महामारी की आपदा में किसान की भी सुध लीजिए

आपदा में अच्छे प्रशासन की पहचान

नवीन चंद्र तिवारी 

देश के हालात अजीब हो गए हैं । शहर ठीक तो सब कुछ ठीक ! न जाने कब हम इस सत्य की ओर सजग होंगे कि अगर किसान और मज़दूर ठीक तभी कमोबेश सब कुछ ठीक है । प्रधानमंत्री का आह्वान है कि मज़दूर का वेतन गैरहाजिर होने पर न काटा जाय और उम्मीद है कि इसके साथ ही सरकार उस उद्योगपति के लिए भी कुछ राहत की घोषणा करेगी , जो उद्योग बंद होने पर भी मज़दूरी देगा । वरना अगर ऐसे उद्योग ज़्यादा घाटे के कारण बीमार या बंद हो गए तो उनमे काम करने वाले श्रमिक का रोज़गार भी जाएगा । उधर खेती करने वाले छोटे बड़े किसानों की सुध भी सरकार को है या नहीं कुछ पता नहीं । गेहूं और सरसों और आलू की फसल तैयार है लेकिन मज़दूर मिल नहीं रहे हैं जो उसे काटकर खलिहान या गोदाम तक पहुँचाए । क्या प्रशासन और सरकार किसानों को भी कच्छ राहत देने की सोच रही  हैं ? 

नवीन चंद्रा तिवारी

किसी आपदा या त्रासदी के समय में ही गुड गवर्नेंस की पहचान होती है । केवल नारों से गवर्नेंस नहीं होती है । हम हर मोर्चे पर पीछे ही चल रहे हैं । लेकिन जिन्होंने खेती किसानी की है वो जानते हैं कि इस क्षेत्र में ढिलाई या विलंब किस सीमा तक घातक हो सकता है । फसल चौपट हो गई तो सरकार के पास सीमित विकल्प है कि आयात कर ले लेकिन किसान के नुकसान की भरपाई कौन करेगा ? जन धन ?  कितना धन है सरकार के पास कि पूरे देश के मज़दूर और किसान को बाँट देंगे ? उद्योग को राहत देंगे , 80  रूपए के डॉलर की दर से आयात करेंगे ? कितने संसाधन हैं जिनसे पूरे देश में वितरित करेंगे ? 

कोई न्यूज चैनल या अख़बार इस मुद्दे को उठाता नहीं दिख रहा है ? जितनी चर्चा राहत पैकेज की होती है उसकी दशांश भी उस काम की नहीं होती जो आज और अभी करना है । भारत विश्व के सामने ये उदाहरण पेश करेगा कि सोई हुई जनता और ऊँघता प्रशासन किसी देश को कहाँ ले जा सकता है ।

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