युवा पीढ़ी को ‘गूंगा’ होने से बचाएं
नयी शिक्षा नीति
भारत सरकार की नयी शिक्षा नीति को लागू करने में मध्यप्रदेश पहला राज्य बन गया है. वर्ष 2021-22 से मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा संस्थानों में नवीन शिक्षा योजना को नये पाठ्यक्रम के साथ लागू किया गया है. आज शिक्षा जैसा महत्वपूर्ण विषय ‘प्रयोगों का कुरुक्षेत्र’ बन गया है.
डॉ.पुष्पेंद्र दुबे
भारत की प्राचीन और मध्यकालीन संस्कृति का अवलोकन करने पर पाते हैं कि शिक्षा कभी भी राज्य का विषय नहीं रही है. ‘शासन मुक्त शिक्षण’ के कारण ही भारत विश्व गुरु कहलाने का अधिकारी बना. भारत की आजादी के बाद से भारतीय भाषाओं की निरंतर उपेक्षा की जाती रही है. यह उपेक्षा मध्यप्रदेश की नयी शिक्षा नीति में भी परिलक्षित हो रही है. अन्य प्रदेश भी अपने यहां इसी शिक्षा नीति का अनुसरण करें, यह संभव है.
नयी शिक्षा नीति ने राष्ट्रभाषा हिंदी के सामने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अस्तित्व का संकट उपस्थित कर दिया है. ऐसा ही प्रांतीय भाषाओं के साथ हो तो क्या आश्चर्य है. मध्यप्रदेश में उच्च शिक्षा में एकीकृत पाठ्यक्रम के अंतर्गत आधारभूत पाठ्यक्रम संचालित होता है.
पूर्व में इस पाठ्यक्रम में स्नातक स्तर पर विद्यार्थी को हिंदी और अंग्रेजी भाषा के साथ उद्यमिता विकास, पर्यावरण अध्ययन और कम्प्यूटर के अनुप्रयोग विषय का अध्ययन करना अनिवार्य था. विद्यार्थियों में भारतीय सभ्यता और संस्कृति के प्रति रुचि विकसित करने के साथ उनमें संप्रेषण कौशल बढ़ाना इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य था.
इन विषयों के प्रश्नपत्र वर्णनात्मक होते थे. विद्यार्थियों को इसका लाभ प्रदेश सरकार द्वारा आयोजित की जाने वाली विभिन्न प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं में स्वतः मिल जाता था.
राज्य लोक सेवा आयोग की मुख्य परीक्षा में हिंदी अनिवार्य विषय के रूप में शामिल है और उम्मीदवार को मनोवांछित पद प्राप्त करने में हिंदी के अंकों की भूमिका महत्वपूर्ण है.
हाल ही में मध्यप्रदेश में लागू की गयी नयी शिक्षा नीति में आधारभूत पाठ्यक्रम में शामिल हिंदी और अंग्रेजी भाषा के पाठ्यक्रम को बदलने के साथ इसकी परीक्षा योजना में भी हास्यास्पद परिवर्तन कर दिया गया है.
प्रदेश के विद्यार्थी भाषायी कमजोरी के चलते संप्रेषण कौशल में पिछड़ने के कारण बेरोजगारी से जूझ रहे हैं. उच्च शिक्षा संस्थानों में कैम्पस प्लेसमेंट के दौरान कंपनियों की ओर से अनेक बार यह बात रेखांकित की गयी है कि प्रदेश के विद्यार्थियों का भाषा पर पूर्ण अधिकार नहीं है. अंग्रेजी भाषा तो जानते ही नहीं हैं, उन्हें हिंदी भाषा भी ठीक से नहीं आती है. इस तथ्य को जानने के बावजूद प्रदेश सरकार ने स्नातक स्तर पर लागू भाषा के पाठ्यक्रम की परीक्षा योजना को वस्तुनिष्ठ प्रकार में बदल दिया है.
इस वस्तुनिष्ठ परीक्षा योजना में पचास प्रश्न हिंदी भाषा के और पचास प्रश्न अंग्रेजी भाषा के होंगे. बहुविकल्प प्रणाली पर आधारित परीक्षा में विद्यार्थियों के भाषा कौशल का परीक्षण किस प्रकार किया जा सकता है?
इस परीक्षा प्रणाली से समाज भाषा विहीन हो जाएगा. जिस समाज के पास स्वयं को अभिव्यक्त करने के लिए उपयुक्त शब्द और भाषा नहीं होती, वह समाज गुलामी की जंजीरों में जकड़ जाता है. युवा पीढ़ी को भाषा से वंचित कर उन्हें अपने देश और संस्कृति से दूर करने का प्रयास किया जा रहा है. भाषा जैसे महत्वपूर्ण विषय पर संस्कृति रक्षकों का मौन रहना आश्चर्यजनक है.
विभिन्न जनसंचार माध्यमों पर इस बारे में कोई चिंता व्यक्त नहीं की जा रही है. बुद्धिजीवियों द्वारा खानापूर्ति करने के लिए वक्तव्य दिए जा रहे हैं. शिक्षा और संस्कृति का उत्थान बिना भाषा के कैसे संभव है? एक ओर नयी शिक्षा नीति में इतिहास विषय के प्रथम प्रश्नपत्र में भारत की गौरवमयी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परंपरा को शामिल किया गया है तो दूसरी ओर भाषा के प्रश्नपत्र को वस्तुनिष्ठ बना दिया गया है.
जब युवा पीढ़ी के पास अपनी भाषा ही नहीं होगी, तब वह भारतीय संस्कृति का गौरवगान किस भाषा में करेगी? नयी शिक्षा नीति में भाषा के प्रश्नपत्र को वर्णनात्मक करने की आवश्यकता है, जिससे युवा पीढ़ी को ‘गूंगा’ होने से बचाया जा सके.