वगतयोग्य कदम है. इससे भारत और नेपाल के संबंधों में प्रगाढ़ता स्वाभाविक रूप से बढ़ेगी.

विश्व हिंदी दिवस पर समस्त हिंदी प्रेमियों को बहुत बहुत बधाई, बहुत शुभकामना. खासतौर पर नेपाल में हिंदी के लिए लड़ रहे नेपाल हिंदी मंच के अध्यक्ष श्री मंगल प्रसाद गुप्त जी.त्रिभुवन यूनिवर्सिटी की सह विभागाध्यक्ष डा.संजीता वर्मा,राजेश्वर नेपाली सहित तमाम नेपाली हिंदी योद्धाओं को बहुत बहुत शुभकामना.

राहुल गांधी
यशोदा श्रीवास्तव, नेपाल मामलों के विशेषज्ञ

Leave a Reply

Your email address will not be published.

15 − four =

Related Articles

Back to top button