राम मंदिर निर्माण शास्त्रीय विधि से करने को कहा तो हमें कहे जा रहे अपशब्द- शंकराचार्य स्वरूपानंद

ट्रस्ट में केवल विश्व हिंदू परिषद, भाजपा के लोग, प्रधानमंत्री ने पद की गरिमा गिरायी - स्वरूपानंद सरस्वती

हमारे प्रयास से कोर्ट में सिद्ध हुआ कि रामजन्म भूमि कहां है,

शंकराचार्य ने बताया राम जन्म भूमि मंदिर आंदोलन का इतिहास

जबलपुर। जगदगुरू शंकराचार्य ज्योतिष एवं द्वारका शारदा पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज द्वारा  राम जन्म भूमि में निर्माण कार्य के शुभारंभ पर देव शयन में मुहूर्त न करने के सुझाव के बाद भाजपा, विहिप व अनुषांगिक संगठनों ने उनका विरोध प्रारंभ कर दिया है। इस पर जब शंकराचार्य जी से उनका पक्ष पूछा गया तो उन्होंने इस विरोध के पीछे के इतिहास के बारे में जानकारी दी।

शंकराचार्य जी ने कहा कि राम मंदिर आंदोलन का इतिहास जानना आवश्यक है। सबसे पहले जब हमने यह प्रयत्न किया कि जन्म भूमि में ताला खोल दिया जाए और ताला खोल दिया गया तो वहां देखा गया कि 14 कसौटी के खंबे थे, मंगलकलश था, लकड़ी के दरवाजे थे, वजू का कोई स्थान नहीं था,  अजान बोलने के कोई चिन्ह नहीं थे।

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ताला खुलने के बाद एक छोटी सी घटना थी कि विश्व हिन्दू परिषद ने विजय रथ निकाला। इसका  परिणाम ये हुआ कि मुसलमान रुष्ट हुए। इन्होंने इतना ही नहीं किया ईंटों  की पूजा भी करवा दी। इसके लिए करोड़ों रुपए चंदा भी कर लिया जिसका आज तक कोइ हिसाब नहीं दिया।

मंदिर तोड़कर साक्ष्य नष्ट किया 

इसके बाद जब लोगों ने शिलान्यास की मांग की तो गर्भ गृह छोड़कर सिंहद्वार का ईंटों  से शिलान्यास कर दिया। और इसके बाद इन्होंने उस ढांचे को ढहा दिया जो कि राममंदिर का चिन्ह था। केवल वही नहीं इन्होंने सीता रसोई तोड़ दी,शिव पंचायतन तोड़ा,वाराह भगवान का मंदिर तोड़ा,हनुमानजी का मंदिर तोड़ा और इस तरह से सपाट कर दिया और हमारा साक्ष्य मिटा दिया।

इसके बाद उस समय के जो प्रधानमंत्री थे नरसिंहराव उन्होंने इनको निकाल दिया। अधिग्रहण करने के पश्चात उन्होंने ये घोषणा की कि यदि धर्माचार्य चाहेंगे तो हम राममंदिर के लिए उनको भूमि दे सकते हैं। इसके लिए हम लोगों ने श्रृंगेरी में चर्तुष्पीठ सम्मेलन किया। उसमें हम अकेले नहीं थे श्रृंगेरी के शंकराचार्य भारती तीर्थ,पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद, कांची के आचार्य जयेन्द्र सरस्वती सहित अन्य धर्माचार्य थे।

धर्माचार्यों का सर्वसम्मत प्रस्ताव, रामालय ट्रस्ट 

इन सभी ने राम मंदिर के लिए सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया और प्रधानमंत्री से भूमि की मांगकी तो प्रधानमंत्री ने कहा कि हम ट्रस्ट को भूमि दे सकते हैं। तब हमने सर्वसम्मति से रामालय ट्रस्ट का निर्माण किया और ये निर्णय लिया कि जब राम जन्म भूमि निर्विवाद हो जाएगी तब यहां राममंदिर का निर्माण करेंगे।

इसके लिए हमने किसी से कोई चंदा नहीं लिया। यदि किसी के पास कोई प्रमाण हो तो वह दे सकता है। इसके पश्चात जब ये मामला हिन्दुओं के पक्ष में कमजोर पड़ने लगा और लगा कि मुसलमान केस जीत सकते हैं तो हमने राम जन्म भूमि पुनरुद्धार समिति का निर्माण कराया और इसे रजिस्टर्ड करवाया और इस मामले में पैरवी की। हमारी पैरवी के बाद ही ये निश्चय हुआ कि ये जगह श्री राम की जन्म भूमि है।

चंदन का आसन

अब इसके बाद आप ये कैसे कह सकते हैं कि हमने कोई गलती की। जहां तक सोने-चांदी की बात है तो लोग हमारे चरणों में वैसे ही चढ़ाते हैं। हमने राम मंदिर के नाम पर किसी से कुछ मांगा हो तो वह बताए। अगर हमारे पास कोई सोना है चांदी है और वह हम भगवान को अर्पित करना चाहते हैं तो इसमें कौन बोल सकता है। हम भगवान के लिए ही तो अर्पित कर रहे हैं। हमने चंदन की आसन बनाई है। पहले ये सुना जा रहा था कि कांच के भीतर रामलला को रखा जाएगा ऐसा नहीं करना चाहिए। हमने चंदन का सिंहासन बनाकर उसे सोने से मढ़वाया है।

जन्म भूमि कहां,ये हमारे पक्ष से सिद्ध हुआ

शंकराचार्य जी ने कहा कि ये बात सत्य है कि राम जन्म भूमि में कौनसा स्थान जन्म भूमि है यह सिद्ध करने में हमारा ही प्रमुख योगदान रहा है। ऐसी स्थिति में क्या कारण था कि रामजन्म भूमि के संबंध में हमसे कुछ नहीं पूछा गया। क्या सब बेईमान हैं,श्रृंगेरी के शंकराचार्य, पुरी के शंकराचार्य किसी से नहीं पूछा गया। इसके बाद आप जो काम कर रहे हैं उसे शास्त्रोक्त विधान से किया जाना चाहिए। शास्त्रोक्त विधान से नहीं होने पर जब हम यह कह रहे हैं तो इसके लिए हमें अपशब्द कहे जा रहे हैं। आप कहिये हमें इसके लिए कोई ग्लानि नहीं है,और इसके बाद भी जो भी आपको शंका हो उसके बारे में हमसे पूछा जा सकता है।

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पीएम ने गिराई पद की प्रतिष्ठा

 यह भी कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री ने श्री राम जन्मभूमि ट्रस्ट का निर्माण सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर किया है। हमारा प्रश्न यह है कि जब कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री हो जाता है उसकी नजर में कोई पार्टी नहीं रहती,लेकिन प्रधानमंत्री ने जो ट्रस्ट बनाया है। उसमें केवल विश्व हिन्दू  परिषद या भाजपा के लोगों को ही लिया है। इसमें जिन्होंने मंदिर तोड़ा था या जिनके ऊपर मामला दर्ज है उन तक को बुलाया जा रहा है। यहां तक कि प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री पद का जो व्यापक स्वरूप है उसे कम किया है।

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