ॠजु-बुद्धि का अधिकारी
गीता प्रवचन – विनोबा – पहला अध्याय
आगे की सारी गीता समझने के लिए अर्जुनकी यह भूमिका हमारे बहुत काम आती है, इसलिए तो हम उसका आभार मानेंगे ही; परंतु इसका और भी एक उपकार है।
अर्जुन की इस भूमिका में उसके मन की अत्यंत ॠजुता का पता चलता है ।
खुद ‘अर्जुन’ शब्द का अर्थ ही ‘ॠजु’ अथवा ‘सरल स्वभाव वाला’ है ।
उसके मन में जो कुछ भी विकार या विचार आये, वे सब उसने खुले मन से भगवान् के सामने रख दिये ।
मन में कुछ भी छिपा नहीं रखा और वह अंतमें श्रीकृष्ण की शरण गया। सच पूछिए तो वह पहले से ही कृष्ण-शरण था।
कृष्ण को सारथी बनाकर जब से उसने अपने घोड़ो की लगाम उसके हाथों में पकड़ायी, तभीसे उसने अपने मनोवृत्तियों की लगाम भी उनके हाथों में सौंप देने की तैयारी कर ली थी।
आइए, हम भी ऐसा ही करें। ‘अर्जुन के पास तो कृष्ण थे, हमें कृष्ण कहाँ से मिलेंगे ?’ ऐसा हम न कहें।
‘कृष्ण’ नामक कोई व्यक्ति है, ऐसी ऐतहासिक उर्फ़ भ्रामक धारणा में हम न पड़ें।
अंतर्यामी के रूप में कृष्ण प्रत्येक के हृदय में विराजमान हैं। हमारे निकट से निकट वे ही हैं।
तो हम अपने हृदयका सब मेल उनके सामने प्रकट करें और उनसे कहें – “भगवन् ! मैं तेरी शरण में हूँ तू मेरा अनन्य गुरु है। मुझे उचित मार्ग दिखा। जो मार्ग तू दिखायेगा, मैं उसी पर चलूँगा।”
यदि हम ऐसा करेंगे, तो वह पार्थ-सारथि हमारा भी सारथ्य करेगा, अपने श्रीमुख से हमें गीता सुनायेगा और हमें विजय-लाभ करा देगा | क्रमश: