कोरोना वायरस –आयुष सूक्त –आदित्य सूक्त –अथर्ववेद 

एक वैज्ञानिक परम्परा की उपेक्षा

कोरोना वायरस से आज पूरा विश्व त्रस्त है–भय से ग्रस्त है –इस वायरस के समक्ष आज का विज्ञान इतना असहाय सा दिख रहा है. उसके पास इससे निजात पाने के लिए कोई न तो निश्चित दवाई है और न त्राण की कोई प्रक्रिया ही है इससे मुक्ति का उपाय केवल सावधानी और बचाव ही है –विकल्प। 

–अथर्ववेद के आयुष सूक्त में कीटाणुओं से मुक्ति का उल्लेख है 

–अथर्ववेद के दूसरे खंड के सूक्त -३२ में आदित्य सूक्त के छः श्लोक हैं जिससे ज्ञात होता है की सूर्य की किरने कीटाणुनाशक हैं 

डा चंद्र विजय, वैज्ञानिक

एक –उद्यन्नादित्यः क्रिमिन हन्तु निम्रोचन हन्तु रश्मिभिः 

       ये अंत क्रिमायो गाविह 

अर्थात —उदय होते हुए तथा अस्त होते हुए सूर्य अपनी फैलने वाली किरणों के द्वारा उन किरणों का विनाश करें जोशरीर के भीतर स्थित है 

दो —विश्वरूपम चतुरक्षम कृमिम सारंगमर्जुनाम 

       श्रिणामयास्य पृष्टिरपि वृश्चामि याच्छिरः 

अर्थात –आदित्यदेव भगवान सूर्य कहते हैं की मैं नाना आकारवालों –चार आँखों वाले चितकबरे रंग के एवं धवलवर्ण के कीटाणुओं का विनाश करता हूँ –मैं उन कीटाणुओं के पीठ और शीश का भी विनाश करता हूँ 

तीन —अत्रिवद वः कृमयो हन्मि कण्ववजजमद्ग्निवत 

         अगस्तस्य ब्रह्मणा सं पिनष्म्यहम क्रिमीनः 

अर्थात –सूर्यदेव कहते हैं की –हे कीटाणुओं मैं तुम्हे उसी प्रकार न उपन्न होने के लिए नष्ट करता हूँ जिस प्रकार –अग्नि –कण्व –और जमदग्नि ऋषि ने मन्त्र के बल से तुम्हारा विनाश किया था –मैं अगस्त ऋषि के मन्त्र से सभी कीटाणुओं का विनाश करता हूँ 

चार –हतो राजा कृमिनामूतेषां स्थपतिर्हतः 

       हतो हातमाता क्रिमिरहतभ्राता हतास्वासा 

अर्थात —सूर्यदेव द्वारा कीटाणुओं का राजा -सचिव समेत सारा परिवार नष्ट कर दिया गया 

पांच —हतासो अस्य वेषसो  हतासः परिवेशसह 

         अथो ये क्षुल्लिका इव सर्वे ते कृमयो हताः 

अर्थात —सूर्यदेव ने कीटाणुओं की बस्तीके साथ साथ समीप की बस्ती जहाँ इनके बीज हो सकते थे उसे भी नष्ट कर दिया है 

 छह –प्र में श्रिणामि शृङ्गे याभ्यां वितुदायसि 

        भिन दिम ते कुशुंभम यास्ते विश्धानः 

अर्थात –आदित्य देव ने कीटाणुके उन सींगों को तोड़ दिया है जो कष्ट पहुंचाते थे –इसके उस विशेष अंग कुशुम्भ को विदीर्ण कर दिया गया है जो विष धारण करते थे .

लेकिन ज्ञान – विज्ञान की इस परम्परा को लोभ आधारित व्यवसायिक हित दबाव में दबा दिया गया है .

(डा चंद्र विजय चतुर्वेदी, वैज्ञानिक, प्रयागराज) 

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