कोरोना वायरस महामारी और भारतीय दवा उद्योग 

आयुर्वेद में अपार सम्भावनायें, गंभीरता से शोध की आवश्यकता  

      डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज

चंद्रविजय चतुर्वेदी

      भारत के आर्थिक विकास की प्रक्रिया में दवा उद्योग का विशेष महत्त्व है। विश्व शक्ति अमेरिका सहित पच्चीस देशों ने कोरोना संक्रमण के दौरान मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवाइयों की मांग की। उल्लेखनीय है की 2015 -20 के बीच भारतीय दवाइयों की वृद्धि दर 22. 4 प्रतिशत रही है। दुनिया भर में अलग अलग टीकों जैसे डीपीटी ,बीसीजी ,गुएरीन ,मीजल्स की अधिकतम आपूर्ति भारत ही करता है। भारतीय फार्मा उद्योग विश्व का तीसरा बड़ा उत्पादक देश है। अमेरिका के चालीस प्रतिशत और ब्रिटेन के पच्चीस प्रतिशत दवाइयों की आपूर्ति भारत करता है। भारत फार्मा का ही नहीं इलाज का भी दुनिया का सबसे बड़ा सस्ता बाजार है। 

    भारत का चालीस अरब रुपये का कारोबार कोरोना संक्रमण में संकट ग्रस्त है। भारतीय फार्मा उद्योग में एक महत्वपूर्ण कारक एपीआई –एक्टिव फार्मास्युटिकल इन्ग्रेडियेन्ट्स अर्थात कच्चा माल साल्ट है जिसका मुख्य सप्लायर चीन है। भारत में दवा बनाने के लिए जो कच्चा माल चीन से आता रहा उसका केंद्र बुहान था। बुहान ही सबसे पहले कोरोना संक्रमित हुआ अतः दवाइयों पर संकट स्वाभाविक है। इसका परिणाम यह है की दवाइयों के दामों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। पैरासिटामाल जैसी दवाइयों के दामों में बढ़ोत्तरी हो गई है अन्य जीवनरक्षक दवाइयों की बात ही क्या है। सरकार के समक्ष यह गंभीर समस्या है यद्यपि तमाम दवाइयों पैरासिटामाल सहित छब्बीस दवाइयों  के निर्यात पर रोक लगा दी गई है। 

     कोरोना संक्रमण के समय भारत और दुनिया के समक्ष सबसे बड़ी समस्या और प्राथमिक आवश्यकता स्वास्थ्य  ही है ,संक्रमण के बाद भी स्वास्थ्य  ही प्राथमिकता रहेगी। अंतर्राष्ट्रीय कच्चा माल की उपलब्धता के साथ ही इस समय अंतर्राज्यीय ट्रांसपोर्ट की भी समस्या है। बहुत सा कच्चा माल और दवाइयाँ गोवा और सिक्किम से आती हैं जो समय से फैक्टरी में पहुँच नहीं पा रही हैं। ऐसी भी आशंका व्यक्त की जा रही है की ऐंटीबायटिक ,विटामिन्स ,हार्मोन तथा स्टेरॉयड के 57 एपीआई का स्टॉक खतम होने पर समस्या गंभीर हो सकती है। 

       नीति आयोग ने एपीआई की उपलब्धता को बढ़ाने के लिए सरकार को तीन हजार करोड़ रुपये की प्रोत्साहन योजना शरू करने का सुझाव दिया था। प्रधानमंत्री मोदी जी ने कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए महत्वपूर्ण दवाओं और चिकित्स्कीय उपकरणों के लिए केंद्र सरकार ने चौदह सौ करोड़ रुपये की योजनाओ को मंजूरी दी है। डायग्नोस्टिक उपकरणों के निर्माण पर प्रधानमंत्री ने बल दिया है और कहा की एपीआई की आपूर्ति के लिए भी सरकार सहायता देगी। 

     देश में एक और वैश्विक महामारी से ग्रस्त लोग है जो ग्रस्त नहीं हैं वे अन्य परेशानियों से पीड़ित हो रहे हैं ,नौकरी जाने का भय ,आर्थिक बोझ , भविष्य की अनिश्चितता। कोरोना के अलावा अन्य बीमारी से पीड़ित लोगों को तत्काल स्वास्थ्य  सुविधा का अभाव। मानसिक स्वास्थ्य  विशेषज्ञों का कहना है की इस वैश्विक महामारी का परोक्ष प्रभाव तीव्र घबराहट और अवसाद के रूप में सामने आ रहा है। चेन्नई स्थित मानसिक स्वास्थ्य  संस्थान के निदेशक डा आर पूर्णा चन्द्रिका ने बतलाया की अप्रैल 20 में उनके पास मानसिक रोग सम्बन्धी 3632 फोन आये। 

     कोरोना के इस विषम परिस्थिति में एलोपैथिक दवाइयों के संकट काल में आयुर्वेदिक ,होमियोपैथिक तथा यूनानी चिकित्सा पद्धति को मदद में उतारने की आवश्यकता है विशेष रूप से आयुर्वेद को। कोरोना संक्रमण में दस आयुर्वेदिक औषधियों का सर्वाधिक निर्यात हुआ है। सारी दुनिया में गिलोय और तुलसी की मांग सर्वाधिक रही है ,इसके साथ ही अश्वगंधा ,आँवला ,गोखरू ,कालमेघ ,हल्दी ,पपीते का बीज ,सोंठ के मांग में भी वृद्धि हुयी है। इन्फुलेन्जा के लिए पहले भी विदेशों में कालमेघ की मांग होती रही है। कोरोना संक्रमण काल में आयुर्वेदिक उत्पादों की मांग बढ़ी जिससे ये दवाइयाँ भी महँगी होती जा रही हैं। सरकार इनके जेनेरिक दवाइयों को बाजार  में ले आने की तैयारी कर रही है।

         कोरोना वायरस के इलाज के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक और दवा कम्पनियाँ अनुसन्धान में जुटी हैं पर न तो कोई कोई वैक्सीन बन पा रही है और  न ही कोई इंजेक्शन या कैप्सूल ही अस्तित्व में आ रहा है। निश्चय ही यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है ऐसी स्थिति में दुनिया के हर देश ने कोरोना के खिलाफ दोहरी लड़ाई लड़ने की रणनीति बना ली है। एक इम्युनिटी बढ़ाना और दूसरे वायरस के गुणन को रोकना।  वायरस के प्रभाव को कम करने के लिए अन्य रोगों के लिए उपलब्ध दवाइयों को डब्लू यच ओ और देशों की सरकारें मान्यता दे रही है। यद्यपि यह विवाद का विषय हो सकता है की क्या ये कोविड 19 के रोग निरोधक क्षमता वाले ड्रग हैं जिनके क्षमता की जाँच कर ली गयी है। ऐसी कुछ दवाइयों का उल्लेख समीचीन होगा —

1 -रेमडेसिविर -remdesivir –यू यस आधारित बायोफर्मा कंपनी गिलेड साइंसेस का ड्रग रेमडेसिविर एक एंटीवायरल है जिसका प्रयोग इबोल वायरस के संक्रमण में होता रहा ,इसे कविड 19 के इलाज के लिए प्रस्तावित किया गया है। एक मई को डब्लू एच ओ के सुसंगत परिक्षण में आपातकालीन प्रयोग के लिए इसे उपयुक्त पाया गया जो वायरल के गुणन को रोकता है। 21 जून को सेन्ट्रल ड्रग स्टैण्डर्ड कंट्रोल आर्गेनाइजेशन ने हेट्रो  ड्रूग और सिप्ला को रेमडेसिविर के उत्पादन और वितरण की अनुमति दी। हेट्रो ग्रुप के यम डी ने बताया की इसके एक 100 यम यल के दवा की कीमत पांच हजार रूपये से छह हजार रूपये के बीच होगी। सिप्ला ने दवा का नामकरण सीप्रेमी तो कर लिया है पर अभी इसका मूल्य नहीं निर्धारित किया है। 

२-फेविपिरवीर –favipiravir –एक एंटीवायरल है जो एन्टीएन्फ्लून्जा ड्रग के रूप में प्रयुक्त होता रहा है। मौलिक रूप से इसे जापान की फुजीफिल्म तायोमा केमिकल लिमिटेड द्वारा तैयार किया गया था। यह वायरस के गुणन को होस्ट के शरीर में रोकता है और माइल्ड से मॉडरेट कोरोना के संक्रमण में लाभकारी होता है। ग्लेनमार्क फार्मासिटिकल ने ब्रांडनेम फेबिफ्लू के नाम से इस ड्रग को बनाया है भारत में इसके उपयोग की मान्यता भी मिल गई है पर इसके एक टेबलेट की कीमत एकसौ तीन रुपये हैं। 

3 -डेक्सामेथासोन dexamethason –यू के के नेशनल हेल्थ सर्विस ने संस्तुति की है है की कम कीमत का स्टेरॉयड डेक्सामेथासोन जो बहुत से मर्जों के इलाज में प्रयोग में लाया जाता है कोरोना संक्रमित मरीजों के मृत्यु दर में कमी लाता है। 

4 -प्लाज़्माथेरपी –यद्यपि प्लाज़्माथेरपी की क्षमता ,कोरोना के इलाज के लिए अभी भी परीक्षण के अधीन है परन्तु कोरोना वायरस के संक्रमण से ठीक हुए लोगों के प्लाज्मा के माध्यम से एंटीबॉडी का प्रवेश संक्रमित मरीजों में प्रवेश करा कर संक्रमण से मुक्त होने में सफलता मिल रही है 

5 हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन जो मलेरिया की सस्ती दवा है जिसका प्रयोग कोरोना संक्रमण के इलाज में किया जा रहा है 

6 -कोवाक्सिन वैक्सीन –कोविड 19 के संक्रमण के निदान की दिशा में सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक की है जिसके  प्रथम वैक्सीन –कोवाक्सिन कोडीजीसीआई ने ह्यूमन क्लिनिकल ट्रायल की अनुमति दे दी है। इस वैक्सीन को तैयार करने में आईसीएमआर और एनआईवी के सहयोग से भारत बायोटेक जुटा हुआ था। भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड की ख्याति लीडिंग वैक्सीन के निर्माण में रही है। इसने रोटावायरस ,हेपॅटिटिस बी ,टाइफाइड ,पोलियो और डिफ्थीरिया के वैक्सीन निर्माण में सफलता पाई है। 

       आयुर्वेद भारत का वरदान रहा है यह देश युगों से वन सम्पदा और जड़ी बूटी से संपन्न रहा है। ज्ञान के इस भंडार का आधुनिक विज्ञानं के समन्वय के साथ जो वृद्धि होनी चाहिए थी वह नहीं हो पाई है। आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में लगभग पांच हजार जड़ी बूटियों का उल्लेख मिलता है इनमें  से आज केवल एक हजार जड़ी बूटियों का ही उपयोग हो पा रहा हैं। वन सम्पदा के विनष्टीकरण में तमाम वनस्पतियों की प्रजातियां लुप्त प्राय है। सरकार की ओर से आयुर्वेद के प्रोत्साहन की बहुत योजनाएँ हैं परन्तु दुर्भाग्य है की हिमाचल प्रदेश में ही 269 निजी फार्मेसी में से 119 फार्मेसी बंद हो चुकी हैं। आयुष मंत्रालय के अंतर्गत केंद्रीय आयुर्वेदिक अनुसन्धान परिषद् आयुर्वेद  के विकास प्रसार अनुसन्धान के लिए कार्यरत है। वर्त्तमान परिस्थितियों में इसे अधिक सजग होने की आवश्यकता है। आयुर्वेद का अध्ययन भी प्राचीन एवं नई पद्धति के सम्मिलन से होने की आवश्यकता है। 

    भारत में आयुर्वेद के एक नाम पतंजलि योगपीठ और योग गुरु बाबा रामदेव हैं। कोरोना महामारी के निदान के लिए दवा कोरोनिल का दावा करके बाबा ने सब को चौंका दिया। योग गुरु ने दावा किया की कोरोनिल कोरोना वायरस का इलाज करने में कारगर है। उनके इस दावे पर आयुष मंत्रालय ने आपत्ति जताया की पहले आयुष मंत्रालय से अनुमति लेनी होगी ,बाबा को बिना अनुमति के दवा का प्रचार प्रसार नहीं करना चाहिए। यदि बाबा ने इम्युनिटी बूस्टर के रूप में ही इस दवा को बनाया था और उसका लाइसेंस लिया था तो उसी में इसका प्रयोग करना था। आईसीएमआर और आयुष मंत्रालय को क्यों नहीं एतबार हुआ यह तकनीकी पहलू है इसके निराकरण के बिना तो कोरोना जैसे संवेदनशील महामारी में किसी भी दवा का प्रयोग उचित  नहीं है। आयुर्वेद एक विशिष्ट ज्ञान है इसे चमत्कार आस्था और भावना के तराजू पर नहीं तौला जा सकता। आयुर्वेद में अपार सम्भावनायें  हैं इसपर गंभीरता से शोध की आवश्यकता है। 

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