वेद में ईश्वर की अवधारणा और वैदिक देवता 

चंद्र विजय चतुर्वेदी

डॉ चन्द्र विजय चतुर्वेदी , वैज्ञानिक, प्रयागराज

वेद ज्ञान विज्ञानं परंपरा और संस्कृति का अक्षुण्य स्रोत है . यह मानव संस्कृति और सभ्यता  का शास्त्रीय और वैज्ञानिक ग्रंथ है .

जब भी मानव को यह प्रतीत हुआ की हम बहुत कुछ खोते जा रहे हैं -हमें कही न कही से कुछ प्राप्त करना चाहिए –उसने वेद की और देखा .

वेद का अर्थ ही है ज्ञान –वेद को श्रुति कहा जाता है –हजारों वर्षों से ज्ञान की इस निधि को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित किया जाता रहा.

सहस्र शीर्षा –बहुआयामी ज्ञान के स्वामी वैदिक ऋषियों को ज्ञान साधना से जिन मन्त्रों –सूक्तियों की अनुभूति हुई  –जिनके वे दृष्टा बने –उन्ही मन्त्रों –छंदों –सूक्तियों का संग्रह है –चतुर्वेद –ऋग्वेद –यजुर्वेद –सामवेद -अथर्ववेद.

ऋषियों ने वैदिक मन्त्रों का साक्षात्कार  किया जैसे वैज्ञानिक होने प्रयोगों के माध्यम से –सूत्रों -समीकरणों –सिद्धांतों का साक्षात्कार करते हैं.

मंत्रदृष्टा ऋषि मन्त्र के कोई लेखक नहीं है –और न मन्त्रों के विषयवस्तु के लिए  उत्तरदायी हैं –हर मंत्र का देवता होता है –ऋषि तो प्रयोगकर्ता है.

वेदके प्राचीन व्याख्याकार यास्क के अनुसार –वेद का ज्ञान अनुभूत हुआ. सायण कहते हैं इष्ट की प्राप्ति और अनिष्ट का परिहार जिस ग्रन्थ से हो वही वेद है.

वैदिक ऋषियों ने ईश्वर के रूप में ब्रह्म को ही सर्वोच्च सत्ता के रूप में वैदिक मन्त्रों में उद्घोषित किया है –अथर्ववेद में जगत की उत्पत्ति का कारण ब्रह्म को बताया गया —

ब्रह्म होता ब्रह्म यज्ञा ब्रह्मणा स्वरवो मिता 

अध्वर्युब्रह्मणो जातो ब्रह्मणोन्तर्हितम हिवाः 

–अथर्ववेद १९ ४२ १ 

अर्थात –जगत की उत्पत्ति का कारण ब्रह्म होता है –ब्रह्म ही यज्ञ है –ब्रह्म से ही अध्वर्य उपन्न हुए –यज्ञ का साधन हवि ब्रह्म में ही स्थित है.

वेद के अनुसार ब्रह्म ही वह दिव्य गतिशील ऊर्जा है जिसे तत्व ज्ञानी विद्वान् अग्नि –इंद्र -मित्र वरुण आदि देवता के रूप में जानते हैं –अथर्ववेद –९ \१५ \२८ 

एक अन्य मन्त्र में कहा गया है –ब्रह्म ही इस विश्व का कारण है जिसमें  इंद्र आदि देवता -अमृत का स्वाद लेते हुए अपने आप को तन्मय कर देते हैं –अथर्ववेद –२\१\५ 

एकेश्वरवाद के समर्थक वेद के अनुसार ब्रह्म से ही सत की उत्पत्ति होती है और असत ब्रह्म में ही लीन हो जाता है 

प्रकाशवान ब्रह्म ही भूत -भविष्य  वर्तमान में व्याप्त है और यही देवताओं को गति प्रदान करता है 

ब्रह्म के साध्य को पूर्ण करने के कारक और साधन हैं वैदिक देवी -देवता 

निरुक्त के अनुसार –देवता कस्मात –दानात –दीपनात –द्यौनात –अर्थात देवता किस कारन से हैं. 

देवता –दान से –प्रकाशित करने से –द्योतित करने से हैं 

यजुर्वेद ने कहा –विद्वांसो हि देवता –विद्वान् ही देवता हैं.

चारों वेद में कुल चालीस देवी देवताओं का उल्लेख मिलता है 

इनमें  प्रमुख हैं  –अग्नि -इंद्र -वायु –मैत्रवरुण -सूर्य -पृथिवी -प्रजापति -प्राण –सविता –उषा –पितर -वृहस्पति –वाचस्पति आदि.

उल्लेखनीय है की आधुनिक विज्ञान के बहुत सारे उलझे पहलुओं का मार्गदर्शन वेद के मंत्रों में निहित है.

सृष्टि की रचना का कारण ऊर्जा है या दिग  काल इसका समाधान वेद मंत्रों में निहित है.

 

One Comment

  1. पंडित चन्जीद्र विजय चतुवेदी जी ने हम सब कै दिल में उठते, उमड़ते, घुमड़ते सवाल को वेदों की नजर से सरल ढंग से समझाने का प्रयास किया है, उहें आभार सहित प्रणाम । वह नियमित लिखें तो बढि़या रहे , हम लोग वे या है जान लें। दिनेश कुमार गर्ग

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