Mahanandiswara Swamy Temple: कर्नूल के ‘महानंदीश्वर स्वामी मंदिर’ में हैं 9 नंदी तीर्थ

Mahanandiswara Swamy Temple

सुषमाश्री

महानंदीश्वर स्वामी मंदिर : Mahanandiswara Swamy Temple आंध्र प्रदेश के कर्नूल (Kurnool) जिले में नंद्याल (Nandyal) के निकट नल्लामल्ला हिल्स (Nallamala Hills) के पूरब में स्थित है महानंदी (Mahanandi) गांव। यह चारों ओर से जंगल से घिरा है।

महानंदी के 15 किलोमीटर के दायरे में कुल नौ नंदी तीर्थ (Nandi Shrines) हैं, जिन्हें नव नंदुलु (Nava nandulu) नाम से जाना जाता है। महानंदीश्वर स्वामी मंदिर (Mahanandiswara Swamy Temple) इन्हीं नौ नंदी तीर्थों में से एक तीर्थ है।

आइए, इन सभी नौ मंदिरों के बारे में जान लें—

ये नौ मंदिर हैं: महानंदी (Mahanandi), शिवानंदी (Sivanandi), विनायकनंदी (Vinayakanandi), सोमानंदी (Somanandi), प्रथमानंदी (Prathamanandi), गरुडानंदी (Garudanandi), सूर्यानंदी (Suryanandi), कृष्णानंदी (Krishnanandi) (इसे विष्णुनंदी (Vishnunandi) भी कहा जाता है) और नागानंदी (Naganandi)। यहीं एक महत्वपूर्ण तीर्थ महानंदीश्वर स्वामी मंदिर (Mahanandiswara Swamy Temple) भी स्थित है। इस मंदिर को तकरीबन 1500 साल पुराना बताया जाता है।

मंदिर का इतिहास

Mahanandiswara Swamy Temple महानंदीश्वर स्वामी मंदिर को लेकर अलग- अलग तरह की कई कहानियां प्रचलित हैं। एक किंवदंती के अनुसार, यहां के स्थानीय राजाओं को नंदों (Nandas) के रूप में जाना जाता था, जो 10वीं शताब्दी कॉमन एरा (10th century CE) में यहां शासन करते थे। उन्होंने कई मंदिरों का निर्माण किया और अपने पैतृक देवता नंदी (ancestral deity the Nandi) की पूजा की, इसलिए इस मंदिर का नाम महानंदी (Mahanandi) पड़ा।

Mahanandiswara Swamy Temple

10वीं शताब्दी के शिलालेख

महानंदीश्वर स्वामी मंदिर Mahanandiswara Swamy Temple में मौजूद 10वीं शताब्दी के शिलालेख खुद ही अपनी कहानी बयां करते हैं। इन शिलालेखों को देखकर आसानी से कहा जा सकता है कि तब से अब तक कितनी ही बार इसकी मरम्मत की गई और कई बार इस मंदिर का पुनर्निर्माण भी किया जा चुका है।

मंदिर की वास्तु कला

इस महानंदीश्वर स्वामी मंदिर Mahanandiswara Swamy Temple की वास्तु कला इस क्षेत्र में चालुक्य राजवंश (Chalukya Kings) की मौजूदगी की गवाही देती है। मंदिर के पूल भगवान विश्वकर्मा (Vishwakarma) की कुशल कार्यक्षमता के परिचायक हैं।

बादामी चालुक्य वंश (Badami Chalukyas) ने 7वीं शताब्दी में इसे बनवाया था, जबकि बाद में 10वीं और 15वीं शताब्दी में इसमें कई बदलाव किए गए।

मंदिर के मध्य गर्भगृह के ऊपर गोपुरम (मंदिर का शिखर) का निर्माण बादामी चालुक्यन शैली की वास्तुकला (Badami Chalukyan style of architecture) के अनुसार किया गया है। मंदिर की अन्य संरचनाएं विजयनगर शैली (Vijayanagara style) में हैं।

मंदिर में शिवलिंग छूने की नहीं है मनाही

यहां शिव लिंग (Shiva Linga), जिसे शिव का प्रतीक (symbol of Shiva) माना जाता है, के पास मौजूद पानी को कोई भी छू सकता है। यहां भक्तों को शिव लिंग की पूजा करने और शिव लिंग छूने तक की भी छूट है।

जबकि हिंदू धर्म ग्रंथ के पौराणिक व पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार हिंदुओं के सभी मंदिरों, खासकर नामी मंदिरों में, मुख्य देवता को भक्तों के स्पर्श से हमेशा दूर रखा जाता है। उस पर शिव लिंग को तो छूने की सख्त मनाही होती है।

कुंड के पानी की कई हैं खासियत

यह Mahanandiswara Swamy Temple अपने (जल कुंड, जिसे तेलुगु में कोनेरू (Koneru) कहा जाता है) के लिए ही प्रसिद्ध है। इस कुंड का पानी अपने क्रिस्टलीय (crystalline) और हीलिंग (healing) गुणों के लिए खासतौर से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस पानी में स्नान करने से बीमारियां भी दूर हो जाती हैं। यह पानी हमेशा गुनगुना यानि हल्का गर्म (tepid) रहता है।

गुनगुना रहता है कुंड का पानी

गुनगुना रहता है कुंड का पानी

सर्दी के मौसम में इसका पानी बहुत गर्म होता है और गर्मी के दिनों में इसके ठीक उलट- ठंडा। किसी भी मौसम में सुबह-सवेरे इस कुंड का पानी गुनगुना होता है जबकि तापमान बढ़ने के साथ-साथ इसका पानी धीरे-धीरे ठंडा होता जाता है।

कुंड में बना रहता है जल का निरंतर प्रवाह

इस जल कुंड के स्रोत की एक ख़ासियत यह है कि इसमें मौसम के परिवर्तन के बावजूद पानी का निरंतर प्रवाह बना रहता है। माना जाता है कि इस जल स्रोत की उत्पत्ति गर्भगृह (Garbhagruha) (आंतरिक मंदिर) (inner shrine) में स्वयंभु लिंग (Swayambhu Linga) के ठीक नीचे मौजूद है।

ताजे और फ्रेश वाटर पूल हैं मंदिर की खासियत

यह मंदिर अपने ताजे और फ्रेश वाटर पूलों के लिए ही विख्यात है, जिसे कल्याणी (Kalyani) या पुष्करणी (Pushkarni) भी कहते हैं।

मुख्य मंदिर तीन दिशाओं से पूलों से घिरा हुआ है। मंदिर के अंदर भी एक बड़ा पूल है जबकि मुख्य द्वार पर दो छोटे-छोटे पूल मौजूद हैं।

यह पवित्र तालाब 60 वर्ग फीट (5.6 वर्ग मीटर) (60 square feet (5.6 m2)) में है, जिसमें बाहर की ओर बीच में एक आउटडोर पैविलियन (outdoor pavilion) भी है, जिसे मंडप (mandapa) कहते हैं।

पानी की गहराई पर रहती है नजर

टैंक के इनलेट्स और आउटलेट्स को समय-समय पर व्यवस्थित किया जाता है ताकि पानी की गहराई लगातार पांच फीट रखी जाए। इसके पीछे मकसद यह है कि कुंड के पवित्र जल में तीर्थयात्रियों को स्नान करने में किसी भी तरह की समस्या का सामना न करना पड़े।

आपको बता दें कि शाम 5 बजे के बाद मंदिर के अंदर बने बड़े पूल में नहाने की मनाही है।

मंदिर के बाहर का नजारा भी है अनूठा

मंदिर के कुंड की और भी खासियत हैं। यहां से बाहर निकलने वाला पानी गांव के आसपास के 2,000 एकड़ (8.1 वर्ग किमी) उपजाऊ भूमि की सिंचाई करता है। मंदिर के पानी से ही आसपास के इलाकों में चारों ओर खेती और पैदावारी का काम चल रहा है। वहां चावल के खेत और फूलों के बागान हैं। फलों और सब्जियों का उत्पादन भी हो रहा है।

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कब पहुंचें:

साल में एक बार यहां एक वार्षिक महोत्सव मनाया जाता है। फरवरी और मार्च के महीने में भगवान शिव के खास दिन, महाशिवरात्रि (Maha Shivaratri) पर इस महोत्सव का आयोजन किया जाता है।

कैसे पहुंचें:

सड़क मार्ग:

नंद्याल से महानंदी तक पहुंचने के लिए दो रास्ते हैं।

पहला रास्ता तिम्मापुरम (Thimmapuram) से होकर गुजरता है, जो बस स्टैंड से तकरीबन 17 किलोमीटर दूर है। यहां तक पहुंचने का सबसे छोटा रास्ता है।

बोयलाकुंट्ला क्रॉस (Boyalakuntla cross) से लेफ्ट डायवर्जन लेकर दूसरा रास्ता गिद्दालुर रोड (Giddalur road) होकर यहां जाता है। नंद्याल से यह रास्ता लगभग 24 किलोमीटर है।

रेल मार्ग:

यहां तक पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन है नंद्याल।

वायु मार्ग:

महानंदी मंदिर नंद्याल (Nandyal) से 21 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां से सबसे करीब है हैदराबाद का अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, जो कर्नूल से तकरीबन 215 किलोमीटर दूर है।

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