सरकार पर फूटा पत्रकारों का गुस्सा, ममता बनर्जी समेत कई नेताओं का मिला समर्थन

वक्ताओं का कहना था कि कोविड के नाम पर सरकार पत्रकारों के संसद में प्रवेश पर रोक लगा रही है ताकि विपक्ष की खबरें न आयें और केवल सरकारी खबरें आएं।

संसद भवन में पत्रकारों के प्रवेश पर रोक को लेकर आज राजधानी दिल्ली की सड़कों पर पत्रकारों का आक्रोश देखने को मिला। देशभर के जाने माने प्रिंट और टीवी मीडिया से लेकर फोटो पत्रकारों तक ने आज सरकार के खिलाफ संसद तक पैदल मार्च निकाला।

पत्रकारों ने कहा कि स्वतंत्र मीडिया के बिना लोकतंत्र संभव नहीं है इसलिए संसद भवन में पत्रकारों की एंट्री सुनिश्चित की जाए। संसद मार्च से पहले पत्रकारों ने प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के दफ्तर में बैठक बुलाई थी। इस दौरान प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, प्रेस एसोसिएशन, इंडियन वोमेन्स प्रेस कोर, दिल्ली पत्रकार संघ और वर्किंग न्यूज़ कैमरामैन एसोसिएशन के पदाधिकारी भी इसमें शामिल हुए।

बैठक के बाद सैंकड़ों की संख्या में पत्रकारों ने हाथों में तख्तियां लेकर संसद भवन की ओर कूच किया। पत्रकारों ने बताया कि हम लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा के सभापति वैंकेया नायडू को इस संबंध में ज्ञापण सौंपेंगे।

संसद में प्रवेश पर रोक लगाने के खिलाफ पत्रकारों का गुस्सा आज सरकार पर फूटा। राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी आदि के बाद आज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने किया पत्रकारों का समर्थन।

संसद में प्रवेश पर रोक लगाने के खिलाफ पत्रकारों का गुस्सा आज सरकार पर फूटा। राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी आदि के बाद आज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने किया पत्रकारों का समर्थन।

सैकड़ों पत्रकारों ने आज यहां सरकार के तानाशाही रवैये के खिलाफ संसद तक मार्च किया। इससे पहले पत्रकारों ने प्रेस क्लब के भीतर एक सम्मेलन भी किया, जिसमें प्रेस एसोसिएशन के अध्यक्ष जयशंकर गुप्त एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के महासचिव संजय कपूर वरिष्ठ पत्रकार सतीश जैकब, राजदीप सरदेसाई, आशुतोष, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा, महासचिव विनय कुमार, भारतीय महिला प्रेस कोर की विनीता पांडेय, दिल्ली पत्रकार संघ के एस के पांडे आदि ने सरकार के इस रवैये की तीखी आलोचना की और किसान आंदोलन की तरह पत्रकारों का आंदोलन छेड़ने का आह्वान किया।

राष्ट्रपति को लिखा पत्र

सैकड़ों पत्रकारों ने आज यहां सरकार के तानाशाही रवैये के खिलाफ संसद तक मार्च किया। इससे पहले पत्रकारों ने प्रेस क्लब के भीतर एक सम्मेलन भी किया, जिसमें प्रेस एसोसिएशन के अध्यक्ष जयशंकर गुप्त एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के महासचिव संजय कपूर वरिष्ठ पत्रकार सतीश जैकब, राजदीप सरदेसाई, आशुतोष, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा, महासचिव विनय कुमार, भारतीय महिला प्रेस कोर की विनीता पांडेय, दिल्ली पत्रकार संघ के एस के पांडे आदि ने सरकार के इस रवैये की तीखी आलोचना की और किसान आंदोलन की तरह पत्रकारों का आंदोलन छेड़ने का आह्वान किया।

वक्ताओं का कहना था कि कोविड के नाम पर सरकार पत्रकारों के संसद में प्रवेश पर रोक लगा रही है ताकि विपक्ष की खबरें न आयें और केवल सरकारी खबरें आएं।

वक्ताओं का कहना था कि कोविड के नाम पर सरकार पत्रकारों के संसद में प्रवेश पर रोक लगा रही है ताकि विपक्ष की खबरें न आयें और केवल सरकारी खबरें आएं। उनका कहना था कि पहले सरकार ने सेंट्रल हॉल का पास बन्द किया ताकि पत्रकार, सांसदों, नेताओं से मिलकर सरकार विरोधी खबर न दे सकें।

वक्ताओं ने कहा कि अब वे पत्रकारों को पहले की तरह प्रवेश नहीं दे रहे, जबकि सांसद और संसद के कर्मचारी आ रहे हैं। एक तरफ तो सरकार ने सिनेमा हॉल, रेस्तरां, मॉल खोल दिये, लेकिन दूसरी तरफ पत्रकारों पर रोक क्यों। गिने चुने पत्रकार कोरोना का टेस्ट कराकर जा रहे हैं तो सबको प्रवेश क्यों नहीं?

वक्ताओं ने कहा कि अब वे पत्रकारों को पहले की तरह प्रवेश नहीं दे रहे, जबकि सांसद और संसद के कर्मचारी आ रहे हैं। एक तरफ तो सरकार ने सिनेमा हॉल, रेस्तरां, मॉल खोल दिये, लेकिन दूसरी तरफ पत्रकारों पर रोक क्यों। गिने चुने पत्रकार कोरोना का टेस्ट कराकर जा रहे हैं तो सबको प्रवेश क्यों नहीं?

वक्ताओं का कहना था कि लोकसभा और राज्यसभा की दर्शक दीर्घा, राजनयिक दीर्घा और सभापति तथा अध्यक्ष की दीर्घाएँ खाली हैं तो वहां पत्रकारों को बिठाया जा सकता है, लेकिन सरकार की मंशा कुछ और है।

वक्ताओं का कहना था कि लोकसभा और राज्यसभा की दर्शक दीर्घा, राजनयिक दीर्घा और सभापति तथा अध्यक्ष की दीर्घाएँ खाली हैं तो वहां पत्रकारों को बिठाया जा सकता है, लेकिन सरकार की मंशा कुछ और है।

सरकार ने पहले ही पीटीआई, यूएनआई की सेवा बंद कर रखी है। उसे केवल सरकारी खबरें चाहिए इसलिए पत्रकारों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई। इतना ही नहीं, प्रेस सूचना कार्यलय द्वारा पत्रकारों के कार्ड का नवीनीकरण नहीं हो रहा है।

सरकार ने पहले ही पीटीआई, यूएनआई की सेवा बंद कर रखी है। उसे केवल सरकारी खबरें चाहिए इसलिए पत्रकारों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई। इतना ही नहीं, प्रेस सूचना कार्यलय द्वारा पत्रकारों के कार्ड का नवीनीकरण नहीं हो रहा है।

पत्रकारों ने सभा के अंत में एक प्रस्ताव भी पारित किया, जिसमें इस लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने तक लड़ने की सबसे अपील की गई।

पत्रकारों का कहना था कि यह केवल संसद में प्रवेश की लड़ाई नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई है क्योंकि बिना मीडिया के लोकतंत्र जिंदा नहीं रह सकता।

देश के जाने माने संपादक, पत्रकार, फोटो जर्नलिस्ट और संसद के दोनों सदनों को कवर करने वाले रिपोर्टर अपनी मांगों को लेकर दोपहर एक बजे प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एकत्र हुए।

इससे पहले देश के जाने माने संपादक, पत्रकार, फोटो जर्नलिस्ट और संसद के दोनों सदनों को कवर करने वाले रिपोर्टर अपनी मांगों को लेकर दोपहर एक बजे प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एकत्र हुए। उन्होंने संसद के स्थायी पासधारक पत्रकारों के संसद परिसर तथा दोनों सदनों की प्रेस गैलरी में प्रवेश की मांग को लेकर पुरजोर आवाज़ उठाई।

प्रेस क्लब से बाहर जब सैकड़ों पत्रकार तख्तियां लिए आगे बढ़े तो संसद के गोलचक्कर के पास पुलिस ने नाकेबंदी कर दी, जिससे पत्रकार संसद के गेट के पास नहीं जा सके। इस दौरान पत्रकारों ने जमकर नारेबाजी की और अपनी एकजुटता प्रकट की।

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संसद में पत्रकारों के प्रवेश पर रोक के खिलाफ आज दोपहर एक बजे पत्रकारों का संसद मार्च!

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, प्रेस एसोसिएशन, इंडियन वोमेन्स प्रेस कोर दिल्ली पत्रकार संघ और वर्किंग न्यूज़ कैमरामैन एसोसिएशन की मांगें इस प्रकार हैं…

  1. जिन पत्रकारों के पास स्थायी पास है, उन्हें संसद परिसर तथा राज्यसभा और लोकसभा की पत्रकार दीर्घा में प्रवेश की अनुमति दी जाए ताकि वे पहले की तरह सदन की कार्यवाही नियमित रूप से कवर कर सकें।
  2. जुलाई में लोकसभा अध्यक्ष ने यह निर्णय लिया था कि स्थायी पास धारकों को संसद कवर करने के लिए पत्रकार दीर्घा के पास पहले की तरह बनेंगे, उस फैसले को लागू किया जाय।
  3. संसद के सेंट्रल हाल के पास बनने पर जो पाबंदी लगी है, उसे हटाकर पहले की तरह नए पास बनाए जाएं। वरिष्ठ पत्रकारों की लंबी सेवाओं को देखते हुए इस सुविधा को बहाल किया जाए।
  4. दीर्घावधि समय तक संसद कवर करनेवाले पत्रकारों के विशेष स्थायी पास फिर से पहले की तरह बनें, जो उनके पेशे की गरिमा और सम्मान के अनुरूप है। फिलहाल सरकार ने इस पर भी रोक लगा रखी है।
  5. जिन पत्रकारों को सत्र की पूरी अवधि के लिए जो पास बनते थे, पहले की तरह उनके पास बनाए जाएं ताकि वे सदन की कार्यवाही कवर कर सकें क्योंकि सरकार द्वारा पत्रकारों के प्रवेश पर रोक लगने से उनकी नौकरी और सेवा पर भी असर पड़ा है जिससे उन्हें छंटनी का भी सामना करना पड़ा है।
  6. दोनों सदनों की प्रेस सलाहकार समितियों का नए सिरे से गठन हो क्योंकि दो साल के बाद भी उनका गठन नहीं हुआ।

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