पद्मश्री से सम्मानित हुए बिहार के गांधीवादी विचारक प्रो. रामजी सिंह

बिहार के प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक और प्रख्यात समाजसेवी प्रो. रामजी सिंह और पीरपैंती के डॉ. दिलीप सिंह को मिला पद्मश्री सम्मान

भागलपुर के प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक और प्रख्यात समाजसेवी प्रो. रामजी सिंह समेत बिहार से सात हस्तियों को पद्मश्री 2020 से सम्मानित करने की घोषणा की गई। घोषणा के बाद जब उनसे बात की गई और भागलपुर के बारे में पूछे जाने पर प्रो. रामजी सिंह भावुक हो उठे और उन्होंने कहा- नमन तुझे मेरा शतबार।

उन्होंने कहा कि यह पुरस्कार उन्हें नहीं बल्कि समाज के लिए काम करने वालों को समर्पित है। वह मानते हैं कि इस पुरस्कार के हकदार वे लोग हैं, जो ज्यादा पढ़े-लिखे हैं और ज्यादा योग्य हैं।

भागलपुर कर्मक्षेत्र

प्रो. रामजी सिंह ने कहा कि वह आज भी मूल रूप से शिक्षक हैं। अंगिका को नवम अनुसूचि में शामिल कराने के लिए वह लोकसभा में बिल भी लाए थे। वह 1993 में शिकागों में आयोजित हुए विश्व धर्म संसद में जैनिज्म पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने भागलपुर को अपना कर्मक्षेत्र बताया। पहली बार टीएमबीयू में गांधी विचार विभाग की स्थापना की।

महात्मा बुद्ध, महावीर या यागवल्क्य, महात्मा गांधी, विनोवा भावे, जयप्रकाश नारायण के विचारों का डॉ. सिंह पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने बताया कि जयप्रकाश नारायण के साथ भी उन्होंने काम किया। उन्होंने यह भी कहा कि उनके संपूर्ण क्रांति में मुझे महती जिम्मेदारी दी गई थी। उन्होंने बताया कि इमरजेंसी के दौरान वह जेल में भी रहे।

बताया कि पहली बार उन्होंने गांधी विचार विभाग की स्थापना टीएमबीयू में की, जो एशिका का पहला केन्द्र रहा है। लेकिन आज 25 विश्वविद्यालयों में गांधी विचार विभाग की पढ़ाई हो रही है। वह सर्वोदय में लगे रहे। अकाल के दौरान जयप्रकाश नारायण ने भागलपुर का जिम्मा उन्हें दिया था। हिन्दू-मुस्लिम एकता में उन्होंने शांति का कार्य किया है। उन्होंने कहा कि वह लोकसभा चुनाव में भागवत झा आजाद को एक लाख 86 हजार वोट से हराए तो थे लेकिन वह उन्हें प्रणाम करते हैं।

डॉ. रामजी सिंह ने बताया कि शाम पांच बजे पटना में अपने बेटे के घर पर बैठे थे। इसी दौरान गृह सचिव का उन्हें फोन आया और इस सम्मान की घोषणा की गई। लेकिन उसके बाद भी रामजी सिंह ने किसी से कुछ नहीं कहा और अपने दैनिक कार्य में लगे रहे। रात में नौ बजे जब टेलीविजन पर उनकी पुत्रवधु ने समाचार देखा तो उन्हें जानकारी देते हुए बधाई दी।

डॉ. रामजी सिंह ने बताया कि शाम पांच बजे पटना में अपने बेटे के घर पर बैठे थे। इसी दौरान गृह सचिव का उन्हें फोन आया और इस सम्मान की घोषणा की गई। लेकिन उसके बाद भी रामजी सिंह ने किसी से कुछ नहीं कहा और अपने दैनिक कार्य में लगे रहे। रात में नौ बजे जब टेलीविजन पर उनकी पुत्रवधु ने समाचार देखा तो उन्हें जानकारी देते हुए बधाई दी। इस पर उन्होंने कहा कि यह जानकारी उन्हें शाम को ही मिल गई थी। उन्होंने कहा कि इसमें मुझे कुछ अद्वितीय नहीं लगा। कहा कि वह इस पुरस्कार का आदर करते हैं। उन्होंने इस सम्मान के लिए राष्ट्रपति के प्रति कृतज्ञता जाहिर की।

प्रारंभिक शिक्षा मुंगेर स्थित गांव में हुई थी

डॉ. रामजी सिंह की प्रारंभिक शिक्षा मुंगेर स्थित गांव से ही हुई। मैट्रिक भी उन्होंने जमालपुर स्थित आरडीएचई स्कूल से की। इंटर और स्नातक आरडी एंड डीजे स्कूल से की। पटना विश्वविद्यालय से फिलॉस्फी में स्नातकोत्तर की। उन्होंने बताया कि वह चार विषयों में डिलिट् हैं। पीएचडी जैनिज्म में की। हिन्दुइज्म और गांधीइज्म में डीलिट की। उन्हें एक डिलीट की उपाधि ऑनरेरी भी दी गई। वह गांधीवादी अध्ययन संस्थान, वाराणसी के निदेशक भी थे।

उन्होंने 20वीं सदी के महात्मा गांधी को बोधिसत्व घोषित किया है। उन्होंने बताया कि उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी में पांच दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखी हैं जिसमें अधिकतर गांधी विचार, संस्कृति और दर्शनशास्त्र पर हैं। राजनेता गिरिजा व्यास ने उनके अंडर में ही पीएचडी की थी। उन्होंने याद ताजा करते हुए कहा कि वह टीएमबीयू में 1962 में फिलॉस्फी के शिक्षक बने और फिर राजस्थान स्थित जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के कुलपति रहे।

पुड़िया में दवा देने वाले पीरपैंती के डॉ. दिलीप कुमार सिंह को पद्मश्री

पीरपैंती के रहने वाले 92 साल के डॉ. दिलीप कुमार सिंह को सोमवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मश्री से सम्मानित किया। उनका जन्म 26 जून 1926 को बांका में हुआ था।

पीरपैंती के रहने वाले 92 साल के डॉ. दिलीप कुमार सिंह को सोमवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मश्री से सम्मानित किया। उनका जन्म 26 जून 1926 को बांका में हुआ था। उन्होंने 1952 में पटना मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद आगे की पढ़ाई करने के लिए वह अमेरिका गए। न्यूयॉर्क के माउंट वर्नन में पढ़ाई की, फिर कनाडा में पढ़ाई की।

वहां नौकरी भी की लेकिन वहां उनका मन नहीं लगा। इसके बाद देश की सेवा करने के जज्बे ने उन्हें वहां से लौटने के लिए मजबूर कर दिया। इसके बाद उन्होंने गांव के गरीब लोगों का इलाज करना शुरू किया। डॉ. दिलीप सिंह जाने-माने फिजीशियन हैं। वह दवा लिखते नहीं हैं, बल्कि पुड़िया में देते हैं। चिकित्सा सेवा उन्हें विरासत में मिली। उनके पिता डॉ. यमुना प्रसाद सिंह भी चिकित्सक थे।

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