गंगा किनारे फ़ौजियों का गाँव गहमर दहशत में क्यों है!

हम गंगा को माँ कहते हैं और इसमें सड़ी लाशें बहा रहें हैं

ग़ाज़ीपुर ज़िले में गंगा किनारे बसा फ़ौजियों का गॉंव गहमर इन दिनों दहशत में है. गहमर में कोविड – 19 से कई लोगों की मौतें हुईं . फिर अचानक ढेर सारी लाशें उतराती  दिखीं , जिन्हें प्रशासन छिपाने में लगा है . इतिहास के शोध छात्र शिवेंद्र प्रताप सिंह ने गहमर से ऑंखें देखा हाल भेजा है . 

शिवेंद्र प्रताप सिंह

गहमर, मात्र गाँव नहीं, एक भावना है. गंगा की गोद में बसा उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर जिले में स्थित, यह एशिया का सबसे बड़ा गाँव हैं, जहाँ लगभग चौबीस हज़ार पंजीकृत मतदाता हैं.गाँव बाईस पट्टी में विभाज़ित है. यह प्रधानमंत्री जी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से लगा हुआ है. गंगोत्री और गंगा सागर (बंगाल की खाड़ी ) के बीच का मध्य बिंदु है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह जमदग्नि ऋषि और ऋषि  विश्वामित्र की तपस्थली का क्षेत्र रहा है.यही पर हैहैय वंशी राजा सहस्त्रबाहु और भगवान परशुराम के बीच युद्ध हुआ था. 1857 के ग़दर के अप्रतिम नायक वीर कुंवर सिंह के प्रसिद्ध सेनापति  वीरवर मैगर सिंह क़ी जन्मस्थली भी गहमर है. इसे फ़ौज़ियों का गाँव माना जाता है, औसतन हर घर से एक व्यक्ति सेना में है. माँ कामाख्या देवी का मंदिर यहां स्थित है. 

गहमर,ऐतिहासिक चौसा और बक्सर शहर( बिहार) के करीब  अवस्थित है. गहमर थाना उत्तर प्रदेश का सीमावर्ती थाना है,इत्यादि कई विशेषताएं गहमर के साथ जुड़ी है. 

गंगा लाशों का गाँव गहमर

किंतु आज आपको इसकी एक नई विशेषता से परिचित होना है और वह कोविड के कारण हो रही अनवरत मौतों और गंगा घाट पर तैर रही लाशों का गाँव, भय से सहमे लोग और मौन साधे प्रशासन पर तनी भृकुटी वाला गाँव.

शवों को किनारे लाने की कोशिश

बीते कुछ दिनों से गहमर में कोविड के संक्रमण से लगातार मौतें हो रही हैं. स्वयं मेरे बड़े पिता जी जो आर्मी से सेवानिवृत अधिकारी थे, की मौत कोरोना संक्रमण से हो गई. 4 मई को सुबह जब हम उनके अंतिम संस्कार के लिए गहमर के नरवा घाट गये तो उस दौरान अन्य 8 लाशें भी लाई गई थीं. 

मेरा घर गंगा घाट मार्ग पर है, सो तब से अब तक रोज ही औसतन 3 से 5 लाशें अंतिम संस्कार के लिए लाए जाते हुए देखता हूँ.30 अप्रैल और 1 मई के मध्य यहाँ 50 से अधिक लाशों का अंतिम संस्कार किये जाने की चर्चा है. 

लकड़ी का प्रबंध कठिन 

सामान्यत: एक व्यक्ति की चिता के लिए 7 से 8 मन लकड़ी चाहिए होता है, हालात ये हैं की दाह संस्कार के लिए लकड़ियाँ उपलब्ध कर पाना  कठिन हो गया है, लोग मुखाग्नि की सामान्य प्रक्रिया के पश्चात लाशें गंगा में प्रवाहित कर दे रहें हैं. 

स्वयं हम भी अपने बड़े पिताजी की चिता के लिए लकड़ियों का प्रबंध काफ़ी परेशानी के बाद कर पाये. गाँव के नव निर्वाचित प्रधान बलवंत सिंह ने ग्रामीणों के सहयोग से कई गरीब परिवारों के लोगों की चिता के लिए लकड़ियों का प्रबंध किया है, और लगातार इस मदद में जुटे हैं. हालांकि गाँव की लचर स्वास्थ्य सेवाओं के विषय में वे भी कोई आश्वासन देने की हालत में नहीं हैं. उन्होंने लाशों के निस्तारण में भी पुलिस – प्रशासन का सहयोग किया.

सरकार की आँख बंद 

लेकिन सरकार और प्रशासन इससे मानो आँखें मूँदे  बैठा है. गाँव की चिकित्सा व्यवस्था के बारे में पता करने पर गाँव में ही प्रैक्टिस करने वाले पट्टी गोविन्द राय निवासी चिकित्सक डॉ. राणा प्रताप सिंह जी कहतें हैं, “इतनी बड़ी आबादी पर मात्र एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है और एक मात्र चिकित्सक की नियुक्ति और जहाँ कोई अन्य सुविधा नहीं है.ना तो आकस्मिक चिकित्सा की, ना पर्याप्त ऑक्सीजन की और ना ही कोविड टेस्टिंग की व्यवस्था है. गाँव में आबादी का एक बड़ा हिस्सा कोरोना संक्रमित हो सकता है. 

वर्तमान में बुखार और टायफाइड से पीड़ित ज्यादातर मरीजों  में कोरोना के लक्षण हैं.आप उस भयावह स्थिति की कल्पना कीजिये की अगर संक्रमण ऐसे ही फैलता रहा और मौतों में तीव्रता आई तो क्या होगा ? 

टीकाकरण नहीं हो पाया

यहां दस फीसदी आबादी का भी टीकाकरण नहीं हो पाया है. हम अपनी सीमित क्षमता से कितनी जाने बचा पाएंगे, जबकि सरकार और प्रशासन इसे लेकर उदासीन बना हुआ है.” यह हालत तब है जबकि यहां से मात्र 90 किलोमीटर दूर प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है और ये उसी गंगा की बुरी गत है जिसके बुलावे पर गुजरात छोड़कर वाराणसी आने का दावा प्रधानमंत्री जी 2014 में कर रहे थे. 

प्रधानमंत्री जी बहुत कुछ भूल गये हैं

आज गंगा भी वही है और वाराणसी और गाज़ीपुर भी, किन्तु प्रधानमंत्री जी बहुत कुछ भूल गये हैं. खुद मेरे बड़े भाई साहब में कोरोना के लक्षण दिखने पर जाँच के लिए बक्सर के सदर हॉस्पिटल जाना पड़ा , जहाँ से आज दो हफ्तों बाद भी रिपोर्ट नहीं मिल सकी हैं. 

युवाओं के लिए टीकाकरण की शुरुआत तक यहाँ नहीं हुई है. एक अत्यंत सीमित मात्रा में 60 वर्ष की आयु वाले वर्ग का टीकाकरण अवश्य शुरू हुआ था.ये इस देश की स्वास्थ्य सुविधा का यथार्थ प्रमाण है. गहमर में व्यापक सैनिटेशन की व्यवस्था भी नहीं हो पा रही है.

गंगा में ये शव कहाँ से बहकर आए?

घाटों पर बड़ी संख्या में लाशें

लेकिन बात सिर्फ इतनी सी नहीं हैं. एक नया संकट इस सप्ताह तब शुरू हुआ जब गहमर के विभिन्न  गंगा घाटों पर बड़ी संख्या में लाशें उतराती मिली. इस पूरे वाकये का विवरण एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक के स्थानीय संवाददाता उपेंद्र सिंह ने दिया, ” नरबतपुर, जो बिहार का सीमावर्ती गाँव है, और बिहार के बक्सर जिले में स्थित है,जहाँ गंगा मुड़ती हैं और कर्मनाशा नदी उसमें आकर मिलती है, वहाँ कम से कम  40 से 45 लाशें किनारे पर उतराती मिलीं.

इधर गहमर थाना क्षेत्र के बारा गाँव में भी 30 से 40 लाशें मिलीं. इसके बाद गहमर के भी सभी घाटों पर लाशें दिखने की सूचना मिलने लगीं.

बिहार में चिंता 

तत्पश्चात बिहार के  बक्सर प्रशासन ने गाज़ीपुर के जिलाधिकारी से संपर्क किया, क्योंकि गंगा का बहाव पूरब दिशा में होने के कारण ये लाशें उत्तर प्रदेश से ही आने की संभावना थी.

डी एम ने  SDM और सेवराई तहसील के अधिकारियों को भेजा. प्रशासनिक अधिकारियों, जिनमें एस पी ग्रामीण आर डी चौरसिया, एस डी एम रमेश मौर्य, गहमर थाना, रेवतीपुर थाना ने इंजन वाली नावों और स्थानीय मल्लाहों के सहयोग सोमवार रात 11 बजे से कल दिन में 9 बजे तक बारा गाँव से लेकर गहमर के मठिया, बाघनारा, सोझवा और नरवा घाटों से लाशें हटवाई. यहां तक की आज भी लाशें मिलने की सूचना मिलने पर एस डी एम सोझवा घाट पहुंचे थे.”

गहमर में जाँच पड़ताल के लिए पहुँची अधिकारियों की टीम

प्रशासन जांच करे

इस पूरे मामले पर पट्टी चौधरीराय के रहने वाले  सोशल एक्टिविस्ट ईश्वर चंद्र जी का कहना है की, ” ये दो तरह के हो सकते हैं, या तो ये हत्यायें की गई लाशें हैं क्योंकि सारे लोग नकार रहें हैं की ये उनके इलाके से सम्बंधित हैं. जबकि पुलिस – प्रशासन की ये जिम्मेदारी है की वो इनकी जांच करे, किंतु वह अपनी जिम्मेदारी से बच रहा है. दूसरा अगर ये कोरोना से मरने वालों की लाशें हैं तो ये किस क्षेत्र से सम्बंधित है और लावारिस रूप से कैसे मिल रही हैं ? ” 

आगे वे तनिक क्रोधित होकर कहते हैं, ये हत्या है और इन हत्याओँ  की जिम्मेदार सरकार है, क्योंकि उसने अपने दायित्व का निर्वहन नहीं किया. हम भय के माहौल में जी रहे है. मुझे ना स्वयं का और ना ही अपने परिवार का भविष्य दिख रहा है.”

प्रशासन लीपापोती में लगा

वास्तव में गहमर और उसके आस – पास के गाँवों में दहशत का माहौल है. प्रशासन भी लीपापोती में लगा है. लाशों के दाह संस्कार करने वाले स्थानीय डोम समाज के लोग लाशों की संख्या प्रशासनिक आंकड़ों से दो या ढाई गुनी अधिक बता रहें हैं.

ये लाशें कहाँ से आयी ?

 इन परिस्थितियों को देखकर कई प्रश्न जनमानस में तैर रहें हैं. जैसे  गाज़ीपुर एक छोटा शहर है जहाँ अगर इतनी मात्रा में कोविड या किसी भी अन्य कारक से मौतें होतीं तो स्थानीय स्तर पर पर्याप्त सूचना उपलब्ध होती किन्तु ऐसा नहीं है. अन्यत्र गाज़ीपुर में ना ही इतने ज्यादा अस्पताल हैं जो इतनी लाशें गंगा में डंप करेंगे. जनता यह कयास लगा रही है कि  ये लाशें कानपुर, प्रयागराज और वाराणसी क़ी तरफ से बहकर आयी हैं जहाँ से इन्हें अस्पतालों में मृत्यु के पश्चात परिजनों को ना सौंपकर अथवा उनके ना स्वीकार करने सीधे गंगा में फेंका  गया है. 

शवों को गंगा बीच धारा से किनारे लाने की कोशिश

सरकार की भयानक विफलता

तथ्य जो भी यह एक निर्वाचित सरकार की भयानक विफलता है. यह एक सभ्य समाज के प्रति जघन्य अपराध है जहाँ मौतें आंकड़ा मात्र बनकर रह गई हैं. कभी जोसेफ स्टालिन ने कहा था , “एक व्यक्ति की मृत्यु हादसा है और हज़ारों व्यक्तियों की मृत्यु मात्र एक आंकड़ा”,तो क्या वर्तमान सरकार भी कुछ ऐसा ही मानने लगी है. वर्तमान समय में सरकार के रवैये से तो ऐसा ही लगता है.

प्रधानमंत्री मोदी ख़ामोश क्यों
प्रधानमंत्री मोदी ख़ामोश क्यों

प्रधानमंत्री यूँ खामोश क्यूँ हैं ?

आश्चर्य का विषय है की दुनिया के हर मसले पर अपनी बात रखने वाले माननीय प्रधानमंत्री जी इन सब पर यूँ खामोश क्यूँ हैं ? अगर ये ग्लानि की चुप्पी है तो समझा जा सकता है. किंतु यदि ये मौन सत्ता के मद का है तो उन्हें फिर से मूल्यांकन की आवश्यकता है. 

वैश्विक छवि की चाह में प्रधानमंत्री जी का ध्यान भारत की जनता से अधिक वैक्सीन कूटनीति पर था जिसका दुष्परिणाम देश का आम  जनमानस भुगत रहा है.

गंगा लाशें ढोने के लिए नहीं है.

आजादी बचाओ आंदोलन से जुड़े लोकप्रिय गाँधीवादी चिंतक, समाजसेवी और गहमर के सर्वोदय इंटर कॉलेज के प्रबंधन समिति के सचिव श्री रामधीरज का कहना है कि, ” हम गंगा को माँ कहते हैं और इसमें सड़ी लाशें बहा रहें हैं. गंगा लाशें ढोने के लिए नहीं है. यह खेती, मानव एवं पशु- पक्षियों के जीवन यापन के लिए हैं, मृत शवों के लिए नहीं है. इन लाशों के विषय में सरकार को जानकारी लेनी चाहिए कि ये लाशें कहाँ से आई ? इतने लोग कैसे मरें ? इन लाशों को किसने फेंका , अस्पताल प्रशासन या सगे- सम्बन्धियों ने ? इससे जनता में अविश्वास बढ़ रहा है. इतने सारे लावारिस लोग कहाँ से आ गये जिनकी लाशें यूँ खुले में सड़ रही है. ” 

समाज में दुराव

रामधीरज जी इस मामले को एक अलग नज़रिये से देखते हैं, उनका मानना है कि, सरकार और सरकार द्वारा पोषित मीडिया  ने कोरोना को समाज में इतना दुराव पैदा किया है कि लोग अपने सगे – सम्बन्धियों को मरने के लिए छोड़ दे रहें हैं. इससे देश का सामाजिक ढाँचा दरक रहा है. आजादी के संघर्ष  का जो मूल मन्त्र था, अहिंसा और प्रेम, कि हम सब साथ मिलकर रहेंगे, तो वो स्थिति कहाँ रहेगी ?

जब समाज ही साथ नहीं खड़ा होगा तो सम्पूर्ण देश से क्या अपेक्षा की जाय ? संभव है की यह सेना, पुलिस और स्वास्थ्य कर्मियों के साथ भी हो सकता है की वे संक्रमित लोगों को छोड़कर भाग जाए.ये दुराव की स्थिति बहुत ख़तरनाक है. इससे समाज और देश दोनों का ही विध्वंस होगा. “

गहमर, जमानियां विधानसभा, संख्या 379 में स्थित है.रोचक तथ्य ये है कि विधानसभा चुनाव में गहमर की जनता के 90 फीसदी से ज्यादा वोट प्रदेश में सत्तारुढ़ भाजपा को डाले गये थे और वर्तमान विधायिका भाजपा की ही नेत्री श्रीमती सुनीता सिंह हैं , जो स्थानीय रूप से गहमर की रहने वाली हैं. 

प्रशासनिक कुव्यस्था

अब आप सहज़ ही प्रशासनिक कुव्यस्था और सरकार की इस गांव के प्रति रूचि का अंदाजा लगा सकते हैं. पट्टी टीकाराय के निवासी और संघ के समर्पित स्वयंसेवक बिमलेश सिंह अत्यंत निराशापूर्वक कहतें हैं, बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन सरकार ने हमें निराश्रित मरने के लिए छोड़ दिया है.”

भूमिगत जल के प्रदूषण की समस्या

 इन संक्रमित लाशों से जमीन और  नदी के साथ भूमिगत जल के प्रदूषण की नवीन समस्या से गाँव को जूझना पड़ेगा. परिस्थितियों की यह कैसी विडंबना है की जिस गाँव के हज़ारों फ़ौज़ी सरहदों की हिफाज़त में लगें हैं, यहां उनके परिवार जीवन की अनिश्चितता से जूझ रहें हैं. यहाँ लोग अजीब निराशा क़ी अवस्था में हैं.

आंसुओं  का हिसाब कौन देगा!

संभव है  एक दिन ये सब रुक जाएगा, जीवन फिर से अपनी गति से चलायमान हो जाएगा, लोग फिर ये दूरियां हटाकर एक दूसरे के करीब आएँगे, किंतु उन आंसुओं  का हिसाब कौन देगा जो इस दौरान बहाये गये होंगे, उन रिश्तों की भरपाई कैसे होगी जो पीछे छूट गये उस दर्द का इलाज कैसे होगा जो मृत्यु पर्यंत साथ रहने वाला है ? 

इतिहास यही कहता है की जिम्मेदारियों की जवाबदेही से कोई बच नहीं सका है. उम्मीद है हमारे हुक्मरान इसे समझ रहे होंगे और शून्य में गूंज रही इन चीखों को सुनने क़ी कोशिश करेंगे.

शिवेन्द्र प्रताप सिंह, 

शोध छात्र इतिहास विभाग, वी. के. एस. विश्वविद्यालय

Email id- Shivendrasinghrana@gmail.com

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गंगा में लाशों के ऊपर मंडराते चील क़ौए

One Comment

  1. शिवेन्द्र जी की रिपोर्ट से मन में कई सवाल उठे हैं
    *ये लाशें किस की है और यह किसने गंगा जी में डाली?
    *इन लाशों से कितने नये संक्रमित हुए होंगे?

    *क्या गंगा जी में नहाने वाले और पानी पीने वाले कितने ही लोग संक्रमित नहीं हुए होंगे?

    *गंगा जी का पानी बहते हुए समुद्र में जा मिलेगा तो क्या संक्रमण का खतरा और अधिक नहीं बढ़ जाएगा?.
    *मृतकों को मुक्ति कैसे मिलेगी?
    *मृतकों के नाम से जो कुछ भी संपति है, उसकी वरासत के झगड़े ?
    *गंगा जी में होने वाला प्रदूषण?
    *अनैतिक, असंवैधानिक, असामाजिक कृत्य के लिए जिम्मेदार कौन, अस्पताल, प्रशासन या सरकार?
    *परिजनों को होने वाले मानसिक तनाव और कष्ट
    ऐसे और भी कई सवाल जेहन में हैं. मीडिया और सरकार को इस की गहन पड़ताल कर के इस के लिए जिम्मेदार लोगों को चिन्हित करना चाहिए. शिवेन्द्र और राम दत्त जी को धन्यवाद.

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