सिमटने तक एक लाख और जानें लेगा कोरोना!

डॉ. मत्स्येन्द्र प्रभाकर

लखनऊ। क़रीब तीन हफ़्ते से देश में कोरोना वायरस (कोविड-19) के मामले निरन्तर घट रहे हैं। इससे देशवासियों में नयी उम्मीद जगी है।

दरअसल, दूसरे देशों के साथ भारत में अधिकांश जन मानस कोरोनाजनित माली-बदहाली से परेशान हो उठा है।

हालाँकि ऐसा अन्देशा भी जताया गया है कि आसन्न सर्दियों में कोरोना का कहर एकबार फ़िर देश-दुनिया पर टूट सकता है।

इससे अनुमान लगाया जा रहा है कि देश में कोरोना प्रभावितों की संख्या एक करोड़ के ऊपर 10.6 मिलियन (106 लाख) तक जा सकती है। इस समय यह संख्या 74 लाख से ऊपर चल रही है।

ऐसा हुआ तो कोरोना क़ाबू होते-होते क़रीब एक लाख और लोगों को जान से हाथ धोना पड़ सकता है।

अभी तक क़रीब एक लाख, 15 हजार मौतें हो चुकी हैं जबकि अगले साल मार्च के पहले तक यह क़ाबू आ सकता है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) हैदराबाद के प्रोफेसर एम० विद्यासागर के नेतृत्व वाले विशेषज्ञ दल ने रिपोर्ट में कहा है कि कोरोना पर नियंत्रण सम्बन्धी उसके अनुमान इस शर्त पर हैं कि सरकार तथा लोग कोरोना से बचाव के नियमों का अनिवार्य रूप से पालन करें।

दूसरी तरफ़ विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के बाद अब केन्द्र सरकार के विशेषज्ञ दल ने भी इसकी पुष्टि कर दी है कि कोरोना का ख़तरा अभी टला नहीं है अपितु झोंका दे रही सर्दी के गहराने पर कोरोना फ़िर सिर उठा सकता है।

बावज़ूद इसके, कोरोना से उकताया आम आदमी आशावान है। उसका भरोसा है कि कोई स्थिति हमेशा नहीं रहती।

इसको केन्द्र सरकार के द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति ने भी लगभग पुष्ट किया है।

इस एक्सपर्ट पैनल का कहना है कि ‘कोविड-19’ का सबसे भयावह दौर अब गुज़र चुका है।

यों, इसी विशेषज्ञ कमिटी के ही कुछ सदस्यों का कहना है कि कोरोना की भयंकरता को अभी एकदम से खारिज़ नहीं किया जा सकता।

कोरोना से निपटने के लिए सरकार के प्रयासों की दुहाई देते हुए विशेषज्ञ समिति ने इस बाबत सरकार की पीठ थपथपायी है तो साथ-साथ कहा है कि सरकार और देश के लोग फ़िलहाल अभी से बेफ़िक्र होकर मस्त न हो जाएँ।

हर स्तर पर सावधानी बहुत जरूरी है। ख़ासकर मुनावरण (मास्क) और सैनिटाइज़र के इस्तेमाल और सामुदायिक दूरी के मामले में पहले जैसी संज़ीदगी बरतना अति आवश्यक है।

सरकार को दी गयी रिपोर्ट विशेषज्ञ समिति के अध्ययन, अनुमानों, अन्देशे और सलाह-सावधानियों का लब्बोलुआब यह है कि कोरोना संकट अभी बना हुआ है।

इसके घटने की वर्तमान चाल बनी रही तो अगले साल फ़रवरी-मार्च तक जाकर यह नियंत्रित हो सकेगा।

प्रोफेसर एम विद्यासागर की कमिटी विज्ञान और तकनीक मंत्रालय ने एक महीने पहले बनायी थी। इसने कोरोना के खिलाफ सरकारी नीतियों को सही और सटीक करार दिया है।

समिति ने देश में कोरोना महामारी की चाल को समझने के लिए एक नया मॉडल इस्तेमाल किया।

इस अध्ययन में पाया गया कि सितम्बर के महीने में अपने शीर्ष (पीक) पर रह चुका कोरोना पिछले क़रीब एक महीने से उतार पर है।

विशेषज्ञों की कमेटी (Government Panel) की रिपोर्ट में किये गये दावे पर भरोसा करें तो भारत में कोरोना वायरस (Corona Virus) के कहर का जो सबसे ख़राब दौर था, वह गुज़र चुका है?

करीब एक-तिहाई आबादी में ‘एण्टीबॉडी’ (प्रतिरोधक क्षमता) विकसित हो चुकी है? जो भी हालात हैं उस पर यकीन करने के सिवा विकल्प भी नहीं हैं।

अगले करीब चार महीनों के देश के भीतर कोविड-19 पर क़ाबू पा लिया जाए, इससे बेहतर उम्मीद और कल्पना मौज़ूदा स्थिति में शायद ही कोई हो; किन्तु यह तभी मुमकिन है जब हम तमाम हिदायतों (Precautions) का ठीक से पालन करें।

अब ये दावा कितना सही है और कैसे इस निष्कर्ष तक पहुंचा गया, इसके लिए आंकड़ों की गवाही (Covid Statistics) ज़रूरी है।

लेकिन यह बात इनकार नहीं की मजा सकती कि कोरोना सम्बन्धी सभी हिदायतों का पालन करना ही होगा।

इस समय एक बार फ़िर सड़कों, बाज़ारों, सार्वजनिक स्थानों, परिवहन के साधनों आदि पर जो भीड़ दिख रही है वह चिन्ता पैदा करती है।

अधिकतर लोगों ने मुनावरण (मास्क) लगाना ही बन्द कर दिया है।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड के खिलाफ अपनायी गयी रणनीति को कारगर बताया है, यह तो समझा जा सकता है किन्तु जन सामान्य में जागरूकता पैदा करना ही अपर्याप्त है।

जनता को हाँकना भी पड़ता है। इसके प्रति बेपरवाही भारी पड़ सकती है।

‘एम० विद्यासागर पैनल’ के आँकड़ें क्या कह रहे हैं? कैसे इन दावों पर यकीन किया जा सकता है और किस तरह महामारी की गति-प्रवृत्ति (ट्रेण्ड) को समझा जा सकता है?

हमने इन सवालों के जवाब इन सात बिन्दुओं (पॉइण्ट्स) में समझने की कोशिश की है।

कमेटी में शामिल आईआईटी कानपुर के प्रो० मनीन्द्र अग्रवाल के मुताबिक लोगों को सावधानियां बरतना जारी रखना होगा।

वे कहते हैं- “केरल में ओणम फेस्टिवल के बाद कोरोना के मामले एकदम से बढ़े, इसलिए सबक लेकर मुनावरण (मास्क), फिजिकल डिस्टेंसिंग और साफ सफाई का खयाल रखने से ही आगामी त्योहारी और सर्दी के मौसम में महामारी से बचाव सम्भव होगा।

पूरी सावधानी रखे जाने पर ही फरवरी तक देश में हालात क़ाबू में आ सकेंगे।”

इस विशेषज्ञ समिति का मानना है कि अगर मार्च में ‘लॉकडाउन’ नहीं किया गया होता तो बहुत कम समय में देश के ‘हेल्थकेयर सिस्टम’ की साँस फूल जाती।

लॉकडाउन न होता तो करीब 26 लाख मौतें होतीं, जबकि लॉकडाउन मई में होता तो मौतों का आँकड़ा 10 लाख होता।

मार्च में लॉकडाउन से ही मौतें 1 लाख के आसपास रहीं। इसी तरह, लॉकडाउन न होता तो कोरोना संक्रमण मामले कम से कम 1.4 करोड़ होते।

पैनल ने माना है कि लॉकडाउन से ‘कर्व फ्लैटन’ हुआ।

विशेषज्ञ समिति का विचार है कि मार्च में लॉकडाउन के तत्काल बाद बड़ी संख्या में लोगों का जो आवागमन (माइग्रेशन) हुआ, उसका असर संक्रमण फैलने के लिहाज़ से बहुत मामूली रहा।
इसके मुताबिक ‘माइग्रेण्ट’ (प्रवासियों) के लौटने पर जो ‘क्वारण्टाइन रणनीति’ अपनायी गयी वह बेहद कारगर रही।
समिति का ख्याल है कि भारत में कोरोना के खिलाफ लड़ाई बेहतर ढंग से लड़ी गयी। बीते महीने सितम्बर के मध्य में जहाँ रोज़ाना 80 से 90 हज़ार तक मामले देखे जा रहे थे, वहीं चालू महीने के पिछले हफ्ते में रोज़ औसतन 64 हज़ार, 391 नये मामले ही रह गये।

गत सप्ताह के मामलों पर एक नज़र
18 अक्टूबर 61,871
17 अक्टूबर 62,212
16 अक्टूबर 63,371
15 अक्टूबर 67,708
14 अक्टूबर 63,509
13 अक्टूबर 55,342
12 अक्टूबर 66,732
11 अक्टूबर 74,383

(माना जा सकता है कि सितम्बर के मुकाबले रोज़ नये मामले काफी कम हुए हैं।)

आँकड़ों का विश्लेषण करें तो दुनिया की एक बटे छह आबादी यानी, क़रीब हर छठवाँ मनुष्य भारत में रहता है।

दुनिया के कुल कोरोना मामलों का करीब छ्ठाँ हिस्सा ही भारत में भी रहा। लेकिन कोरोना से जितनी मौतें दुनिया में हुईं, उनमें से 10 प्रतिशत ही भारत में हुईं।

यही नहीं, यह मृत्यु दर कोरोना मामलों के लिहाज़ से सिर्फ 2% रही। यह संसार में सबसे कम दर के आँकड़ों में शुमार है। इसके कई कारण पहले बताये जा चुके हैं।

स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़ देश में गत डेढ़ महीने में पहली बार पिछले हफ्ते कुल सक्रिय मामलों की संख्या 8 लाख से कम रही।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने कम मृत्यु दर, ज़्यादा रिकवरी और सक्रिय मामलों के घटने को ‘नीतिगत उपलब्धि’ करार दिया है।

दुनिया भर में इस समय तक कोरोना के लगभग 4 करोड़ मामले हैं। इनमें से भारत में करीब 75 लाख ही हैं।

दुनिया भर में मौतें 11 लाख से ज़्यादा हुईं। अमेरिका में करीब 82 लाख मामले और 2 लाख 19 हज़ार मौतें हुईं तो ब्राज़ील में 52 लाख से ज़्यादा मामलों पर 1 लाख 53 हज़ार से ज़्यादा मौतें हुईं।

इस लिहाज़ से भारत में करीब 75 लाख मामलों पर 1 लाख 14 हज़ार के आसपास मौतें होने को सरकार अपनी नीतिगत तैयारियों का नतीज़ा कह रही है तो इसमें कुछ आपत्तिजनक नहीं लगता।

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