राष्ट्रीय शिक्षा नीति –2020 में बहुसंकायी शिक्षा

मल्टी डिसप्लनरी एजुकेशन का क्रान्तिदर्शी प्रस्ताव --कितना व्यावहारिक कितना सैद्धांतिक --एक अनुशीलन

 

चंद्रविजय चतुर्वेदी
डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज

ज्ञान के परिदृश्य में आज पूरा विश्व बहुत तेजी से परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। बिग डेटा ,मशीन लर्निंग ,और आर्टिफिशियल इंटिलिजेंस जैसे क्षेत्रों में हो रहे बहुत से तकनीकी विकास के चलते एक ओर विश्व भर में अकुशल कामगारों की जगह कुशल कामगारों की मांग बढ़ रही है तो दूसरी ओर हर क्षेत्र –समाजविज्ञान ,मानविकी ,विज्ञान ,प्रबंधन ,चिकित्सा तथा तकनीकी आदि क्षेत्रों में अति विशिष्ट ज्ञान से युक्त विशेषज्ञों की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। ऐसी स्थिति में भारत को ज्ञान आधारित महाशक्ति बनाने के लिए कृतसंकल्पित नई शिक्षा नीति –2020 तमाम क्रान्तिदर्शी प्रस्तावों चिन्तनो के साथ प्रख्यापित की गई इस रूप में की न भूतो न भविष्यत्। 

    हर शिक्षा नीति नई ही होती है। 1964 -1966 में कोठरी आयोग ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को समग्रता के साथ विस्तृत कार्ययोजना के साथ प्रस्तुत किया था ,इसकी बहुत सारी उपयोगी संस्तुतियां आज भी कोरी की कोरी हैं जिसमे बहुसंकायी शिक्षा –मल्टी डिस्पलेनरी एजुकेशन की अवधारणा भी है जिसे नई शिक्षानीति –20 में विसंकायीकरण या डिफैक्ल्टाइजेशन के रूप में प्रस्तावित किया गया है और उच्चतर शिक्षा को लचीला बनाने के उदेश्य से विश्वविद्यालयों महाविद्यालयों में छात्रों के लिए एक क्रन्तिकारी कार्यक्रम लागू किया जाना प्रस्तावित है जिसे मल्टिपल एंट्री एक्जिट सिस्टम कहा गया है। 

संकायों की दीवारें नहीं रह जाएंगी

इस क्रन्तिकारी कार्यक्रम का तात्पर्य है कि इंटर स्तर से ही अब कला विज्ञान वाणिज्य जैसे संकायों की दीवारें नहीं रह जाएंगी। भौतिकी के साथ इतिहास पढ़ा जा सकेगा ,गणित के साथ फैशन डिजाइनिंग के अध्ययन की सुविधा मिल सकेगी। आगे स्नातक स्तर पर भी शैक्षिक कार्यक्रम बहुविषयक होंगे –कला ,विज्ञान ,वाणिज्य संकायों के बीच कोई अलगाव नहीं होगा। इसके मूल में बहु -अनुशासनात्मक और एकीकृत दृष्टिकोण की परिकल्पना है परन्तु इसके साथ यह भी सोचने की बात है भौतिकी के साथ गणित पढ़ना क्यों आवश्यक है तथा जीवविज्ञान के साथ रसायनविज्ञान के अध्ययन की अनिवार्यता है या नहीं। 

 यह आम धारणा है की उच्चतर शिक्षा की स्थिति बहुत असंतोषजनक है। द्रुत विकास के फलस्वरूप गुणात्मकता में ह्रास हुआ है। विश्वविद्यालय ऐसे बौद्धिक समाज के निर्माण में सफल नहीं हो पाए जिससे देश की राष्ट्रीय चेतना का संवर्धन हो सके। इस सत्य से इंकार नहीं किया जा सकता की उच्चतर शिक्षा वस्तुतत्व और गुणतत्व दोनों ही दृष्टियों से हमारी वर्तमान आवश्यकताओं और अपेक्षाओं के सन्दर्भ में अपर्याप्त हैं।

सबसे बड़ी कठिनाई यह है की हम  किसी भी शिक्षानीति को यथार्थनिष्ठ और कारगर स्वरूप में परिणित नहीं कर सके। विश्वविद्यालयों में शिक्षाव्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिससे जो विद्यार्थी निकले उसे भारत के सांस्कृतिक दाय का ,कला ,दर्शन ,विज्ञानं आदि के क्षेत्र की उपलब्धियों का थोड़ा बहुत ज्ञान अवश्य हो।

विद्यार्थी को पता होना चाहिए की वह किस चीज का उत्तराधिकारी है और उसे अपनी शिक्षा से देश समाज के लिए क्या करना है और कैसे करना है। क्या हम छात्र और समाज जो चाहता है उसी के अनुरूप शिक्षानीति बनाकर उसका क्रियान्वयन करेंगे या व्यापक परिप्रेक्ष्य में छात्र और समाज के लिए जो उपयुक्त है उसके अनुरूप शिक्षा के परिवर्तन के अर्थ को परिभाषित करेंगे ?

नई शिक्षानीति -20 में निरंतर इस बात पर बल दिया गया है की यह शिक्षानीति छात्रकेन्द्रित है। शिक्षा मानव के समग्र विकास का कारक है ,एक व्यापक तत्व है इसका उदेश्य विराट रखना होगा ,इसे छात्र ,समाज और देश केंद्रित बनाना होगा। मात्र छात्र केंद्रित रखने पर छात्र वह संस्थान तलाश करेंगे जिसके विषय की दक्षता प्राप्त कर उसे अधिक से अधिक दाम पर प्लेशमेंट की गारंटी हो। शिक्षाविदों को इस पर गहन मंथन की आवश्यकता है।

बहु विषयक शिक्षा व्यवस्था

बहु विषयक शिक्षा व्यवस्था को मूर्त रूप देने के लिए यूजीसी द्वारा एक रेगुलेशन का ड्राफ्ट निर्गत किया गया है ,जिसका शीर्षक है –यूजीसी –इस्टेब्लिशमेंट एंड आपरेशनलिजेशन ऑफ़ एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट –एबीसी ABC स्कीम इन हायर एजुकेशन रेगुलेशन 2021 –इस रेगुलेशन में एबीसी एक ऐसा प्राविधान होगा जिससे उच्चतर शिक्षा के पाठ्यक्रम संरचना ,नवाचार ,और संकायों में अंतरपरिवर्तन के फलस्वरूप अध्ययन के क्षेत्र में –सर्टिफिकेट कोर्स ,डिप्लोमा कोर्स ,और डिग्री कोर्स को अर्थपूर्ण बनाया जा सकेगा। 

 उल्लेखनीय है की नई शिक्षानीति की मल्टिपल ऐन्ट्री एक्जिट सिस्टम में स्नातक कक्षा में प्रवेश के बाद यदि एक वर्ष बाद छात्र अध्ययन बंद कर दे तो उसे सर्टिफिकेट दिया जाएगा ,दो साल बाद बंद करने पर डिप्लोमा और तीन साल में स्नातक डिग्री लेकर नौकरी तलाश करेगा। यदि वह शोध की इच्छा रखता है तो स्नातक चतुर्थ वर्ष में प्रवेश लेगा और उसके बाद एक वर्ष की स्नातकोत्तर डिग्री लेकर डॉक्टरेट में प्रवेश ले सकेगा।

वस्तुतः यह अमेरिकी शिक्षा पद्धति की ओर ले जा रहा है जहाँ शिक्षा एक कमोडिटी और व्यवसाय है। इस व्यवस्था में स्नातक कोर्स में प्रथम वर्ष में विज्ञानं के भौतिकी के साथ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन और साहित्य का विषय ले सकता है। क्रेडिट की विधि द्वारा परीक्षा प्रणाली में भी आमूल चूल परिवर्तन प्रस्तावित है जिसमे लैब वर्क ,ट्यूटोरियल और प्रोजेक्ट आदि के मार्क्स केडिट किये जाएंगे जिस संकाय के विषय में क्रेडिट साठ प्रतिशत से अधिक होगा उसी की डिग्री बीए ,बीएससी ,बीकॉम के रूप में मिलेगी अन्यथा वह बी यल ई -बेचलर ऑफ लिबरल एजुकेशन की डिग्री प्राप्त कर पायेगा। 

 कोठरी आयोग ने भी पाठ्यक्रमों के संगठन में लचीलेपन और नव्यता की सिफारिश की थी –आयोग की रिपोर्ट पैरा -12 ,44 से 12 ,47 जिसमे इस बात पर बल दिया गया था की स्नातकोत्तर स्तर पर एक विषय पाठ्यक्रम के साथ समुच्चय विषय के पाठ्यक्रम जोड़े जाएँ। पाठ्यक्रमों के एकरूपता को तोड़े जाने के लिए पहले किसी एक विश्वविद्यालय में इसका प्रयोग आपेक्षित है। 

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