घर में आयुर्वेदिक औषधीय पौधे लगाकर इलाज का खर्च बचायें

(डा० जसमीत सिहं द्रव्यगुण विभाग बी० एच० यू०)

प्राचीन काल में सभ्यता के प्रारम्भ में, पौधों की एक बड़ी किस्म घावों और बीमारीयों का इलाज करने के लिए प्रयोग होने वाली दवाओं के आधार थे। उन शुरुआती दौर में लोगों ने जंगलों में पैदा होनें वाले पौधों के उपचारात्मक मूल्यों को कैसे जाना होगा?  उन्होंने परीक्षण और त्रुटि (ट्रायल एण्ड एरर मैथड) के तरीकों और अप्रतिबंधित (सुखद आश्चर्य) द्वारा ऐसे चिकित्सीय पौधों के उपचारात्मक प्रभावों का अध्ययन किया होगा। वे लोग बुद्धिमान पुरुष रहें होंगे, जिनको सभी ने आदेश और मार्गदर्शन के लिए देखा होगा एवं आने वाली पीढीयों के लिये इस चिकित्सा पद्धति को सम्वर्धित एंव संरक्षित किया होगा । बाद में इन बुद्धिमान पुरुषों ने स्वेच्छा से स्वयं को इस तरह के औषधीय पौधों की खोज और पहचान करने की जिम्मेदारी ली होगा । इस प्रकार प्राप्त ज्ञान को पीढ़ी से पीढ़ी तक पारित किया गया था।

पिछली सदी में उभरने वाली सिंथेटिक दवाओं की शुरूआत ने, इसकी तत्काल प्रभावशीलता के कारण पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को पीछे धकेल दिया, किन्तु आधुनिक दवाओं के प्रतिकूल असर ने लोगों को पुन: वानस्पतिक और पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में फिर से विश्वास करने के लिये मजबूर कर दिया हैं |

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू.एच.ओ.) ने एक वैश्विक अनुमान को मान्यता दी है, जो दर्शाता है कि विश्व की 80% आबादी सिंथेटिक औषधीय उत्पादों का मूल्य अत्यधिक होने के कारण नहीं खरीद सकती है, और पारंपरिक चिकित्सा के उपयोग पर भरोसा करती है, जिनमें से अधिकतर पौधों से प्राप्त होते है । यह अनुमान लगाया गया है कि विश्व भर में लगभग 20,000 किस्मों की औषधीय पौधों की प्रजातियों का उपयोग किया जाता है, जो कि चिकित्सात्मक उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। वर्तमान में भारत में लगभग 1,769 से अधिक पौधों की प्रजातियों का उपयोग प्रमुख और लघु हर्बल फार्मूलों में किया जा रहा है।

यद्यपि भारत में वनस्पति अन्वेषण एंव फाइटो- केमिकल अध्ययन के क्षेत्र में पढ़ाई दुर्गम और अपूर्ण रही है, फलस्वरूप यह अनुमान है कि पौधों के साम्राज्य में केवल 10% कार्बनिक घटकों की ही खोज की जा सकी है। मेडिकल पेशे में नये-नये वैज्ञानिक उपकरणों के बढते प्रयोग से आने वाले चिकित्सक वैज्ञानिकों को विज्ञान के इस क्षेत्र में अगले कुछ वर्षों में आश्चर्यजनक नई खोजॊं की आने की उम्मीद हैं |

आयुर्वेद, एक प्राचीन और अब विश्व स्तर पर स्वीकार्य औषधीय प्रणाली और जीवन का विज्ञान है। चरक संहिता, सुस्रुत संहिता और अष्ट्रांग ह्र्दय आयुर्वेद के मुख्य शास्त्रीय ग्रंथ हैं। आयुर्वेद का उद्देश्य सकारात्मक स्वास्थ्य को बनाए रखना और रोगों का इलाज करना है। इस लक्ष्य की उपलब्धि के लिए पौधों से निर्मित औषधीयां (ड्रग्स) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं|

यदि हम भारत की एक बडी आबादी जो गावों में बसती है, या फिर वह आवादी जो शहर में निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के रुप में है, उसकी स्वास्थ्य की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है तो हमें इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये निम्न लिखित स्वर्णिम् त्रिभुज के सिद्धान्त को अपनाना पडेगा

                           स्वास्थ्य

        जलवायु                    पैसों की एक बडी बचत

इस सिद्धन्त से न केवल स्वस्थ्य लाभ ही सुनिश्चित होगा, बल्कि भविष्य मे उससे सम्भावित बीमारियों की रोकथाम के साथ-साथ जलवायु का शुद्धिकरण एंव पैसों की एक बडी बचत भी सुनिश्चित होगी | क्योंकि हमारी आमदनी का एक बडा हिस्सा हमारे इलाज में खर्च हो जाता हैं | य़दि हम छ: सदस्यों के एक परिवार को देखें, तो परिवार में पति-पत्नी के अतरिक्त माता-पिता एवम् पुत्र-पुत्री आदि सदस्य होते हैं, 

हम विश्लेषण करे तो हम देखतें हैं कि माता-पिता व्रद्धावस्था जन्य रोगों ( आर्थराइटिस, अस्थमा, सुगर, हाई ब्लडप्रेशर आदि)  से ग्रसित होते है, स्वयं परिवार का मुखिया या उसकी पत्नी भी इन रोगों से ग्रसित हो सकती है | स्त्रीयों के भी सम्भावित रोग हमेंशा या कभी-कभी लगे रहते हैं इसी प्रकार बच्चॊं में भी कुछ चिरकालिक या तत्कालिक रोग होते रहते हैं, व्यसन, लाइफस्टाइल डिसार्डरस् (जीवनशैली जन्य रोग) तथा अन्य संक्रमणजन्य बीमारिया भी समय-समय पर परिवार की सारी अर्थव्यवस्था को बिगाड देता है और किसान या मध्यम आय वाला परिवार ऎसे कर्ज के बोझ मे दब जाता है, जिससे सारी उम्र निकलना मुश्किल होता है|

किसी भी घर में सरकारी नक्शा पारित कराने हेतु जमीन का कुछ हिस्सा (ओपेन एय़र स्पेश) खाली छोडना होता है, जो कि नियमत: आवश्यक है। यदि उस हिस्से का उपयोग कर हम औषधीय पौधों को लगा दें | तो उससे हम परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य लाभ पहुंचा सकते हैं, जिससे हमारा संम्पूर्ण वार्षिक चिकित्सीय खर्च ७०-८०% तक कम होजाता है और डाक्टरो के यहां फ़िजूल के चक्कर भी नहीं लगाने पडते हैं। फ़्लैट में रहने वालों की बालकनी और नीचें बने पार्क एंव गार्डन मे इन पौधों को लगाना चाहियें ताकि पूरी सोसाइटी को इसका लाभ मिल सके।

घर के अन्दर बने गार्डेन में लगने वाले कुछ महत्वपुर्ण पौधें गुडूची, पाषाण भेद, भृंगराज, कुमारी, वासा, तुलसी, ब्राह्मी/ऐन्द्री, कालमेघ/हराचिरायता, पुनर्नवा, पिप्पली, गंधतृण/नींबू घास, पूतिहा/पुदीना, गोरखगान्जा, वचा/घोड़वच, सर्पगन्धा, शतावरी, अश्वगंधा/असगंध, मुस्तक, निर्गुण्डी आदि हैं, जिन्हे हम विभिन्न प्रकार कि बीमारीयों में इस्तेमाल कर सकते हैं। 

इन दवाओं का प्रयोग अपने चिकित्सक के निर्देशों के अनुसार ही करें । दवा की खुराक आपकी स्थिति पर आधारित होती है। यदि आपकी स्थिति में कोई सुधार नहीं होता है तो अपने चिकित्सक को बताएं। 

                          

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