हमेशा याद रहेंगे Kamal, हँसते हुए, ज़बान का जादू दिखाते हुए
कमाल रूचि अमन और बेबी से बनी दुनिया से हमें जितनी मुहब्बत मिली हमने भी उन्हें उतना ही चाहा।
Kamal khan: आज हमारी दुनिया का एक हिस्सा हमेशा के लिए हमसे जुदा हो गया। रातोंरात हमारी महफ़िल उजड़ गयी। कुछ रौनक़ों से हम हमेशा के लिए महरूम हो गये । कुछ और अकेले हो गये हम लोग। एक आवाज़ जो पूरे देश में जानी जाती थी उसने हमें दोस्त बन के आवाज़ दी थी। दोस्त जो धीरे-धीरे एक दूसरे की ज़िंदगी में पूरी तरह दाखिल हो गये। दोस्त जिसका नम्बर रात के साढ़े ग्यारह बजे भी मोबाइल स्क्रीन पर चमक सकता था। हमारे परिचय का संसार चाहे जितना बड़ा हो साथ बैठकर खाने वाले दोस्तों का संसार तो बहुत छोटा था।
कमाल रूचि अमन और बेबी से बनी दुनिया से हमें जितनी मुहब्बत मिली हमने भी उन्हें उतना ही चाहा। कमाल और रूचि से 2003 में लखनऊ के हज़रतगंज में हुई मुलाक़ात एक इत्तफ़ाक़ थी। जनपथ पर अक्सर शनिवार को मॉडर्न बुक स्टोर पर टकरा जाने वाला इत्तफ़ाक़ इतना बढ़ा कि किताब प्रेमी चार लोग जब एक दूसरे को जनपथ पर नहीं पाते तो हैरान होते,और जब मिलते तो दोस्ती वाली मुस्कुराहट हमें ढांप लेती। हम फूटपाथ पर ही देर तक बतियाते।
कमाल रूचि और नन्हा सा अमन। कमाल जितने नफ़ासत नज़ाकत वाले ,अनुराग उतने ही देसी ,पर दोनों के व्यक्तित्व ने एक दूसरे को खींचा ही नहीं बल्कि बाँध भी लिया। अठारह उन्नीस साल बाद अब कमाल और रूचि की बात अनुराग से कम मुझसे ज़्यादा होने लगी थी। कमाल के रूचि के प्रति समर्पण और प्रेम ने हमारे परिवारों को और क़रीब किया।रूचि के दुपट्टे की मैचिंग हो या कोई नायाब सी डिज़ाइन,घर की आंतरिक साज सज्जा हो या फूलों के खिलने का मौसम ,नेताओं की बातें हों या गंभीर राजनीतिक बहसें सबको साझा करने की तलब भी साझी थी।
कल रात मेरी कमाल से बात हुई तो नहीं मालूम था कि सुबह तक सब कुछ बदल जायेगा ।मैंने उन्हें बताया कि चुनाव तक के लिए हमारे घर में टीवी लग गया है।उनके बेटे अमन के लेख ,उसके चुनावी चर्चाओं में भाग लेने की शुरुआत और कुछ यू ट्यूब कार्यक्रमों की चर्चा के साथ बात ख़त्म हुई थी । हमें तो सुबह उठकर कमाल से “ हम कहाँ के सच्चे थे “ धारावाहिक में माहिरा खान के अभिनय के बारे में बात करनी थी। आज सुबह तो हुई ही नहीं । आज शायद सूरज उगा ही नहीं।
आज 14 जनवरी की मनहूस कालिमा ने लाखों लोगों के दिल तोड़ दिए । अपनी क्या कहें। जब माँ गयीं तो अनुराग,झाँसी में नोडल अफसर की ड्युटी पर थे आज कमाल गये तो मिर्ज़ापुर में । IAS की नौकरी से इतनी कोफ़्त पहले कभी नहीं हुई । हम माँ बेटे ने आज अपने कलेजे को पिघलता और दरकता पाया । आज मैंने बेटे को फूट फूटकर अपने कमाल अंकल के लिए रोते देखा।
हम दिन भर कमाल के बिना कमाल के घर में थे। हमने आज इस शानदार शख़्सियत को दफ़्न होते देखा। रूचि और अमन की आँखों में दर्द का जमना देखा। ज़िंदगी तेरे धोखे देखे। सबकुछ बेमानी लगते देखा।रूचि को खुद से कहते पाया “ कितना अच्छा आदमी था” हाँ रूचि आपके कमाल सचमुच बहुत अच्छे थे।घर वही था ,किताबों की शेल्फ़ वही थी जहां सबकुछ बहुत करीने और सलीके से रखा था । वहीं दीवार पर आपकी इनाम लेती तस्वीरें थीं जिनके नीचे आप हमेशा के लिए ख़ामोश होकर लेटे थे। सिरहाने ‘मीर’ के आहिस्ता बोलो
अभी टुक रोते रोते सो गया है।पहली बार आपको इतना थका देखा कमाल। आपके इस चेहरे को मैं हमेशा के लिए भुलाना चाहूँगी। आप हमेशा याद रहेंगे दोस्त,हँसते हुए,ज़बान का जादू दिखाते हुए । एक संजीदा नागरिक ,सच्ची भारतीयता के मायने तलाशता ।हम जब तक रहेंगे आप हममें रहेंगे ।पर अब मैं उर्दू शब्दों का सही उच्चारण किसी से नहीं पूछूँगी ।
लेखकः प्रीति चौधरी (प्रोफेसर राजनीति विज्ञान, अम्बेडकर विश्वविद्यालय)