यूपी चुनाव मैदान से ग़ायब हैं मायावती

सुषमाश्री

पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती चुनाव मैदान से ग़ायब हैं, जबकि दूसरी ओर यूपी विधानसभा चुनावों को लेकर प्रदेश की सभी छोटी बड़ी पार्टियां मैदान में उतर चुकी हैं । ऐसे में उसकी दोनों मुख्य प्रतिद्वं​द्वी पार्टियां, भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी, उनके वोटरों को लुभाने की कोशिश में जुटी हुई हैं।

चार बार यूपी की मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती के एक्शन में न होने से राजनीतिक गलियारे में अलग अलग तरह की बातों को हवा दी जा रही है।

बता दें कि पिछली बार मायावती को 23 दिसंबर को राजधानी लखनऊ स्थित पार्टी दफ्तर में एक प्रेस कांफ्रेंस में देखा गया था। उनकी पार्टी को अब तक अपनी सुप्रीमो की ओर से चुनावी रणभेरी बजाने का इंतजार है।

विधानसभा चुनाव को लेकर सुस्त पड़ीं मायावती की पार्टी के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने टाइम्स आफ इंडिया से कहा कि पिछली बार उन्होंने दो जनसभाएं की थीं, पहली 7 सितंबर को और दूसरी 9 अक्टूबर को।

उन्होंने आगे बताया कि बहनजी मायावती को 18 घंटे काम करने की आदत है। वह हमेशा से टॉप से लेकर बूथ लेवल तक हर काम की देखरेख खुद करती रही हैं। वे जुलाई से ही जनता के बीच जाकर रैलियां कर रही हैं और अब तक प्रदेश के हर जिले का दौरा कर चुकी हैं।

2014 के लोकसभा चुनावों में तो बीजेपी ने राष्ट्रीय स्तर पर दलितों को लुभाने की पूरी तैयारी की हुई थी, जिसे यूपी में अब तक बसपा का कोर वोटर माना जाता रहा है। लेकिन इस बार यूपी में मायावती के अब तक शांत पड़े रहने के बाद सपा ने भी दलितों, खासकर अनुसूचित जाति के लोगों को, लुभाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं, जिन्हें संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर के पदचिह्नों पर चलने वाला माना जाता है।

28 सितंबर को उन्नाव में एक जनरैली को संबोधित करते हुये सपा प्रमुख ​अखिलेश यादव ने कहा कि प्रदेश से योगी आदित्यनाथ की सरकार उखाड़ फेंकने के लिये हम समाजवादियों और अं​बेडकरवादियों को एक साथ आगे आना चाहिए।

अखिलेश यादव ने कहा, बीजेपी की सरकार झूठी है और झूठे वायदे करती है। सत्ता पाने से पहले उसने वायदा किया था कि एक भी सरकारी प्रॉपर्टी को बिकने नहीं देगी, लेकिन सत्ता ​में आते ही उसने हवाई जहाज, पानी का जहाज, रेल यहां तक कि रेलवे स्टेशनों को भी निजी हाथों को बेच दिया है। बीजेपी की सरकार फेकू सरकार से अब बेचू सरकार बन चुकी है। अगर सब कुछ बेच दिया गया तो बाबा अंबेडकर का सपना कभी पूरा नहीं हो सकेगा। इसलिये इस ‘सांड सरकार’ को उखाड़ फेंकने के लिये हम समाजवादियों और अंबेडकरवादियों को मिलकर आगे आना ही होगा।

दरअसल, बीजेपी और एसपी, दोनों ही पार्टियां 22-23 प्रतिशत दलित वोट अपने खेमे में लाने का यह सुनहरा मौका गंवाना नहीं चाहते 2012 का चुनाव सपा ने जीता था, तब भी उसने बीएसपी के वोट अपने खाते में डाल लिये थे। वहीं, बीजेपी ने 2017 का चुनाव सपा और बसपा, दोनों ही पार्टियों के वोट झपटकर जबरदस्त जीत हासिल की थी। वहीं, 2007 में 403 में से 206 सीटें जीतकर बसपा सुप्रीमो मायावती ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। तब उनका वोटिंग प्रतिशत भी जबरदस्त 30.43 था।

2012 में अखिलेश ने उन्हें 29.13 प्रतिशत वोटिंग प्रतिशत के साथ 224 सीटें अपने नाम करके हरा दिया था। तब बसपा का वोटिंग प्रतिशत गिरकर 25.91 हो गया था और सीटें महज 80 रह गई थीं।

2012 में अखिलेश ने उन्हें 29.13 प्रतिशत वोटिंग प्रतिशत के साथ 224 सीटें अपने नाम करके हरा दिया था। तब बसपा का वोटिंग प्रतिशत गिरकर 25.91 हो गया था और सीटें महज 80 रह गई थीं।

2017 में सपा और बसपा, दोनों के ही वोटर्स को अपनी ओर खींचकर बीजेपी ने 39.67 मत प्रतिशत के साथ कुल 312 सीटों पर विजय पाई थी। तब सपा का वोटिंग प्रतिशत गिरकर 21.82 और बसपा का गिरकर 22.23 रह गया था।

2014 के चुनाव की बात करें तो तब बीजेपी ने सपा से ज्यादा बसपा के खेमे में सेंध मारी थी और उसे नुकसान पहुंचाया था। 2009 लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत 17.5 था जबकि बसपा का 27.42 और सपा का 23.26 प्रतिशत।

2014 के चुनाव में बीजेपी ने छलांग लगाकर 42.63 प्रतिशत वोट अपने नाम कर लिये जबकि बसपा का वोटिंग प्रतिशत फिसलकर 19.77 रह गया। वहीं, तब सपा 22.35 प्रतिशत वोट अपने खाते में ला पाई।

अब हालात ये हैं कि आने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर सुस्त​ दिख रहीं मायावती के इन्हीं 22 से 23 प्रतिशत वोटर्स को बीजेपी और सपा, दोनों ही पार्टियां लपककर अपने साथ कर लेने में लग गई हैं।

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