Virasat Swaraj Yatra 2022: मेवात पानीदार बन सकता है – जलपुरुष डॉ राजेंद्र सिंह

Virasat Swaraj Yatra 2022: आज विरासत स्वराज यात्रा ( Virasat Swaraj Yatra ) नीमली से शुरू होकर फिरोजपुर-झिरका पहुँची।

Virasat Swaraj Yatra 2022: आज विरासत स्वराज यात्रा ( Virasat Swaraj Yatra ) नीमली से शुरू होकर फिरोजपुर-झिरका पहुँची। यहाँ ग्रामीणों से बातचीत करके यात्रा टोडी मदरसा सहमीरवास पहुंची। यहाँ बडी़ संख्या में बच्चे उपस्थित थे। इसके बाद घाटा समशाबाद होते हुए, सेवल चिड़ावा गांव और महू ईदगाह पहुँची। यहाँ यात्रा का स्वागत अमेरिका से आए जोयश और संजय दत्ता ने किया। इस मेवात क्षेत्र में उत्तरप्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान का अलवर, भरतपुर और कुछ गांव हिंडौन के आते है।

यह भारत की राजधानी केंद्र सत्ता के चारों तरफ के क्षेत्र है। यहाँ एक काल में लोभ, लालच,दबाब अन्य कारणों से धर्म परिवर्तन हुए है। यह धर्म परिवर्तन के बाद भी अपने जीवन को वैसे ही बनाए रखे हुए है। इनका अपनी धरती से गहरा जुड़ाव और प्रकृति के साथ प्यार से अपनी खेती में लगे रहना, इनका काम था। बाद के दिनों में सत्ता में रहने के बाद धहाडें मारने की पद्धति भी बनाई। इससे लूट, झगड़े, लड़ाई यह सब धीरे-धीरे व्यवहार में आने लगे। यहां एक बहुत अच्छी बात थी कि, यह समाज में अपने व्यवहार में जैसे थे, वैसे के वैसे बने रहे।

इस इलाके में जल का सबसे बड़ा स्रोत अरावली पर्वत है। अरावली में जब खूब जंगल था, तब अरावली के नीचे का पानी बहुत ही मीठा और सेहत के लिए बहुत अच्छा था। इसलिए अरावली में रहने वाले लोग लंबे-तगड़े, मजबूत और बहुत मेहनती होते थे। बाद के दिनों में मेहनत करने का व्यवहार बदला और प्रकृति के साथ जो गहरे रिश्ते थे, उनमें भी काफी बदलाव और गिरावट आयी। सत्ता ने जैसा यह चाहते थे, वैसा नहीं किया, तो मारपीट लड़ाई – झगड़े की नौबत हमेशा बनी रही। लेकिन इनको देखने पर ऐसा लगता है कि, यह बहुत सरल, सादगी और सहज स्वभाव वाले हैं। सहज स्वभाव के कारण जब इच्छा पूर्ण नहीं होती है, तो फिर उतने ही असहज होकर हमलावर बन जाते है।

जलपुरूष राजेन्द्र सिंह ने बताया कि, यह इलाका पानी की कमी के कारण उजड़ा हुआ है, क्योंकि जब आपके पास पानी को ठीक से प्रबंधन करने की कोशिश नहीं होती तो बेपानी हो जाते हैं। मेवात अरावली के पानी का ठीक से प्रबंधन नहीं कर पाया और धरती से पानी बहुत तेजी से निकालता गया। जिसके कारण यहाँ का भूजल स्तर बहुत नीचे चला गया है।

जबकि यह पूरा इलाका सघन जल क्षेत्र था। यहाँ अरावली की पहाड़ियों से पानी आता था, इलाके के बीचो-बीच यमुना का प्रवाह था और थोड़ा ब्रज क्षेत्र था अर्थात इस क्षेत्र ने अपने आप को पानीदार बनाने की कोशिश नहीं की। हरियाणा ने जरूर एक मेवात डेवलपमेंट अथॉरिटी बनायी थी। इस हेतु बड़ा बजट प्रस्तावित भी हुआ था। लेकिन इस समिति में केवल कमाई करने वाले लोग ही शामिल थे। इसलिए जल का संरक्षण करने के नाम पर जो यहां जल संरचनाओं का निर्माण हुआ था, वह सभी थोडें दिनों में ही टूट गए है।

जलपुरूष राजेन्द्र सिंह जी ने कहा कि, मैं पिछले 3 दिनों से इस इलाके में यात्रा कर रहा हूँ। इस दौरान देखा कि, सिर्फ एकाद बांध ही होगा जो बचा है, नहीं तो सब बांध टूटे हुए दिखाई दिए है। मैं, पाटखोरी गया था। यहाँ एक बड़ा बांध था, जो बारिश के पानी के साथ ही बह गया।
इसके बाद मेवली भी गया था, जहाँ तीन बाँध है। यह तीनों के तीनो बांध टूटे पड़े है। यह बाँध जिस साल बने थे, उसी साल पानी में बह गए थे। यही हाल पूरे क्षेत्र में देखने को मिला।

मेवात की अपनी 3 दिन की यात्रा में कई गांवों में गया था। सभी जगह की जल संरचना टूटी हुई है।* यहाँ की सत्ता को लगता है कि, जल संरक्षण का काम केवल नापतोल का काम है और जबकि जल संरक्षण का काम नापतोल का काम नहीं होता। जल संरक्षण का काम में तो पहले समाज का जल नापा जाता है कि, उसके अंदर कितना पानी है? उसके बाद जगह का चिन्हींकरण किया जाता है। उसके उपरांत उस जगह में संरचना बनाने में कैसे कितना कम खर्च करके, ज्यादा पानी रोक सकते हैं, धरती के पेट में डाल सकते है। यह सब देखा जाता है।


जलपुरूष राजेन्द्र ने बताया कि, मैं जब पाठखोरी का बांध देखा तो बहुत दुखी था, क्योंकि बाँध, इतना नीचे है कि, उसमें जहां पानी रुकने की जगह है, वह बांध से भी ऊँची है। जब पानी रूकने की जगह बांध से ऊंची है तो, वह पानी कहां रुकेगा। इसलिए बाँध टूट गया है। इसी तरह से मेवली के सारे बांधों में जगह का चिन्हींकरण ठीक ढंग से नहीं हुआ है। मेवात डेवलपमेंट अथॉरिटी ने जगह का चिन्हीकरण ठीक से नहीं किया। इसलिए आंखो का पानी और धरती का पानी दोनों को मिलाना पड़ेगा, तब पानी रुकेगा । आगे जलपुरूष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि, मेवात को पानीदार बनाया जा सकता है। लेकिन मेवात को पानीदार बनाने से पहले, लोगों को पानीदार बनना होगा। जब तक लोग पानी को प्यार नहीं करेंगे, पानी के काम को खुद सहेजने की कोशिश नहीं करेंगे, तब तक मेवात पानीदार नहीं बन सकता। मेवात को पानीदार बनाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि, मेवात के अपने पानी को सहेजने के काम में जुटें।

मैं, 3 दिन में कई गांवों में गया लेकिन कहीं भी ऐसे लोग नहीं मिले, जो अपने पानी को खुद अपनी मेहनत से पानी संरक्षण का काम करना चाहते हो! तो जब तक लोगों में समझ नहीं जगेगी, तो फिर यह पानीदार कैसे बनेगा? फिर यह खारे पानी का क्षेत्र बन जायेगा। इसलिए यदि इस इलके को खारे पानी से मीठे पानी वाला बनाना है, तो पानी में बदला जा सकता है। क्योंकि इनके पास अरावली का बहुत बड़ा हिस्सा है। जिसका वर्षा जल इनकी जरूरत भी कर सकता है और धरती के पेट को भी भर सकता है।

अभी यहाँ का पानी मिट्टी को काटता हुआ आगे बढ़ता है। तो इस इलाके में जब ज्यादा तेज बारिश होती है, तो बाढ़ आ जाती और जब बारिश नहीं होती तो बहुत सुखाड़ आ जाती है। यदि इस इलाके को पानीदार बनना है तो अपने वर्षा के जल को सहेजना पडेगा। इस यात्रा में छोटेलाल मीणा, सरोज , सैन खान, राहुल सिसोदिया, नीलम आदि उपस्थित रहे। अमेरिका से आए जोयश और संजय दत्ता यात्रा के दौरान आधुनिक तकनीक के माध्यम से जल परिक्षण कर रहे है। यह बडे जल विशेषज्ञ है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

eighteen − 10 =

Related Articles

Back to top button