कर्नाटक के संत श्री बासव और साहित्यिक, सामाजिक आंदोलन 

बृजेश सिंह 

भारत के वॉल्टेयर कहे जाने वाले संत श्री बासव या बासवन्ना अर्थात बाश्वेस्वर ने बारहवीं सदी में अन्य शरणों अर्थात वचनकारों के साथ मिलकर जाति, धर्म, ऊंच नीच के भेद-भाव को समाप्त करने और सभी को समान सामाजिक, धार्मिक अवसर उपलब्ध कराने के लिए बहुत कार्य किये. उन्होने समाज में बराबरी लाने के उद्देश्य से सामूहिक भोज, अंतर्जातीय विवाह जैसे सामाजिक कार्यों  को प्रोत्साहित किया. संत बासव का जन्म 1127 ई. में कर्नाटक के बीजापुर जनपद के इंगालेश्वर बागेवडी में हुआ था, वह पिता मदिराज़ और माँ मदाम्बि की तीसरी संतान थे.

संत बासव के वीरशैव शरणों में राजा, रानी, ब्राहमण, जुलाहा, लोहार, दोहर, धोबी, केवट, मोची, डोम, चमार, हरल्लया आदि वर्ग से शरण थे, चूंकि उस समय भी समाज विभिन्न जातियों, ऊंच-नीच, पाखंड में बंटा हुआ था. संत बासव और अन्य वचनकारों ने अध्यात्म, समाज सेवा के साथ ही कन्नड भाषा को अपने उपदेशों और वचनों का माध्यम बनाया. वीर शैव अर्थात लिंगायत संप्रदाय में वचनों का महत्व उपदेश की तरह है, जो शरणों द्वारा कहे गए प्राचीन साहित्यिक दस्तावेज़ हैं. संत बासव ने एक प्रमुख वचनकार अल्लामा प्रभु को अनुभव मंतप का प्रमुख बनाया था. अनुभव मंतप वह स्थान था जहां वचनकार अथवा शरण बैठकर विचार विमर्श करते थे. महिला शरणों में अक्का महादेवी, दुगगला, बासव की पत्नियाँ गंगाम्बिके, नीलम्बिका और बहिन नागम्मा का उच्च स्थान था. हर शरण का अपना कायक निर्धारित था, कायक के पीछे सोच थी कि हर शरण को कार्य करना होगा, जो श्रमण परंपरा का अनुशरण करती थी, वन में जाकर तपस्या करना या सन्यासी हो जाना बेमानी था. 

 बासव ने अपने वचनों से सामाजिक आंदोलन को तेज किया, जाति व्यवस्था पर कुठाराघात करने के लिए वज्रसूची के समान चुनौती दी, ज्ञातव्य है कि वज्रसूची को सामाजिक भेदभावों को दूर करने में उद्घृत किया जाता है. जिसे बौद्धाचार्य अश्वघोष द्वारा रचित माना गया है.      

बारहवीं सदी के कन्नड साहित्य में संत बासव के समकालीन तथा विशेष महत्व रखने वाले वचनकारों में से तीन मादरा चेन्नैय्या, दोहर कक्कैय्या और जेदारा दसमैय्या थे, जिनके वचनों को विश्वविख्यात साहित्यकार श्री के. अयप्पा पणिक्कर द्वारा मुख्य रूप से संपादित पुस्तक ‘Medieval Indian Literature’ An Anthology, Survey and Selection में कन्नड साहित्य के अध्ययन हेतु उद्घृत किया गया है. कुछ वचन –

मादरा चेन्नैय्या Maadara Chennayya 

If words and actions are firm there is no pollution of race or birth. 

If words are good and action worse that is pollution without liberation. 

Can any one be said to be highborn 

if one is thieving and engaged with others’ wives? 

Righteousness is caste, unrighteousness is pollution.

This duality should be understood and known 

Don’t be a mere servant to awl, scissors, and lower millstone, 

know Nijaatma Raama. (1930)

 दोहरकक्कैय्या Dohara Kakkayya

The pollution of my mean caste 

was gone when touched your hands. 

Pollution of blood and semen 

were gone the moment you were touched. 

As I offered the pleasure of touch 

to the face of linga 

my five senses were gone. 

As the light of knowledge was established

every thing was open and free within. 

As involved in action beyond union with the worldliness

every thing was open and free without.

Abhinavamallikarjuna as I touched you

I too was free and open. (1786) 

जेदारा दसमैय्या Jedara Daasimayya

A fellow filled rice in a sack with a whole

and walked during night to escape tax.

He lost all rice, had only empty sack. 

The devotion of a weak mind is like this, Raamanaatha. (1775)

 Vachana, Editor: The Kannada Original, Dr. M. M. Kalburgi, Editor: English Translation O. L. Nagabhushana Swamy, Basava Samithi Bangalore 2012, (1930, 1786, 1775)

मध्यकालीन इतिहास के चौरासी महासिद्ध, संत कबीर, संत रविदास, संत तुलसीदास, सूरदास आदि को हिन्दी साहित्य के उत्थान के लिए याद किया जाता है. दक्षिण भारत के कन्नड साहित्य में संत श्री बासव एवं वचनकारों को प्रमुख स्थान दिया गया है.  

बृजेश सिंह 
बृजेश सिंह

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