तुलसी भी नुक़सान कर सकती है, जानें उपयोग का सही तरीक़ा

तुलसी की पत्तियाँ कब तोड़ना चाहिए

तुलसी आयुर्वेद में एक बहु उपयोगी औषधीय पौधा है, लेकिन यह जानना ज़रूरी है कि तुलसी का सेवन कौन, कब और कैसे कर सकता है. वरिष्ठ पत्रकार राम दत्त त्रिपाठी और विज्ञान लेखक डा ज्ञानेंद्र मिश्र ने इस सिलसिले में आयुष ग्राम चित्रकूट के सुप्रसिद्ध वैद्य डा मदन गोपाल वाजपेयी से चर्चा की.

प्रश्न : हमारे यहाँ तुलसी के पौधे को उखाड़ना और कमजोर को सताना पाप माना गया है। तुलसी की अनेक प्रजातियाँ होती हैं- जैसे श्यामा तुलसी, रामा तुलसी आदि और चूंकि इसकी खेती भी की जाती है इसलिए स्वाभाविक है कि इसमें उर्वरक एवं रासायनिक खाद का भी प्रयोग होता है, वह कितनी उपयोगी होती है? तुलसी का किन-किन रोगों में औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है और कितनी मात्रा का प्रयोग करना चाहिए?

उत्तर: तुलसी को वैष्णवी और वृन्दा भी कहा जाता है। वैष्णव का अर्थ विशाल या व्यापक भी होता है अतः तुलसी के गुण अत्यंत व्यापक (ब्रॉड स्पैकट्रम) हैं। इसके पत्र, पुष्प, मंजरी, तना इत्यादि सभी अत्यधिक गुणवान होते हैं इसीलिए इतने गुणकारी पौधे को उखाड़ना निषेध करने के लिए इस कृत्य को पाप की संज्ञा दी गई है। चूंकि तुलसी को नारी माना गया है और हमारे शास्त्रों में भी नारी को अबला एवं अवध्य माना गया है इसलिए भी इसे कष्ट देना पाप के समतुल्य माना गया है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, जलंधर नामक दैत्य की पत्नी वृन्दा भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थी। परंतु लोक कल्याण हेतु विष्णु ने छल पूर्वक उसके सतीत्व को नष्ट कर जलंधर के वध का मार्ग प्रशस्त किया और वृन्दा पति के साथ सती हो गई। जिस स्थान पर वृन्दा सती हुई वहाँ पर एक पौधा उत्पन्न हुआ जिसे तुलसी के नाम से जाना गया। तुलसी अपने पूर्व जन्म में तपस्विनी थी अगले जन्म में तुलसी के रूप में हुई तो भी उसका  लोक कल्याणकारी स्वरूप आया इसलिए धार्मिक, अध्यात्मिक दृष्टिकोण के साथ साथ स्वास्थ्य रक्षा के गुणों के कारण भी इसे उखाड़ने का निषेध है। 

तुलसी एंटी-वायरल, एंटी-बायोटिक

प्रश्न: कहा जाता है कि तुलसी एंटी-वायरल, एंटी-बायोटिक है, श्वास, खांसी, ज्वर, किडनी आदि विभिन्न रोगों में लाभदायक माना जाता है। तुलसी विभिन्न रोगों में किस प्रकार लाभकारी है, तथा इसके चिकित्सीय गुणों को विस्तारपूर्वक बताएं।

उत्तर: तुलसी के पर्यायवाची शब्दों में ग्राम्या शब्द का भी प्रयोग किया जाता है जिसका अर्थ है गांवों में निवास करने वाली अर्थात, आसानी से सब जगह उपलब्ध होने वाली। इसका एक नाम भूताघ्नी अर्थात, छोटे छोटे से घातक, रोगकारक, कृमि, कीटाणु, विषाणुओं, जीवाणुओं (बैक्टीरिया) को भी नष्ट कर देने वाली है। भाव प्रकाशकार ने इसे अपेतराक्षसी अर्थात, रोग देने वाले, पीड़ा देने वाले जीवाणुओं को नष्ट करने वाली भी कहा है, इसे विषघ्नी अर्थात, विष को नष्ट करने वाली भी कहा गया है। वैज्ञानिक शोधों से भी प्रमाणित हो चुका है कि पीपल और तुलसी सर्वाधिक ऑक्सिजन छोडने वाले पौधे होते हैं। सर्वाधिक ऑक्सिजन (प्राणवायु) छोडने वाला पौधा होने के कारण भी यह अत्यंत उपयोगी पौधा होता है। इसको अमृता, सुरवल्ली के नाम से भी जाना जाता है। जहांतक रोगों में प्रयोग का प्रश्न है, आचार्य चरक ने लिखा है –  

यह हिचकी को बंद करती है, श्वासरोग को नष्ट करती है, विषघ्नी है, पसलियों का दर्द नष्ट करती है। चूंकि पित्त को बढ़ाती है, कफ एवं वात का शमन करती है, इसलिए पित्त प्रकृति के लोगों को सावधानीपूर्वक प्रयोग करना चाहिए। 

प्रश्न: तुलसी की किस-किस रूप में और कितनी मात्रा में सेवन करना चाहिए?

उत्तर: चूंकि तुलसी गरम होती है और प्रातःकाल का समय कफ का समय होता है अतः प्रातः काल का समय इसके सेवन लिए सर्वोत्तम है और अपनी प्रकृति के अनुसार तुलसी की 4-5 पत्तियाँ या 1-3 ग्राम तुलसी चूर्ण का सेवन उपयुक्त होता है। चूंकि बसंत ऋतु कफ के प्रकोप का समय होता है अतः इन दिनों इसे दिन में 2-3 बार भी सेवन किया जा सकता है। 

प्रश्न: सुना है कि तुलसी तनाव में भी लाभकारी होती है और इसे दांतों से चबाना नहीं चाहिए। इस विषय पर आपका क्या मत है?

उत्तर: अनेक शोधों से प्रमाणित हो चुका है कि तुलसी में आयरन और पारद (पारा) होता है जो दांतों के लिए हानिकारक होता है इसलिए इसे दांतों से चबाने का निषेध किया गया है। इसे पानी के साथ निगलना चाहिए इसका स्पर्श दांतों से न हो। चूंकि इसमें, बहुत से मिनरल्स, विटामिन्स एवं एंटीओक्सीडेंट्स पाये जाते हैं इसलिए यह तनाव को कम करने में भी सहायक होती है। 

प्रश्न: इसके अलावा किन किन रोगों में तुलसी का घरेलू प्रयोग हो सकता है?

उत्तर: आयुर्वेद में त्रिभुवन कीर्ति रस का आयुर्वेदचार्य बहुत प्रयोग करते हैं। आजकल कोविड के उपचार में भी इस रसायन का प्रयोग किया जाता है। चूंकि इस रसायन के निर्माण में पहली भावना तुलसी की ही दी जाती है और तुलसी स्वेदल (पसीना लाने के गुण से युक्त) होती है, जिसके कारण उसकी गुणवत्ता बहुत अधिक बढ़ जाती है। इसके अतिरिक्त, तुलसी के नियमित सेवन से साधारण ज्वर, खांसी, जुकाम जैसे रोगों में भी लाभ होता है। तुलसी से ज्वर समाप्त होने के बाद ऊर्जा भी मिलती है। कोविड में भी पोस्ट-कोविड स्थिति में भी ऊर्जा बढ़ाने में तुलसी बहुत सहायक होती है। 

प्रश्न: ज्वर में तुलसी की कितनी मात्रा का और कैसे सेवन करना चाहिए?

उत्तर: एक हमारा स्वानुभूत योग है जिसका हम प्रायः प्रयोग करते हैं। इसके लिए 5 पत्ती तुलसी, 5 पत्ती पोदीना, 3 ग्राम खूबकला, 4 लौंग, 1 इलायची, 2 अंजीर और 5 मुनक्का लेकर कूट लें। उसको 250 मिली पानी में पकाएं। जब पकते पकते आधा रह जाए और गाढ़ा हो जाए तो उसे छान कर गुनगुना दिन में 2-3 बार सेवन करें। यह योग ज्वर का शमन करता है, भूख को बढ़ाता है तथा कमजोरी को दूर करता है। रक्त में हीमोग्लोबिन कम नहीं होने देता है। दीपन-पाचन गुण होने के कारण कब्ज को दूर करता है। कोविड या सामान्य फ्लू में भी तुलसी का अत्यंत लाभकारी प्रयोग होता है। इसके लिये 4-5 तुलसी की पत्ती या एक ग्राम तुलसी चूर्ण और कालीमिर्च को पानी में पकाते हैं। इसके अतिरिक्त, तुलसी के पत्तों का स्वरस 1 चम्मच और 4-5 कालीमिर्च तवा गरम करके उसमें डाल दें इससे उसके रासायनिक पदार्थ उड़ जाएंगे और शेष योग का सेवन करें। एक कटोरी में तुलसी स्वरस एवं कालीमिर्च को गरम तवे पर रख दें। गुनगुना होने पर सेवन कर के कंबल ओढ़ कर सो जाएँ। 4-5 बार सेवन करने से भी ज्वर में बहुत लाभ होता है। 

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प्रश्न: तुलसी के रस को मिट्टी के कुल्लड़ में पकाने के प्रयोग जिसे बलका कहते हैं, पर प्रकाश डालें। 

उत्तर: गिलोय, नाय (नारी) का पंचांग और तुलसी को पीस कर घोल बनाकर एक पात्र में डाल देते हैं और उस पर मिट्टी के कुल्लड़ को कंडे की अग्नि में लाल होने तक पका कर रखते हैं वह पात्र सारा रस खींच लेता है उससे बनी औषधि ज्वर में लाभकारी होती है। 

प्रश्न: काढ़ा और बलका में क्या अंतर है?

उत्तर: आयुर्वेद में पंचविधकषाय की कल्पना की गई है जिसमें स्वरस पचने में सबसे भारी होता है। रोगी ये पंचविधकषाय रोगी की पाचन शक्ति के अनुसार दिये जाते हैं। काढ़ा पचने में हलका होता है। बलका में स्वरस का प्रयोग किया जाता है अतः यह पचने में काढ़ा की तुलना में भारी होता है। 

प्रश्न: आयुष मंत्रालय इसके तकनीकी पक्ष की गहराई में गए बिना सबको काढ़ा बाँट रहा है और एलोपैथ चिकित्सक भी चना-चबेना की तरह सबको एक जैसी दवाएं ही दे रहे हैं। यह तो ठीक नहीं है, इससे लाभ के बजाय हानि ही होगी। इस पर आपका क्या विचार है?

उत्तर: यह बिलकुल ठीक नहीं है, इसीलिए लोगों को लाभ कम हानियाँ अधिक हो रही हैं। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। तुलसी निश्चित रूप से उच्च रक्तचाप को मिटा देती है, परंतु एक रोगी को लगातार औषधियों का सेवन कराने पर जब रक्तचाप कम नहीं हो रहा था तो रोगी से उसकी दिनचर्या पूछने पर पता लगा कि वह रोज तुलसी का काढ़ा पीता था। चूंकि रोगी पित्तज प्रकृति का था और उसको उच्च रक्तचाप हाइपर एसिडिटी के कारण था। इसलिए तुलसी का काढ़ा लाभ पहुंचाने के बजाय नुकसान पहुंचा रहा था। उसको तुलसी का काढ़ा बंद कराया तो दवाएं अपना कार्य करने लगीं। किसको काढ़ा देना है, किसको फांट देना है, किसको चटनी देना है, किसे स्वरस देना है, यह चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही होना चाहिए। तुलसी के संबंध में यह बात ध्यान देने योग्य है कि यह पित्तवर्धक होती है इसलिए पित्तज व्यक्ति को इसका प्रयोग सावधानी पूर्वक करना चाहिए। 

तुलसी की पत्तियाँ कब तोड़ना चाहिए

प्रश्न: औषधीय पौधों के बारे में कहा जाता है कि प्रत्येक वनस्पति प्रत्येक समय और प्रत्येक मौसम में प्रभावशाली नहीं होती है। यही बात तुलसी पर भी लागू होती है। इसलिए तुलसी की पत्तियाँ कब तोड़ना चाहिए, कब नहीं तोड़ना चाहिए, कब इससे लाभ होगा और कब नहीं होगा?

उत्तर: वैज्ञानिक शोधों से प्रमाणित हो चुका है कि पेड़ पौधों एवं वनस्पतियों में भी प्राण होते हैं। तुलसी दिन में किसी भी समय तोड़ा जा सकता है परंतु सूर्यास्त के उपरांत नहीं तोड़ना चाहिए। रविवार के दिन तुलसी को नहीं तोड़ना चाहिए। 

प्रश्न: तुलसी हृदय के लिए किस प्रकार लाभकारी है?

उत्तर: चरक संहिता एवं भावप्रकाश दोनों ने ही तुलसी को हृदय के लिए लाभकारी माना है। इसके लिए आप इसे चूर्ण या काढ़ा या दोनों रूप में सेवन कर सकते हैं। हमारे यहाँ अंतिम समय में तुलसी एवं गंगा जल देने की परंपरा है। इसके पीछे तर्क यह है कि यदि हृदय में जान होगी तो व्यक्ति को पुनर्जीवन मिलता है। 

प्रश्न: तुलसी के बीजों के क्या औषधीय उपयोग है? 

उत्तर: तुलसी के बीज वीर्यवर्धक, ओजवर्धक एवं बलवर्धक होते हैं। तुलसी के बीज अद्भुत धातुपोषक होते हैं। यदि किसी का बल क्षीण हो गया है या दुर्बलता है तो तुलसी की बीज एक ग्राम बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से बल एवं शक्ति का वर्धन होता है। इसके लिए आवश्यक यह है कि रोगी की पाचन शक्ति मजबूत होना चाहिए क्योंकि तुलसी के बीज पचने में भारी होते हैं। यदि पाचन शक्ति कमजोर हो तो पहले पाचन शक्ति बढ़ाने का उपचार करना चाहिए। 

प्रश्न: तुलसी कई प्रकार की होती है जैसे – रामा तुलसी, श्यामा तुलसी, इनमें क्या अंतर है?

उत्तर: श्यामा तुलसी में क्लोरोफिन अधिक होता है इसलिए उसकी पत्ती कालिमायुक्त होती है, बाकी गुण-दोष में कोई अंतर नहीं होता है। 

पूरी चर्चा यहाँ सुनें

आचार्य डॉ0 मदन गोपाल वाजपेयी, बी0ए0 एम0 एस0, पी0 जीo इन पंचकर्माविद्यावारिधि (आयुर्वेद), एन0डी0, साहित्यायुर्वेदरत्न, एम0ए0(संस्कृत) एम0ए0(दर्शन), एल-एल0बी0।

 संपादक- चिकित्सा पल्लव

पूर्व उपाध्यक्ष भारतीय चिकित्सा परिषद् उ0 प्र0

संस्थापक आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूटधाम।

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