विश्व पटल पर हिंदी

हिन्दी भाषा को आगे बढ़ाने के लिए राजनीतिक प्रतिबद्धता ज़रूरी

विश्व हिन्दी दिवस (10 जनवरी) पर डा सूर्यकांत का विशेष लेख

विश्व पटल पर हिंदी को स्थापित करने के लिए वर्ष 1973 में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा द्वारा एक विश्व हिंदी सम्मेलन करने का प्रस्ताव दिया गया था, जिसके फलस्वरुप प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन 10 से 14 जनवरी 1975 को नागपुर में संपन्न हुआ। 14 जनवरी 1949 को भारत सरकार द्वारा हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिलाने के पश्चात यह पहला बड़ा पड़ाव था.

विश्व हिंदी सम्मेलन

इसके पश्चात दूसरा विश्व हिंदी सम्मेलन 28 से 30 अगस्त 1976 को मॉरीशस में, तीसरा 28 से 30 अक्टूबर 1983 नई दिल्ली में, चैथा 2 से 4 सितंबर 1993 मॉरीशस में, पांचवा 4 से 8 अप्रैल 1996 त्रिनिदाद एवम टोबैगो में, छठा 14 से 18 सितंबर 1999 लंदन में, सातवां 5 से 9 जून 2003 सूरीनाम में, आठवां 13 से 15 जुलाई 2007 न्यूयॉर्क में, नवां 22 से 24 सितंबर 2012 जोहांसबर्ग, दक्षिण अफ्रीका में, दसवां 10 से 12 सितंबर 2015 भोपाल में तथा 11वां 18 से 20 अगस्त 2018 को मॉरीशस में संपन्न हुआ। वैसे तो अब तक 11 विश्व हिंदी सम्मेलन पिछले 43 वर्षों में संपन्न हो चुके हैं, लेकिन विशेष प्रभाव भोपाल में 2015 में संपन्न दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन में भारत की विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज द्वारा विशेष रुचि लेने के कारण प्रारंभ हुआ है।

इसी सम्मेलन में श्रीमती सुषमा स्वराज द्वारा इस बात पर विशेष जोर दिया गया कि जीवन के विविध आयामों जैसे विज्ञान, चिकित्सा, तकनीक आदि में हिंदी को सशक्त बनाया जाए।

हिंदी बोलने वालों की संख्या

आज हिंदी दुनिया के लगभग 140 देशों में समझी और बोली जाती है तथा हिंदी बोलने वालों की संख्या चीन की मैंडरिन के बाद विश्व में दूसरे स्थान पर मानी जाती है। वैसे तो अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय संपर्क भाषा के रूप में प्रथम स्थान रखती है परंतु हिंदी भी धीरे धीरे अपना अंतर्राष्ट्रीय स्थान ग्रहण कर रही है।

भारत की बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था, बढ़ता हुआ बाजार, हिंदी भाषी उपभोक्ता, हिंदी सिनेमा, आप्रवासी भारतीय, हिंदी का विश्व बंधुत्व भाव, हिंदी को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। यही कारण है, कई अंग्रेजी माध्यम के टीवी चैनलों को हिंदी भाषा में प्रस्तुतीकरण करना पड़ा, हिंदी में विज्ञापनों का दौर बढ़ा, हिंदी गीत संगीत का भी बोलबाला बढ़ रहा है।

https://www.bharatdarshan.co.nz/festival_description/134/vishwa-hindi-diwas.html

सबसे बड़ी चुनौती संयुक्त राष्ट्र संघ में

हिंदी भाषा को विश्व पटल पर स्थापित करने के लिए सबसे बड़ी चुनौती संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी भाषा को सातवीं भाषा के रूप में स्थान दिलाना है। इसके लिए भारत के विदेश मंत्रालय द्वारा गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं। माॅरीशस में विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना की गई है, जिसका उद्घाटन भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद द्वारा मार्च 2018 में किया गया।

यह कदम हिंदी भाषा को विश्व पटल पर स्थापित करने हेतु एक कीर्तिमान कदम है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा सप्ताह में एक दिन, शुक्रवार को हिंदी भाषा में एक समाचार बुलेटिन प्रसारित करना बहुत ही सराहनीय एवं स्वागत योग्य कदम है। इससे दुनिया भर में फैले हिंदी भाषियों को अपनी भाषा में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विश्व के समाचार प्राप्त हो सकेंगे।

दुनिया में कंप्यूटर के बढ़ते हुए प्रयोग को देखते हुए हिंदी भाषा सीखने के लिए एक कंप्यूटर ऐप भी बाजार में लाया गया है, जिससे हमारी भावी पीढ़ी हिंदी भाषा को सीख सकेगी।

कृपया इसे भी देखें https://mediaswaraj.com/achary-mahavir-prasad-dwivedi-memory-america-gaurav-awasthi/

हिंदी भाषा के आधुनिक बाजार

आज हिंदी पूरी दुनिया में सिर्फ बोल चाल और संपर्क भाषा के रूप में ही नहीं बढ़ रही है। बल्कि आधुनिक भी होती जा रही है। आज हिंदी इंटरनेट, मैसेज, वाट्सएप तथा ईमेल की भी भाषा बनती नजर आ रही है। हिंदी भाषा के आधुनिक बाजार को देखते हुए गूगल, याहू इत्यादि भी हिंदी भाषा को बढ़ावा दे रहे हैं।

आज हिंदी केवल भारतवासियों, प्रवासी भारतीयों तथा विकासशील देशों की भाषा ही नहीं है, बल्कि कई विकसित व शक्तिशाली राष्ट्रों में हिंदी अपना प्रमुख स्थान बना रखी है । अमेरिका जैसे सबसे विकसित राष्ट्र में हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार के लिए 150 संस्थान हिंदी को सिखा रहे हैं।

आज हिंदी भाषा में 25 लाख से ज्यादा अपने शब्द हैं। दुनिया में समाचार पत्रों में सबसे ज्यादा हिंदी के समाचार पत्र हैं। दुनिया का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला अखबार भी हिंदी भाषा में है। अतः हम कह सकते हैं, कि विश्व पटल पर हिंदी अपना प्रमुख स्थान बना रही है।

हिंदी भाषा की चुनौतियां

ऐसा नहीं है कि हिंदी भाषा की चुनौतियां नहीं है। भारत के अंदर तथा बाहर हिंदी की स्वीकार्यता को बढ़ाना सबसे बड़ी चुनौती है। हिंदी को जीवन के विविध क्षेत्रों जैसे विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, तकनीक, विधि, अर्थशास्त्र, संचार विज्ञान तथा अन्य क्षेत्रों में हिंदी को समृद्ध करना एक बड़ी चुनौती है।

विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में हिन्दी भाषा को समृद्ध करने के प्रयास तथा संघर्ष होते रहे हैं। लेकिन अभी भी चुनौती बरकरार है। इस दिशा में आई. आई. टी. छात्र श्री श्याम रूद्ध पाठक का संघर्ष एक उल्लेखनीय कदम रहा है। जब उन्होने अपनी आई आई टी दिल्ली की डिग्री को हिन्दी में प्राप्त करने के लिए संघर्ष किया और अंततः उन्हें सफलता मिली।

इसी तरह वर्ष 1991 में जब मैंने अपने एम0डी0 पाठ्यक्रम की थीसिस हिन्दी में प्रस्तुत करने का निर्णय किया तो किंग जाॅर्ज मेडिकल कालेज, लखनऊ के तत्कालीन प्रशासन के विरोध के फल स्वरूप लगभग एक वर्ष तक संघर्ष करना पड़ा और अंततः विधान सभा से एक सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित हुआ कि डा0 सूर्यकान्त को हिन्दी में शोध प्रबंध जमा करने की अनुमति प्रदान करें, तब जाकर वह हिन्दी में शोध प्रबन्ध जमा हो सका।

इसी तरह वर्ष 1991 में जब मैंने अपने एम0डी0 पाठ्यक्रम की थीसिस हिन्दी में प्रस्तुत करने का निर्णय किया तो किंग जाॅर्ज मेडिकल कालेज, लखनऊ के तत्कालीन प्रशासन के विरोध के फल स्वरूप लगभग एक वर्ष तक संघर्ष करना पड़ा और अंततः विधान सभा से एक सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित हुआ कि डा0 सूर्यकान्त को हिन्दी में शोध प्रबंध जमा करने की अनुमति प्रदान करें, तब जाकर वह हिन्दी में शोध प्रबन्ध जमा हो सका।

दुनिया के लगभग सभी विकसित राष्ट्रों में उनकी अपनी भाषा में ही विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान में पढ़ाई का महत्व दिया है। रूस, चीन, जर्मनी, जापान, फ्राॅस जैसे सम्पन्न राष्ट्र अपनी बेसिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं व्यवसायिक शिक्षा अपनी मात्र भाषा में ही कराते हैं।

भारतीय भाषा सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में केवल 7-8 प्रतिशत लोग ही अंग्रेजी भाषा में पारंगत हैं , बाकी लोग हिन्दी तथा अन्य भाषा में ही अपनी प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करते हैं।

हमारे देश के मेडिकल कालेजों में एम.बी.बी.एस. पाठ्यक्रम का माध्यम अंग्रेजी भाषा ही है, लेकिन अधिकतर छात्र इसे ढ़ंग से समझ नहीं पाते हैं अतः एम.बी.बी.एस. प्रथम वर्ष में चिकित्सकीय पाठ्यक्रम के अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा का भी अतिरिक्त अध्ययन करते हैं, जिससे वे एम बी बी एस की पढ़ाई समझने के लिए अंग्रेजी भाषा में पांरगत हो सकें।

समस्त शिक्षाओं का माध्यम भारतीय भाषाएं हों

इस समस्या को दूर करने का एक मात्र उपाय यह है कि समस्त शिक्षाओं का माध्यम हिन्दी एवं भारतीय भाषाएं ही हों। जिससे विद्यार्थियों को अपनी सरल भाषा में शिक्षा मिले एवं अंग्रजी को सीखने का अतिरिक्त मानसिक बोझ न पड़ें।

विश्व पटल पर हिंदी को स्थापित करने में सबसे बड़ा कदम भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई जी द्वारा उठाया गया था, जब उन्होंने वर्ष 1977 में भारत के विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा को पहली बार हिंदी में संबोधित किया था। हिन्दी भाषा को आगे बढ़ाने के लिए राजनीतिक प्रतिबद्धता एक बहुत बड़ा कदम होता है। यह प्रतिबद्धता आगे मजबूती से बढ़ती रहे इसकी प्रबल आवश्यकता है।

डॉ. सूर्यकान्त
डा सूर्यकांत को अपनी एम डी थीसिस हिंदी में जमा करने के लिए संघर्ष करना पड़ा.

डा0 सूर्यकान्त
विभागाध्यक्ष,
रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग,
किंग जार्ज चिकित्सा विश्व विद्यालय, लखनऊ

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@Suryakantkgmu

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