आज का वेद चिंतन विचार – वेद और ईसाई
ईसाई धर्म के भारत में आने से पहले हिन्दुस्तान में अनेकविध दर्शन विकसित हो गये थे।
वेद, उपनिषद, भागवत धर्म, बौद्ध, जैन–विचार और सांख्य वगैरह षड्दर्शन इतने विशाल और व्यापक दर्शन की दृष्टि यहां थी।
ईसाई-धर्म के यहां आने पर सेंट थॉमस जैसे व्यक्तियों ने भारत के पूर्व- दर्शनों, तत्वाज्ञान का अच्छा अंश चूस लिया और यहां के हिन्दूधर्म ने ईसाइयत का रस चूस लिया।
इसलिए हिन्दू धर्म का रूप बदल गया और ईसाइयत का भी रूप बदल गया।
यह हिन्दुस्तान की खूबी है। वह अच्छाई को चूस लेता है और उसको अपना रूप देता है।
कितने ही इंडियन क्रिश्चियन हमने देखे, जो मांसाहार नही करते। उन पर यहां के दर्शन का असर पड़ा है।
इसलिए मैं कहता हूँ कि वेद,उपनिषद, यहाँ के ईसाइयों का ओल्ड टेस्टामेंट है।
सच्ची राह, फिर वह ईसा की बनायी हो या ऋषियों की, एक ही है।
वेद कहता ही है सत्पुरूषों द्वारा बनायी राह एक ही है । भेद संकुचित वृत्ति के कारण पैदा होते हैं।
दुनिया के सत्पुरूषों ने एक ही धर्म की राह बनायी है।
भेद परिस्थिति के कारण दीखते हैं। वे सब, धर्म के भेद नहीं, रिवाजों के भेद हैं।
कोई ईसा को मानता है, कोई वेद को, राह एक ही है ।
बाईबिल में आया है कि आरंभ में शब्द था। सृष्टि शब्द-प्रसवा है।
सनातनी भी मानते हैं कि वेद सृष्टि के आरंभ के हैं, उनके बाद सृष्टि हुई।
वेद यानी ज्ञान या अव्यक्त शब्द, इस अर्थ में हम इस बात को मान सकते हैं।
ॐ सम्मतिदर्शक है ।सम्मति देने से समृद्धि होती है। इसलिए जिसे समृद्धि चाहिए वह सम्मति दे।
सम्मति देने से काम शुरू होता है, नहीं तो वाद खतम ही नहीं होता।
ईसा मसीह ने भी अनुज्ञा(सम्मति) के बारे में ऐसा ही कहा है। जो तुम्हारा विरोधी है, उसके साथ तुरन्त सम्मत हो जाओ। (अग्री विथ अडवर्सरी क्विकली।)
ईसा मसीह ने कहा था आज की रोटी भगवान आज हमें दे। कल की रोटी की फिक्र हम आज न करें।
खाने को उन्होंने पाप समझा और कहा कि आज का पाप आज ही के लिए काफी है।
वेद में भी यही बात कही है- *अद्याद्या श्व:श्व:* आज का आज ,कल का कल। इसलिए आगे की चिंता छोड़ दें ,आज की ही चिंता करें।