अफ़ग़ानिस्तान तालिबान और गांधी का “हिंद स्वराज़”
अफगानिस्तान, तालिबान और गांधी का हिंद स्वराज . आप सोचेंगे यह कैसी तुलना है? मगर तुलना भी बनती है और हिंद स्वराज़ के नायक गांधी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन भी.
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान लड़ाकों के हाथों में बंदूक़ें और दिमाग़ में धार्मिक कट्टरपंथ देखकर हमें यहाँ हज़ारों मील दूर भी डर लगता है. लगना भी चाहिए. लेकिन कल्पना करें कि अगर भारत में यही स्थिति होती तो क्या होता ?
भारत में इस तरह का धार्मिक कट्टरपंथ और बंदूक राइफलों वाले लोग अंग्रेजों के जाने के बाद सत्ता में नहीं आए, इसका श्रेय किसको जाता है – यह आज सोचने – विचारने का विषय है.
सत्याग्रह का हथियार
वास्तव में इसका श्रेय मोहनदास करमचंद गांधी – महात्मा गांधी को जाता है जिन्होंने दक्षिण अफ़्रीका में सत्याग्रह और अहिंसात्मक शांतिमय प्रतिकार का ज़बर्दस्त और कारगर हथियार खोजा और फिर हिन्दुस्तान की आज़ादी की लड़ाई में उसका इस्तेमाल किया.
गांधीजी द्वारा आविष्कृत इस सत्याग्रह और शान्तिमय प्रतिकार के हथियार का ही परिणाम था कि भारत में सशस्त्र क्रांति अथवा हिंसा या अराजकतावादी लोग ज़्यादा पनप नहीं पाए.
निहत्थे लोगों को अंग्रेजों से लड़ना सिखाया
गांधी ने आम निहत्थे लोगों को अंग्रेजों से लड़ना सिखाया. दरअसल अगर हम इतिहास में झाँकते है तो आज़ादी से बहुत पहले – क़रीब चार दशक पहले ही महात्मा गांधी जब दक्षिण अफ़्रीका से लंदन गए थे तो वहाँ उन्होंने उन तमाम लोगों से मुलाक़ात की जो भारत की आज़ादी के लिए अंग्रेजों के ख़िलाफ़ संघर्ष करना चाहते थे. उसमें हिंदू कट्टरपंथी , मुस्लिम कट्टरपंथी , सशस्त्र क्रॉंति वाले कम्युनिस्ट थे , अराजकतावादी थे . कट्टरपंथी हिंसा को भी जायज़ मानते थे .
इनसे हटकर कांग्रेस नेता दादा भाई नौरोज़ी जैसे लोग भी थे , जो समझते थे कि अंग्रेज़ी हुकूमत का मुख्य मक़सद अपना बिज़नेस मुनाफ़ा और आर्थिक लाभ कमाना है. दादा भाई नौरोज़ी ब्रिटिश संसद के सदस्य चुने गये थे . उन्होंने अंग्रेजों के आर्थिक शोषण तंत्र और अन्यायी शासन को उजागर भी किया. दादा भाई नौरोजी ने तमाम विरोध झेलते हुए भी महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा दिया था.
गॉंधी जी को लंदन यात्रा में इस बात का एहसास हो गया था कि धार्मिक कट्टरपंथ और हिंसा अराजकतावादियों का बोलबाला बढ़ा और अगर ये लोग स्वतंत्रता संग्राम की मुख्यधारा में आ गये तो फिर बराबरी वाला अहिंसात्मक लोकतन्त्रात्मक समाज बनाने का सपना समाप्त हो जाएगा .
हिन्द स्वराज पुस्तक
इसी ख़तरे को भाँपकर गॉंधी जी ने नवंबर 1909 में लंदन से दक्षिण अफ़्रीका लौटते हुए पानी के जहाज़ पर हिन्द स्वराज पुस्तक लिखकर भारतवासियों को स्वतंत्रता का सपना दिया और सशस्त्र क्रांतिकारियों तथा कट्टरपंथियों से देश को आगाह किया . अंग्रेजों ने इसे राजद्रोह करार देकर प्रथम गुजराती संकरण की प्रतियाँ ज़ब्त कर लीं. इसके बाद अंग्रेज़ी अनुवाद संकरण प्रकाशित हुआ.
“हिंद स्वराज ” के बारे में गांधी ने बारह साल बाद यंग इंडिया में अपने वक्तव्य में याद दिलाया,
” लंदन में रहने वाले हर एक नामी अराजकतावादी हिंदुस्तानी के सम्पर्क में मैं आया था. उनकी शूरवीरता का असर मेरे माँ पर पड़ा था, लेकिन मुझे लगा कि उनके जोश ने उलटी राह पकड़ ली है. मुझे लगा कि हिंसा हिंदुस्तान के दुखों का इलाज नहीं है और उसकी संस्कृति को देखते हुए उसे आत्मरक्षा के लिए कोई और ऊँचे प्रकार का अस्त्र काम में लाना चाहिए. दक्षिण अफ़्रीका का सत्याग्रह उस वक्त मुश्किल से दो साल का बच्चा था. लेकिन उसका विकास इतना हो चुका था कि उसके बारे में कुछ हैड तक विश्वास से लिखने की मैंने हिम्मत की थी.”
हिन्द स्वराज में गॉंधी ने एक ओर शैतानी पाश्चात्य सभ्यता के मुक़ाबले भारतीय संस्कृति और सभ्यता की वकालत की . वहीं दूसरी ओर स्वतंत्रता, समानता , न्याय, बंधुत्व, मानव अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता, शोषण मुक्त उदारवादी नागरिक समाज की स्थापना पर बल दिया . उनका सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक दर्शन इन्हीं मूल्यों पर आधारित है.
हिन्दुस्तान आने बाद गॉंधी ने चंपारन से जो सत्याग्रह की अलख जगायी , उसने करोड़ों भारतीयों को निडर बनाकर अंग्रेज़ी हुकूमत के अत्याचार, जेल और बंदूक़ों से लड़ना सिखाया. नमक सत्याग्रह इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. गॉंधी के सत्य और अहिंसा पर आधारित जन आंदोलन ही एक ऐसी रणनीति थी , जिससे हर भारतीय अपने को स्वतंत्रता सेनानी समझता था न कि कुछ मुट्ठी भर सशस्त्र क्रांतिकारी .
ब्रिटिश राज की कमर तोड़ दी
गॉंधी बख़ूबी समझते कि अंग्रेज भारत में व्यापार करने और मुनाफ़ा कमाने आये हैं इसलिए उन्होंने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार, खादी , कुटीर उद्योग और स्वदेशी के ज़रिए ब्रिटिश राज की कमर तोड़ दी .
1942 के भारत छोड़ो ऑंदोलन की सफलता एक लंबी तैयारी का परिणाम थी .
यह भी सत्य है कि जहॉं भी सशस्त्र क्रांति से सत्ता पलट हुआ वहाँ कभी लोकतंत्र नहीं आया. सशस्त्र क्रांतिकारी हमेशा जनता की पीठ पर सवार रहे और अपनी तानाशाही चलायी.
अंग्रेजों ने हिन्दू और मुस्लिम दोनों साम्प्रदायिक संगठनों को बढ़ावा देकर आजादी टालने की कोशिश की और कामयाबी न मिलने पर इन्हीं संगठनों से इतने भीषण दंगे खून ख़राबा कराया कि मजबूरन भारत विभाजन मानना पड़ा.
विभाजन के बाद पाकिस्तान धार्मिक राष्ट्र बना, जिसका परिणाम दुनिया के सामने है.
लेकिन संविधान सभा / संसद में प्रचंड बहुमत के बावजूद भारतीय नेता सत्ता के मद में पथ भ्रष्ट नहीं हुए . एक झटके में बालिग़ मताधिकार के आधार पर पर धर्म निरपेक्ष लोकतांत्रिक संघीय गणराज्य की स्थापना की गयी . स्वतंत्र न्यायपालिका, स्वतंत्र चुनाव आयोग और स्वतंत्र प्रेस की बुनियाद डाली गयी.
दुर्भाग्य भारत और समूचे विश्व का कि जिन लोगों को सुधारने के लिए गांधी ने हिंद स्वराज़ – सत्याग्रह और प्रेम का रास्ता सुझाया वह अंत तक नहीं सुधरे और वे गांधी की हत्या का षड्यंत्र रचने लगे. की बार असफल होने के बाद 30 जनवरी 1948 को ये लोग गांधी की हत्या में कामयाब हो गए, पर गांधी विचार नहीं मार सके.
मगर इतने सालों बाद आज भारत देश में गांधी विचार और संविधान में स्वीकार किए गए सिद्धांतों को फिर से गम्भीर ख़तरा है. घृणा और हिंसा फैला रही हिन्दू- मुस्लिम कट्टरपंथी ताक़तों और सशस्त्र नक्सलियों से देश की शॉंति , सद्भावना और सुरक्षा को ख़तरा है . पर दूर – दूर तक कोई गांधी कहीं नज़र नही आ रहा.
मगर इतने सालों बाद आज भारत देश में गांधी विचार और संविधान में स्वीकार किए गए सिद्धांतों को फिर से गम्भीर ख़तरा है. घृणा और हिंसा फैला रही हिन्दू- मुस्लिम कट्टरपंथी ताक़तों और सशस्त्र नक्सलियों से देश की शॉंति , सद्भावना और सुरक्षा को ख़तरा है . पर दूर – दूर तक कोई गांधी कहीं नज़र नही आ रहा.
एक दूसरे प्रकार का आर्थिक साम्राज्यवाद – भूमंडलीकरण देश को खोखला कर लोगों को गरीब और बेरोज़गार बना रहा है , जिससे अस्सी करोड़ लोग दो जून की रोटी के लिए मुफ़्त राशन पर निर्भर हैं .और लोगों का जीवन खुशहाल बनाने के बजाय आज भी कुछ राजनीतिक ताक़तें देश को धार्मिक कट्टरपंथ के रास्ते पर ले जाना चाहती हैं. इस रास्ते से जनता को भड़काकर धार्मिक गोलबंदी और चुनाव जीतकर सत्ता में क़ाबिज़ हुआ जा सकता है. लेकिन हमें समझना होगा कि इस रास्ते से देश में सुख और शांति नही आ सकती. अगर सुख शांति नही आएगी तो सत्ता भी टिकाऊ नही होगी.
इसीलिए अफ़ग़ानिस्तान में हथियार बंद तालिबान कट्टरपंथियों को देखते हुए साबरमती के संत गॉंधी और उनके साथियों को आदर के साथ याद कर कृतज्ञता ज्ञापन तो बनता ही है .साथ ही जो लोग घृणा , धार्मिक कट्टरपंथ के रास्ते पर चल रहे हैं उन्हें ठहर कर यह सोचना भी बनता है कि वह जो कर रहे हैं उससे किसी का भला नहीं होने वाला.
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और बीबीसी के संवाददाता रहे हैं. लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं.
@Ramdutttripathi
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